Coromandel Train Accident Video: रेल दुर्घटना, फर्श पर काम नहीं, अर्श पर झंडा
Coromandel Express Train Accident Video: ओडिशा का ट्रेन एक्सीडेंट शायद भारत की सबसे बड़ी दुर्घटना है। ऐसी दुर्घटना जिसमें तीन तीन ट्रेनें शामिल रहीं। जो मंजर टीवी पर दिखाई दिया, जो तमाम सोशल मीडिया क्लिप्स से पता चला उससे लगता है कि कई सौ मौतें तो हुईं होंगी।
Coromandel Express Train Accident Video: ट्विटर पर पंद्रह बीस सेकेंड का एक वीडियो आपको दहला देगा, परेशान कर देगा। एक बड़े से हॉल में लाइन से ढेरों लाशें रखीं हैं। झोला पकड़े एक कमजोर, बूढ़ा आदमी उनके बीच एक एक को झुक झुक कर देखता है फिर किनारे आ जाता है। एक शख्स जो वीडियो बना रहा है उससे बुदबुदाते हुए कहता है - नहीं मिल रहा है। वीडियो बनाने वाला पूछता है - किसको ढूंढ रहे हो? वह रुंधे गले से कहता है - "लड़का नहीं मिल रहा है। सब जगह देख लिया।" उसकी कातर आँखों में आंसू हैं, मुंह सूखा हुआ है।
उस हताश बूढ़े बाप से कोई क्या कहे, वह घर जाकर लड़के की मां से क्या कहेगा कि उसके लड़के को कौन लील गया? वह रेलवे जिसकी अल्ट्रा-मॉडर्न सिग्नल व्यवस्था फेल हो गई? वह रेलवे जिसके पास जमीनी स्टाफ की कमी है? वह रेलवे जिसके ड्राइवर 12 घण्टे से भी ज्यादा की ड्यूटी करने को मजबूर हैं? वह रेलवे जिसकी पटरियों की देखभाल नहीं हो पा रही? या वह रेलवे जो वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन बनाने और बुलेट ट्रेन चलाने में जुटी है?
ओडिशा का ट्रेन एक्सीडेंट शायद भारत की सबसे बड़ी दुर्घटना है। ऐसी दुर्घटना जिसमें तीन तीन ट्रेनें शामिल रहीं। जो मंजर टीवी पर दिखाई दिया, जो तमाम सोशल मीडिया क्लिप्स से पता चला उससे लगता है कि कई सौ मौतें तो हुईं होंगी। हज़ारों लोग जख्मी हुए होंगे जिनमें पता नहीं कितने हाथ पैर खो बैठें होंगे।
चेन्नई जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस और बंगलुरू से आ रही यशवंतपुर एक्सप्रेस - दोनों ही ठसाठस भरी रहती हैं। उनमें ज्यादातर वो कामगार लोग होते हैं जो काम धंधे के लिए दक्षिणी राज्यों में जाते हैं। गरीब, मजदूर और कारीगर। जिनकी न तो जिंदगी की कीमत है। न मौत के बाद उनके शवों के सम्मान की। तमाम वीडियो गवाह हैं कि किस तरह से छोटे बड़े ट्रकों में शवों को कूड़े की तरह उठा कर फेंका गया। शायद हमारी आबादी वाकई में बहुत ज्यादा है। तभी इंसान की जिंदगी-मौत की हमारे यहां कौड़ियों की कीमत नहीं है।
भारतीय रेलवे की क्या कहें और क्या रोएं। भारत कृषि प्रधान रहे या औद्योगिक राष्ट्र बने, उसी तरह की ऊहापोह में रेलवे है। रेलवे और रेलवे के कर्णधार अभी तक तय नहीं कर पाए कि बेसिक जरूरतों को पूरा करे, नींव मजबूत करे या रफ्तार, चमक दमक, लक्जरी की तरफ जाए। इसी चक्कर में वह दोनों किनारों से बहुत दूर है। वर्ल्ड क्लास स्टेशनों, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट, वंदे भारत ट्रेनों, लक्जरी टूरिस्ट ट्रेनों के बीच एक पहलू यह भी है कि जनरल डिब्बों वाली जनसाधारण एक्सप्रेस ट्रेनों की तादाद बढ़ने का नाम नहीं ले रही, तमाम ट्रेनों में जनरल डिब्बे घटा कर एसी कोच बढाये जा रहे हैं, जनरल डिब्बों में भूसे की तरह भीड़ रहती है, स्लीपर डिब्बे अब जनरल की तरह हो गए हैं और थर्ड एसी कोच स्लीपर जैसे हो गए हैं।
हादसों का हाल यह है कि ट्रेनों की औसत रफ्तार बढ़ने के साथ साथ हादसे भी बढ़ते जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में जानमाल के नुकसान वाली 48 रेल दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं। जबकि एक साल पहले इनकी संख्या 35 थी। 2022-23 में गैर-परिणामी यानी बिना जानमाल के नुकसान वाली ट्रेन दुर्घटनाओं की संख्या 162 थी, जिसमें सिग्नल पास डेंजर (एसपीएडी) यानी ड्राइवर द्वारा लाल सिग्नल की अनदेखी के 35 मामले शामिल थे।
रेलवे पर संसद की स्टैंडिंग कमेटी ने 2016 में ही अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आधे से ज्यादा हादसे रेलवे स्टाफ की चूक के कारण होते हैं। इस तरह की खामियों में काम में लापरवाही, खराब रखरखाव का काम, शॉर्ट-कट अपनाना, निर्धारित सुरक्षा नियमों और प्रक्रियाओं का पालन न करना शामिल है।
लोको पायलट की लापरवाही
2016 की रिपोर्ट में कहा गया था कि अनेक दुर्घटनाएं सिग्नलिंग की गलती के कारण भी होती हैं, जिसके लिए लोको-पायलट जिम्मेदार होते हैं। रेल यातायात बढ़ने के साथ, लोको-पायलटों को हर किलोमीटर पर एक सिग्नल मिलता है। नतीजतन,उन्हें लगातार हाई अलर्ट पर रहना पड़ता है। इसके अलावा, वर्तमान में लोको-पायलटों के लिए कोई तकनीकी सहायता उपलब्ध नहीं है। स्टाफ की कमी है सो लोको-पायलटों को अपनी ड्यूटी के निर्धारित घंटों से अधिक काम करना पड़ता है। काम का तनाव और थकान हजारों यात्रियों के जीवन को जोखिम में डालता है। ट्रेन संचालन की सुरक्षा को प्रभावित करता है। रेलवे बोर्ड ने हाल ही में लोको पायलटों को उनके निर्धारित कार्य घंटों से अधिक पर तैनात किए जाने के मुद्दे को उठाया है।
एक बहुत बड़ा मसला डिरेलमेंट यानी ट्रेनों के बेपटरी होने का है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 और 2020-21 के बीच देश भर में 217 "परिणामी ट्रेन दुर्घटनाओं" में से चार में से लगभग तीन पटरी से उतरने के कारण हुईं। "परफॉर्मेंस ऑडिट ऑन डिरेलमेंट इन इंडियन रेलवे" नामक यह रिपोर्ट दिसंबर 2022 में संसद में पेश की गई थी। यह दर्शाती है कि पटरी से उतरने के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक "पटरियों के रखरखाव" से संबंधित था। सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रैक नवीनीकरण कार्यों के लिए धन के आवंटन में वर्षों से गिरावट आई है और यहां तक कि इन निधियों का "पूरी तरह से उपयोग" भी नहीं किया गया था।
रिपोर्ट से पता चलता है कि 217 "परिणामी ट्रेन दुर्घटनाओं" में से 163 पटरी से उतरने के कारण हुईं, जो कुल परिणामी दुर्घटनाओं का लगभग 75 प्रतिशत है। इसके बाद ट्रेनों में आग लगने (20), मानव रहित लेवल-क्रॉसिंग पर दुर्घटनाएं (13), टक्कर (11), मानवयुक्त लेवल क्रॉसिंग पर दुर्घटनाएं (8), और विविध (2) दुर्घटनाएं हुईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे बोर्ड ट्रेन दुर्घटनाओं को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करता है: 'परिणामी ट्रेन दुर्घटनाएं' और 'अन्य ट्रेन दुर्घटनाएं'।
परिणामी ट्रेन दुर्घटना वह दुर्घटना है जिसमें - मानव जीवन की हानि हुई हो, कोई इंसान जख्मी हुआ हो, रेलवे संपत्ति की हानि हुई हो, रेलवे ट्रैफिक में रुकावट आई हो। इन तीन चीजों में से एक भी होने पर उसे परिणामी ट्रेन दुर्घटना माना जाता है। परिणामी ट्रेन दुर्घटनाओं के अंतर्गत शामिल नहीं होने वाली अन्य सभी दुर्घटनाएँ 'अन्य ट्रेन दुर्घटनाओं' के अंतर्गत आती हैं। सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि अन्य ट्रेन दुर्घटनाओं की श्रेणी में, 1,800 दुर्घटनाएँ हुईं। इनमें से 68 प्रतिशत (1,229) पटरी से उतरने के कारण हुईं।
रिपोर्ट के अनुसार, कुल 2017 परिणामी और गैर-परिणामी दुर्घटनाओं (1,800 + 217) में से, 2017-18 से 2020-21 के दौरान पटरी से उतरने के कारण दुर्घटनाएँ 1,392 (69 प्रतिशत) थीं।" रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि "अधिकतम दुर्घटनाएं" पटरी से उतरने की श्रेणी में रिपोर्ट की गई थीं, इसलिए ऑडिट का ध्यान "डिरेलमेंट के कारण दुर्घटनाओं पर" बना रहा।
खाली पड़े पद
रेलवे की स्थायी समिति ने दिसंबर 2019 में रेल मंत्रालय को चेतावनी दी थी कि रेलवे में स्टाफ की कमी का निरीक्षण दिनचर्या पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यह रेल यातायात की सुरक्षा सुनिश्चित करने में एक गंभीर चूक है। फरवरी 2023 तक रेलवे में कम से कम 3,12,039 अराजपत्रित पद खाली थे। रेलवे के सभी जोन में से उत्तरी जोन में सबसे ज्यादा 39,059 वैकेंसी हैं। पिछले कुछ वर्षों में रिक्तियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। डेटा से पता चलता है कि जून 2022 तक कुल 2,95,684 गैर-राजपत्रित पद खाली थे, जबकि दिसंबर 2021 में यह संख्या 2.86 लाख थी। मंत्रालय के पास विभिन्न क्षेत्रों में 14.74 लाख गैर-राजपत्रित पद स्वीकृत हैं, फरवरी तक के आंकड़े दिखाते हैं। 18,833 स्वीकृत राजपत्रित पदों में से कम से कम 2,885 रिक्त हैं।
खाली पदों में वह स्टाफ भी शामिल हैं जो रोजाना ट्रैक की निगरानी और रखरखाव करते हैं। रेलवे सेफ्टी सिर्फ कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर या मशीन से जुड़ी नहीं है बल्कि गैंगमैन, फिटर, ट्रेन एक्जामिनर, आदि तमाम फुटसोल्जरों से जुड़ी है। एक कड़ी भी कमजोर हुई तो बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। ओडिशा ट्रेन हादसे में अब साफ हो गया है कि सिग्नल हरा था। लेकिन ट्रेन को सीधे आगे बढ़ने की बजाय लूप लाइन पर जाने दिया गया। जहां लौह अयस्क से भरी मालगाड़ी खड़ी थी। जाहिर है कोरोमंडल एक्सप्रेस अपने आप लूप लाइन पर नहीं गई। उसे उस लाइन पर भेजा गया। लाइन बदलने का काम पॉइंट मशीन करती है । जिसे स्टेशन मास्टर द्वारा कंट्रोल किया जाता है। अब मेन लाइन की बजाए पॉइंट बदल कर लूप लाइन पर शिफ्ट करने का काम या तो जानबूझ कर किया गया, या ये इलेक्ट्रिकल - मैकेनिकल फाल्ट है, जांच से ही पता चलेगा।
ओडिशा ट्रेन हादसे ने स्वदेशी रूप से डिज़ाइन की गई ट्रेन सुरक्षा प्रणाली 'कवच' पर भी बहस छिड़ गई है। सवाल उठाया जा रहा है कि क्या 'कवच' से इस तरह के विनाशकारी हादसे को रोका जा सकता था? कवच दरअसल एक ऑटोमैटिक ट्रेन सुरक्षा प्रणाली है। जिसे भारतीय कंपनियों के सहयोग से अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन (आरडीएसओ) द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। इसकी टेस्टिंग दक्षिण मध्य रेलवे द्वारा की गई है। रेल मंत्रालय के मुताबिक, 'कवच' ट्रेनों को रेड स्टॉप सिग्नल पास करने से रोकता है। इस तरह टक्कर की संभावना से बचा जाता है।
कवच का सफल परीक्षण 4 मार्च, 2022 को दक्षिण मध्य रेलवे के गलागुडा और चिटगिद्दा स्टेशनों के बीच किया गया था। मंत्रालय का दावा है कि 'कवच' 10,000 वर्षों में 1 त्रुटि की संभावना के साथ "सबसे सस्ती सुरक्षा अखंडता स्तर 4 (एसआईएल-4) प्रमाणित प्रौद्योगिकियों में से एक है।"
कार्यान्वयन स्थिति
भारतीय रेलवे की योजना 2022-23 के दौरान 2000 किलोमीटर की सीमा तक कवच सुरक्षा प्रणालियों को लागू करने की थी। करीब 34,000 किलोमीटर रेलवे नेटवर्क को 'कवच' के तहत लाया जाना था।
कवच हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो संचार का उपयोग करता है। टक्करों को रोकने के लिए मूवमेंट के निरंतर अपडेशन के सिद्धांत पर काम करता है। अगर ड्राइवर इसे नियंत्रित करने में विफल रहता है। तो सिस्टम ट्रेन के ब्रेक को स्वचालित रूप से सक्रिय कर देता है। कवच सिस्टम दो लोकोमोटिव के बीच टकराव से बचने के लिए ब्रेक भी लगाता है।
आरएफआईडी टैग
पटरियों की पहचान करने और ट्रेन व उसकी दिशा का पता लगाने के लिए आरएफआईडी टैग पटरियों पर और स्टेशन यार्ड और सिग्नलों पर लगाए जाते हैं। जब सिस्टम सक्रिय हो जाता है, तो 5 किमी के भीतर सभी ट्रेनें रुक जाएंगी। ताकि बगल के ट्रैक की ट्रेनें सुरक्षित रूप से गुजर सकें। ऑन बोर्ड डिस्प्ले ऑफ सिग्नल एस्पेक्ट (ओबीडीएसए) खराब मौसम के कारण दृश्यता कम होने पर भी लोको पायलटों को सिग्नल देखने में मदद करता है। आमतौर पर लोको पायलटों को सिग्नल देखने के लिए खिड़की से बाहर देखना पड़ता है।
सिग्नल फेलियर
इस बीच रिपोर्ट्स के मुताबिक गलत सिग्नल की वजह से कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन पर चली गई और डिरेल हो गई। रिपोर्टों में बताया गया है कि सुपरवाइजरों के संयुक्त निरीक्षण नोट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस को मेन लाइन से गुजरने के लिए पहले हरा सिग्नल दिया गया और फिर सिग्नल बंद कर दिया गया था। लेकिन तेज रफ्तार से आ रही ट्रेन लूप लाइन में घुस गई और खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई और पटरी से उतर गई। इसी दौरान डाउन लाइन पर यशवंतपुर से सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन आ गई और डिरेल डब्बों से टकरा गई।
क्या है नोट मे
दुर्घटना कभी भी कहीं भी हो सकती है लेकिन फोकस सिर्फ और सिर्फ यही होना चाहिए कि दुर्घटना न हो और किसी की जान न जाने पाए। हम वर्ल्ड क्लास स्टेशनों और चमचमाती ट्रेनों का और इंतज़ार कर लेंगे, अभी हमें और हमारे अपनों को सही सलामत पहुंचने की गारंटी चाहिए। जान बची रहे। बस, और कुछ नहीं।
( लेखक पत्रकार है।)