दक्षिण भारत की राजनीति पर नरसिम्हा राव और स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का क्या होगा असर, बीजेपी को कितना फायदा?
Bharat Ratna and South Politics: हाल के वर्षों में जिस तरह मोदी सरकार ने 'साउथ पॉलिटिक्स' को साधा है, वैसी सूरत में आज के फैसले को निःसंदेह उसी दिशा में एक कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
Lok Sabha Election 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व.कर्पूरी ठाकुर और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के बाद इस वर्ष 'भारत रत्न' के लिए तीन और नामों की घोषणा की है। केंद्र ने पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के साथ एक और पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव तथा हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को भी इस साल भारत रत्न देने की घोषणा की है। जिसके बाद सियासी गलियारों में इसे आगामी लोकसभा चुनाव में मिलने वाले फायदे और पीएम मोदी की दक्षिण की राजनीति को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि, हाल के वर्षों में जिस तरह मोदी सरकार ने 'साउथ पॉलिटिक्स' को साधा है, वैसी सूरत में आज के फैसले को निःसंदेह उसी दिशा में एक कदम के तौर पर देखा जाएगा। लेकिन, ये भी सच है कि भारतीय राजनीति में पीवी नरसिम्हा राव और कृषि के क्षेत्र में एमएस स्वामीनाथन का अभूतपूर्व योगदान रहा है।
पीवी नरसिम्हा राव और विवादित ढांचा गिराया जाना
मोदी सरकार ने पूर्व में भारत रत्न के लिए कर्पूरी ठाकुर और लालकृष्ण आडवाणी के नाम के बाद अचानक एक साथ तीन और नाम का ऐलान कर राजनीतिक पंडितों को चौंकाया। कई राजनीतिक धुरंधर भी गश खा गए। कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन के साथ जिस एक शख्स के नाम को भारत सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न देने का फैसला लिया है, वो हैं स्वर्गीय और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पीवी नरसिम्हा राव। 6 दिसंबर 1992 का वो दिन जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया तब पीवी नरसिम्हा राव ही प्रधानमंत्री थे। अब जबकि अयोध्या के नव्य, भव्य, दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है, तो नरसिम्हा राव को भारत रत्न दिए जाने को संघ और बीजेपी को बड़े सम्मान दिए जाने के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, तब नरसिम्हा राव की क्या भूमिका रही थी, ये अलग बहस का मुद्दा है।
नरसिम्हा राव से 'मिशन साउथ' साधने का प्रयास
पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव दक्षिण भारत से आते हैं। वह मूलतः आंध्र प्रदेश के करीमनगर (ये अब तेलंगाना में है) के रहने वाले थे। नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने से भाजपा का 'मिशन साउथ' पहले से और मजबूत होगा। केंद्र के इस कदम से बीजेपी तेलंगाना के साथ-साथ आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी फायदा उठाने की कोशिश करेगी। दरअसल, वर्षों से कांग्रेस पर नरसिम्हा राव को नजरअंदाज करने के आरोप लगते रहे हैं। अब भाजपा ये दावा कर सकती है कि, जिस बड़े नेता को कांग्रेस ने सम्मान नहीं दिया, उन्हें बीजेपी ने सम्मानित किया।बीजेपी को मिलेगा फायदा
वहीं, वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने देश को कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा काम किया था। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले इन दिग्गजों को भारत रत्न देने की घोषणा के बीजेपी और एनडीए को कई सियासी फायदे दे सकते हैं। बीजेपी लंबे समय से दक्षिण की राजनीति में जो पैठ बनाने की कोशिश कर रही है, उसमें जरूर मदद मिलेगी।
किसान हितैषी मोदी सरकार !
वहीं, ख्यातिप्राप्त कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का जन्म मद्रास प्रेसीडेंसी में वर्ष 1925 में हुआ था। स्वामीनाथन ने देश में खाने की कमी न होने के उद्देश्य से कृषि की पढ़ाई की थी। उन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है। वह पहले ऐसे शख्स रहे हैं, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म की पहचान की। जिसके कारण भारत में गेहूं उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। दक्षिण भारत में स्वामीनाथन का बहुत सम्मान और आदर रहा है। दरअसल, देश में किसानों की आर्थिक हालत सुधारने तथा पैदावार बढ़ाने के लिए स्वामीनाथन ने कई महत्वपूर्ण प्रयास किए थे। उनकी अध्यक्षता वाली कमेटी ने साल 2006 में एक रिपोर्ट सौंपी थी। जिसमें कई तरह की सिफारिशें की गई थीं। इनमें कई लागू हुई, जबकि कई सिफारिशों को लागू करने को लेकर किसान संगठन लगातार मांग करते रहे हैं। किसान संगठन समय-समय पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी कर चुके हैं। मोदी सरकार का प्रयास है कि, एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिए जाने से किसानों का गुस्सा कम हो सकता है। किसानों का सरकार के प्रति एक उम्मीद जग सकती है कि वो उनके हित में काम कर रही है।
गौरतलब है कि, इससे पहले भी दक्षिण के कई बड़े चेहरों को राज्यसभा भेजकर और पद्म पुरस्कारों के लिए चयनित किए जाने आदि से बीजेपी उनका हमदर्द बनने का प्रयास करती रही है। आने वाले दिनों में जब लोकसभा चुनाव होने हैं तो उससे पहले इसे भाजपा का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। चूंकि, दक्षिणी उत्तर की अपेक्षा भाजपा कमजोर है, ऐसे में ये संभव है कि इसका फायदा शायद पार्टी को मिले। कितना मिलेगा ये आने वाला वक़्त ही बताएगा।