Water Crisis in India: करोड़ों भारतीयों पर छाया गंभीर जल संकट, GDP में भी होगा बड़ा नुकसान

Water Crisis in India: भारत में जलवायु परिवर्तन का बुरा असर साफ नजर आ रहा है। देश की बड़ी कई नदियां, तलाब, झीलें सूख गई है। ऐसे में देश की बड़ी आबादी को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है।

Update:2023-07-04 14:23 IST
Water crisis in India (Photo - Social Media)

Water Crisis in India: भारत में जलवायु परिवर्तन का बुरा असर मानसून और उस पर निर्भर जल संसाधनों पर साफ नजर आ रहा है। देश की बड़ी कई नदियां, तलाब, झीलें सूख गई है। ऐसे में देश की बड़ी आबादी को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में सामने आई प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक हैदराबाद की 185 झीलों में से 30 झीलें सूख गई हैं। जिनमें शेखपेट, कुकटपल्ली, मेडचल-मल्काजगिरी और कुतुबुल्लापुर आदि झीलें शामिल हैं।

देश में सिर्फ 4% जल संसाधन

भारत ने इससे पहले गंभीर जल संकट कभी नहीं देखा। दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी वाले हमाले देश में सिर्फ 4 प्रतिशत जल संसाधन हैं। जिसके चलते भारत दुनिया के उन देशों में शामिल हैं जो पानी की कमी से जूझ रहे हैं। नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत पानी के लिए अनियमित मानसून की निर्भरता पर बढ़ा रहा है। ऐसे में लाखों लोगों का जीवन खतरे में हैं। हमारे देश के 60 करोड़ लोग गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं। हर साल पानी की कमी के चलते इनमें से लगभग दो लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं।

इससे भी बड़ी बात है कि 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है। अगर ऐसा हुआ तो लाखों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी होगी। इसके साथ ही देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 6 प्रतिशत का नुकसान भी हो सकता है।

खतरे में भारतीय नदियां तलाब

केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के अनुसार, भारत की तीन प्रमुख नदी घाटियां, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी हर दिन सूखने की कगार पर पहुंच रही हैं। जिसका कारण जलवायु संकट, बांधों के अंधाधुंध निर्माण, और जल विद्युत की ओर बढ़ते बदलाव और रेत खनन हैं। बांधों और विकास परियोजनाओं के कारण लंबी नदियां तेजी से सूख रही हैं। देश की 96 प्रतिशत नदियां 10 किमी से 100 किमी के दायरे में सिमट गई हैं। जबिक भारत को 500-1000 किमी रेंज वाली लंबी नदियों की जरूरत है।

नदियों के अलावा तलाब भी खोते जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, मानवजनित गतिविधियों, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों और लोगों का व्यवहार के कारण तालाब भी सूख रहे हैं। पानी सिर्फ पीने के लिए नहीं बल्कि खेती और उद्योग के लिए आवश्यक है। तमाम तालाब, छोटी नदियां, झीलों से ही घरेलू और कृषि के लिए जल भंडारण और पानी तक पहुंच उपलब्ध होती है। आज नदी. तालबों और झीलों की मौजूदा स्थिति राष्ट्रीय हित का महत्वपूर्ण मुद्दा है। जिस पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।

अनाजों की बुआई पर पड़ेगा असर

नीति आयोग की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक गेहूं और चावल की खेती को पानी की भयंकर कमी का सामना करना पड़ेगा। सरकार 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति पर काम कर रही है, लेकिन सच तो ये हैं कि हमारे देश में मानसून के कारण जल बजट की योजना बनाना मुश्किल होता है। हर साल लगभग 80% बारिश जून और सितंबर के बीच होती है। इस दौरान देश का लगभग सातवां हिस्सा बाढ़ की मार झेलता है।

पीने के पानी की कमी कैसे दूर होगी

भारत में पीने पानी की कमी की समस्या ज्यादातर उपलब्ध संसाधनों के गलत प्रयोग से हैं। क्योंकि ज्यादातर लोग दूसरे जल संसाधनों में इस्तेमाल किया हुआ पानी बहा देते हैं। जिससे मीठा पानी भी खराब हो जाता है। जल शक्ति मंत्रालय जल योजनाओं पर विश्व बैंक के साथ काम कर रहा है। दो राष्ट्रीय योजनाएं बनाई गई थी। लेकिन कुछ सीमाओं के कारण परियोजनाएं पूरी नहीं की जा सकी।

अब सरकार तीसरी योजना पर काम कर रही हैं। इसके तहत 2024 तक पानी की जरूरतों को पूरा किया जाएगा। जल संसाधनों के बारे में डेटा इकट्ठा किया जाएगा। पानी की कमी को दूर करने के लिए उपायों पर काम किया जाएगा। इसके अलावा जल शक्ति अभियान के तहत 740 जल-संकट वाले जिलों में जल संरक्षण, पुनर्भरण और वर्षा जल संचयन को लेकर काम चल रहा है।

हालांकि विशेषज्ञ नीतिगत कमियों को लेकर चिंतित हैं। उनके अनुसार जल क्षेत्र में मौजूदा नीतिगत वातावरण बेहद खराब है। सतह और भूजल, पीने के पानी और सिंचाई के पानी को लेकर विभागों में तालमेल के साथ काम नहीं कर रहे हैं। ऐसे में जल संकट का सामना कर पाना बेहद मुश्किल है।

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