माल्दा : पश्चिम बंगाल के नादिया और उत्तरी २४ परगना जिलों में आजादी का दिन १५ अगस्त के अलावा १७ व १८ अगस्त को भी मनाया जाता है। ये इलाके बांग्लादेश सीमा से सटे हुए हैं। तीन दिन बाद की आजादी दरअसल रैडक्लिफ कमीशन के कारण हुई थी जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। इन इलाकों में सन ४७ के उन तीन दिनों की याद में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
भारत के बंटवारे का काम देख रहे सीमा आयोग (बाउंड्री कमीशन) के अगुवा सिरिल रैडक्लिफ की गलती से माल्दा, नादिया और मुर्शिदाबाद को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया था। १४ अगस्त की आधी रात को रेडियो पर ऐलान हो गया कि माल्दा और नादिया के कुछ हिस्से पूर्वी पाकिस्तान में शामिल किए गए हैं। अगली सुबह माल्दा जिला कलेक्टर के दफ्तर पर पाकिस्तान का झंडा फहरा दिया गया। इलाके की हिन्दू जनता संभावित हमलों की आशंका में दहशत में थी।
इस ऐतिहासिक भूल को सुधरवाने के लिए कुछ प्रमुख हस्तियां कोलकाता पहुंचीं और आयोग में अपनी बात रखी। इनकी अपील पर आयोग ने विचार किया और अंतत: १७ अगस्त की रात को आदेश जारी हुआ कि माल्दा, नादिया व मुर्शिदाबाद को भारत में ही रखा जाएगा। लेकिन फिर भी माल्दा का एक सब डिवीजन नवाबगंज पूर्वी पाकिस्तान को दे दिया गया। ये अब बांग्लादेश के राजशाही जिले का हिस्सा है।
यह भी पढ़ें : मुंह खोलने के लिए तेजस्वी यादव को चाहिए सुप्रीम पावर
रैडक्लिफ की गलती
बंगाल का बंटवारा करते समय रैडक्लिफ ने नादिया का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के हवाले कर दिया था। तत्कालीन २४ परगना, माल्दा, दिनाजपुर और समूचे मुर्शिदाबाद को भी पाकिस्तान को दे दिया गया। १४ से १६ अगस्त तक ये इलाके पाकिस्तान के कब्जे में रहे। १७ अगस्त को रैडक्लिफ कमीशन ने आधिकारिक घोषणा की कि नादिया के मुस्लिम बहुल तीन सब डिवीजन (मेहरपुर, चुआडांगा और कुस्तिया) तथा माल्दा, दिनाजपुर व जलपाईगुड़ी के कुछ इलाके पाकिस्तान में जाएंगे। बाकी हिस्सा भारत के साथ रहेगा।
१९९८ में हुई शुरुआत
१७ व १८ अगस्त को जश्न-ए-आजादी मनाने की परंपरा १९९८ में शुरू हुई थी जब शिबनीबास के एक निवासी अंजान सुकुल ने उस समय की स्मृति में कुछ करने का फैसला किया। अंजान ने सन ४७ की कहानी अपने दादा प्रमार्थ नाथ सुकुल से कई बार सुनी थी। उनके दादा बताया करते कि १५ अगस्त १९४७ का दिन बहुत भय और आतंक से भरा हुआ था और तीन दिन बाद ही वे चैन की सांस ले सके थे। यही कहानी सुन कर अंजान ने उसकी याद में समारोह मनाने का फैसला किया। अंजान ने दस्तावेजी सबूत एकत्र किये और सूचना प्रसारण मंत्रालय में पेश किये और १८ अगस्त को तिरंगा फहराने की इजाजत मांगी। १८ अगस्त को 'भारत भुक्ति दिबस' मनाने की शुरुआत शिबनीबास से हुई। वैसे कुछ लोग १७ अगस्त को भी ये विदस मनाते हैं।
रानाघाट म्यूनिसपिलिटी के पूर्व आयुक्त तापस बंदोपाध्याय हर साल झंडारोहण करते हैं। वे सन ४७ के उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि मुस्लिम व हिंदू हमेशा से साथ-साथ शांति व सौहार्द पूर्वक रहते आए थे लेकिन बंटवारे के समय बहुत तनाव पैदा हो गया था। मुस्लिम लीग ने रानाघाट में जगह जगह पाकिस्तानी झंडे लगा दिए थे। हिन्दू लोग पलायन करने की सोच रहे थे लेकिन जब ये पता चला कि ये इलाके भारत में रहेगा तो लाउडस्पीकर पर लोग वंदेमातरम गाने लगे। पाकिस्तान के झंडे उतार कर तिरंगा फहराया गया।
आजादी के समय नादिया के राजा की राजधानी शिबनीबास हुआ करती थी। ये कोलकाता से ११० किमी दूर है। हर साल १७ अगस्त को यहां चुरनी नदी में नौका दौड़ का आयोजन होता है। रेस में शामिल नौकाओं को तिरंगे से सजाया जाता है।