क्या है पॉलीग्राफ टेस्ट, जिससे सुलझेगी कोलकाता रेप केस की गुत्थी, कैसे है नार्को टेस्ट से अलग, जानें सबकुछ

Kolkata Rape and Murder Case: पॉलीग्राफ (Polygraph Test) एक ऐसी मशीन है जिसका प्रयोग झूठ पकड़ने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग तब किया जाता है जब किसी अपराध का पता लगाना हो।

Newstrack :  Network
Update: 2024-08-23 09:43 GMT

Kolkata Rape and Murder Case (Pic: Newstrack)

Kolkata Rape and Murder Case: कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में महिला डॉक्टर से रेप और हत्या के मामले में सीबीआई की जांच जारी है। जांच में कई बड़े खुलासे हुए हैं। इनमें पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष का नाम भी सामने आया है। सीबीआई ने मामले की तह तक जाने के लिए पॉलीग्राफ जांच (Polygraph Test) का सहारा लिया है। आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट हो चुका है। इसके साथ ही पूर्व प्राचार्य संदीप घोष सहित चार ट्रेनी डॉक्टर का पॉलीग्राफ टेस्ट करने की अनुमति मिल गई है। पॉलीग्राफ टेस्ट से इस बात को पता किया जा सकेगा कि इन सभी के दिए गए बयान सही हैं या नहीं। 

क्या है पॉलीग्राफ टेस्ट? (What is Polygraph Test)

पॉलीग्राफ एक ऐसी मशीन है जिसका प्रयोग झूठ पकड़ने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग तब किया जाता है जब किसी अपराध का पता लगाना हो। इसे लाई डिटेक्टर मशीन भी कहा जाता है। इसकी खोज 1921 में जॉन अगस्तस लार्सन ने की थी। वह एक पुलिस अधिकारी थे। अपराधियों से सच उगलवाने के लिए उन्होंने यह मशीन बनाई थी। पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान आरोपी के शरीर में होने वाले बदलाव से इस बात का पता लगाया जाता है कि वह सच बोल रहा है या नहीं। पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) में आरोपी की शारीरिक गतिविधियों और उसके रिएक्शन को पढ़कर सच्चाई का पता लगाया जाता है।

कैसे काम करती है पॉलीग्राफ मशीन? 

पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) एक मशीन के जरिए किया जाता है। मशीन के कुछ यूनिट्स को आरोपी के शरीर से जोड़ा जाता है। इन्हें उंगलियां, सिर, हाथ और दिल सहित शरीर के कई अंगों पर जोड़ा जा सकता है। शरीर से कनेक्ट होने के बाद आरोपी जब जवाब देता है तो इस यूनिट में डाटा स्टोर होता है। यह डाटा मेन मशीन में जाकर इस बात का पता लगाता है कि आरोपी सही बोल रहा है या गलत। शरीर पर कनेक्ट की जाने वाली यूनिट्स में न्यूमोग्राफ, कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर और गैल्वेनोमीटर शामिल है। इसके साथ ही शरीर में चलने वाली पल्स को मापने के लिए हाथ पर पल्स कफ और उंगलियों पर लोमब्रोसो ग्लव्स बांधे जाते हैं। इन उपकरणों से शरीर में होने वाले बदलाव जैसे ब्लड प्रेशर, पल्स रेट, सांस की गति आदि का पता लगाया जाता है।

इन बदलावों से पता चलता है सच 

सच और झूठ का पता लगाने के लिए आरोपी से सवाल पूछे जाते हैं। पहले आसान सवाल पूछे जाते हैं जिनका केस से कोई संबंध नहीं होता। इससे पता चलता है कि वह सच बोल रहा है। फिर केस से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं। सही और गलत जवाब देने पर अलग-अलग सिग्नल निकलते हैं। अगर आरोपी झूठ बोलता है तो तो उसके दिमाग से एक सिग्नल P300 (P3) निकलता है। आम व्यक्ति की तरह झूठ बोलने पर आरोपी के शरीर में भी हार्ट रेट, पल्स रेट, सांस लेने की गति और माथे पर पसीना आना जैसे बदलाव होते हैं। इन बदलावों को यूनिट्स के जरिए सहेज लिया जाता है। इसके अलावा एड्रेनालाईन हार्मोन में बदलाव आते हैं। इन्ही बदलाव के जरिए मशीन तय करती है कि आरोपी झूठ बोल रहा है या सच। यह बदलाव अक्सर झूठ बोलने पर ही होते हैं। सच बोल रहा व्यक्ति सामान्य अवस्था में जवाब देता है। 

नार्को टेस्ट से अलग कैसे? (Polygraph Test)

पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) और नार्को टेस्ट एक जैसे होकर भी अलग हैं। दोनों में आरोपी से सच उगलवाया जाता है। मगर पॉलीग्रफ में मशीनों के जरिए पल्स रेट, सांस, ब्लड प्रेशर, पसीने, स्किन में बदलाव सहित शारीरिक बदलवा के के डेटा के आधार पर इस बात का फैसला होता है कि आरपी झूठ बोल रहा है या सच। पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) के दौरान आरोपी पूरी तरह होश में होता है। नार्को टेस्ट (Narco Test) में ऐसा नहीं होता। इस टेस्ट में पूछताछ के पहले सोडियम पेंटोथल नाम की दवा का इंजेक्शन दिया जाता है। इससे आरोपी आंशिक रूप से ही होश में रह जाता है। इस तरह वह झूठ नहीं बोल पाता। ऐसे में उससे केस से जुड़े सच उगलवाए जाते हैं। दोनों ही टेस्ट के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होगी। अवैध रूप से यह टेस्ट नहीं किया जा सकता। 

संदेह के घेरे में दोनों टेस्ट

पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट के सत-प्रतिशत सही होने पर सवाल उठते रहे हैं। पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) से भी कई बार सच सामने नहीं आ सका है। इससे बचने की गुंजाइश अपराधी के पास होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि आरोपी अपने शरीर पर, अपने हाव-भाव, दिल की धड़कन को कंट्रोल रखते हुए झूठ बोल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि आरोपी इससे बच सकता है। पालग्राफ और नार्को दोनों ही टेस्ट सौ प्रतिशत सही परिणाम नहीं देते हैं। दोनों की रिपोर्ट संदेह के घेरे में होती है। 

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