Weather Today: पारा 48 के पार, कहर बरपा रहा मौसम, जिंदगियों पर ख़तरा
Weather Today: भारत के अधिकांश हिस्सों के लिए गर्मियां, लू और तपन कोई नई चीज नहीं है। अप्रैल, मई और जून के तीन महीने तो हमेशा ही गर्म होते हैं।
Weather Today: देश भर में, खासकर उत्तरी भारत में भीषण गर्मी का प्रकोप है और कई जगह पारा 48 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है। 45 डिग्री का तापमान तो ढेरों इलाकों में चल रहा है। अभी हालात स्थितियाँ और खराब होने की आशंका है क्योंकि भारत मौसम विज्ञान विभाग ने अगले कुछ दिनों में उत्तर पश्चिम भारत में तापमान में तीन से चार डिग्री की वृद्धि की भविष्यवाणी की है। मौसम का एक दूसरा कहर केरल में है जहाँ इतनी ज्यादा बारिश हो रही है कि रेड अलर्ट जारी किया गया है और राज्य भर में कम से कम चार लोगों की मौत हो चुकी है।
बहरहाल, भारत के अधिकांश हिस्सों के लिए गर्मियां. लू और तपन कोई नई चीज नहीं है। अप्रैल, मई और जून के तीन महीने तो हमेशा ही गर्म होते हैं। इसके बाद ही मानसून की बारिश से तापमान नीचे आता है। लेकिन पिछले दशक में गर्मी अधिक तेज और खतरनाक हो गई है। अब तो तापमान अत्यधिक ऊँचाई पर पहुँच जाता है और जरा भी नीचे नहीं आता, रहत देने वाली आंधियां भी कम ही आती हैं। इन महीनों में आमतौर पर पानी की गंभीर कमी भी हो जाती है। ध्यान देने वाली बात है कि गर्मियों की तीव्रता में इस तरह की खतरनाक बढ़ोतरी कोई अचानक नहीं हो रही है। वैज्ञानिक इस बारे में लगातार आगाह करते रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बेहद खराब दिन आने वाले हैं। इस साल की गर्मियों के बारे में भी पहले ही चेतावनी दी जा चुकी थी।
लगातार बढ़ रही गर्मी
अत्यधिक गर्मी की वजहों का अध्ययन करने वाले एक अकादमिक ग्रुप ‘वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन’ के एक अध्ययन में पाया गया है कि अप्रैल में एशिया के कुछ हिस्सों में भीषण गर्मी पड़ने की संभावना जलवायु परिवर्तन के कारण महाद्वीप के कुछ हिस्सों में कम से कम 45 गुना अधिक हो गई है।
जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि प्री-मॉनसून सीज़न के दौरान दक्षिण एशिया में अत्यधिक गर्मी लगातार बढ़ती जा रही है और अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इस क्षेत्र में अत्यधिक तापमान अब लगभग 0.85 सेल्सियस अधिक गर्म है। इस साल अप्रैल में बांग्लादेश में गर्मी से संबंधित कम से कम 28 मौतें हुईं जबकि भारत में ये आंकड़ा पांच का था। अध्ययन के अनुसार इस साल थाईलैंड और फिलीपींस में भी गर्मी से होने वाली मौतों में वृद्धि दर्ज की गई है।
जिन्दगी पर संकट
भारत में अत्यधिक गर्मी तेजी से एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बनती जा रही है, पिछले साल हीटवेव के दौरान 150 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। सरकार का अनुमान है कि इस शताब्दी में लू के दौरान लगभग 11,000 लोगों की मौत हुई है, फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे आंकड़े संभवतः बहुत कम हैं और असल आंकड़े कई गुना ज्यादा होंगे। वेदर एंड क्लाइमेट एक्सट्रीम्स जर्नल में चरम मौसम के 2021 के एक अध्ययन के अनुसार, पिछले पांच दशकों में देश में 700 से अधिक ‘गर्मी की घटनाओं’ यानी लू से भी ज्यादा गर्मी का अनुभव हुआ है, जिसमें 17,000 से अधिक लोगों की जान चली गई है। अकेले इसी मई में देश के कुछ हिस्सों में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक जा चुका है।
जलवायु विशेषज्ञों के अनुसार सन 2050 तक भारत उन पहले स्थानों में से एक होगा जहां तापमान जीवित रहने की सीमा को पार कर जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, उस समय सीमा के भीतर देश में एयर कंडीशनर की मांग भी अन्य सभी उपकरणों को पछाड़ते हुए नौ गुना बढ़ने की संभावना है। यह स्थिति एक विरोधाभास को दर्शाती है कि देश जितना अधिक गर्म और समृद्ध होगा उतना ही अधिक भारतीय एसी का उपयोग करेंगे। और जितना अधिक लोग एसी का इस्तेमाल करेंगे, देश उतना अधिक गर्म हो जाएगा। इसकी वजह एसी से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन है। यूरोपीय संघ के आंकड़ों के आधार बताया जाता है कि पर भारत हर साल लगभग 2.4 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित करता है - जो ग्लोबल उत्सर्जन में लगभग 7 फीसदी का योगदान देता है। तुलनात्मक रूप से भारत की एक चौथाई आबादी होने के बावजूद अमेरिका 13 फीसदी उत्सर्जन का कारण बनता है।
रोजी-रोटी पर ख़तरा
एक्सट्रीम मौसम, खासकर गर्मी का सम्बन्ध रोजी-रोटी से भी होता है। खतरनाक मौसम से नौकरियों पर ख़तरा आता है, खासकर म्हणत और मैन्युअल कामों में। दिसंबर 2022 में जारी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक गर्मी की वजह से जाने वाली अनुमानित 80 मिलियन ग्लोबल नौकरियों में से 34 मिलियन भारत में हो सकती हैं। भारत में 50 फीसदी से अधिक कार्यबल कृषि में कार्यरत है। सो, गर्मी बढ़ने के साथ साथ इस कार्यबल पर असर पड़ेगा।
जैसे-जैसे आमदनी में लगातार वृद्धि हो रही है, शहरी आबादी बढती जा रही है, एसी खरीदने-इस्तेमाल करने वालों में उल्लेखनीय दर से वृद्धि हुई है। आईईए के अनुसार भारत में कूलिंग से बिजली की खपत - जिसमें एसी और रेफ्रिजरेटर शामिल हैं - 2019 और 2022 के बीच 21 फीसदी बढ़ गई है। इसमें कहा गया है कि 2050 तक, घरेलू इस्तेमाल वाले एयर कंडीशनरों से भारत की कुल बिजली की मांग आज पूरे अफ्रीका में कुल बिजली की खपत से अधिक हो जाएगी। ये खतरनाक स्थिति है क्योंकि रेफ्रिजरेटर की तरह कई एयर कंडीशनर आज हाइड्रोफ्लोरोकार्बन या एचएफसी नामक कूलैंट की कैटगरी का उपयोग करते हैं, जो नुक्सानदेह ग्रीनहाउस गैसें होती हैं। इससे भी ज्यादा समस्या बिजली की खपत है क्योंकि एसी को चलने वाली अधिकांश बिजली कोयला जलाने से पैदा होती है।
सब चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुईं हैं। समस्या इतनी ज्यादा विकराल हो चुकी है की उसका समाधान आसान और जल्द रिजल्ट देने वाला नहीं है। अब गर्मियां हैं तो हैं, अपनी जान भी बचाइए और पता करिए कि बिन एसी क्या क्या उपाय किये जा सकते हैं।