Wheat Flour Export Ban: गेहूं-आटे की कीमतें बेलगाम, एक्सपोर्ट प्रतिबंध से नियंत्रण की कोशिश

Wheat Flour Export Ban: बढ़ती घरेलू कीमतों पर लगाम लगाने के लिए भारत गेहूं के आयात पर 40 प्रतिशत ड्यूटी में कटौती कर सकता है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2022-09-01 11:18 IST

Wheat Flour Export Ban: (photo: social media)

Wheat Flour Export Ban: गेहूं - चावल के मोर्चे पर सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। लगातार बढ़ती जा रही कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए पिछले शनिवार को सरकार ने गेहूं के आटे, मैदा, सूजी और चोकरयुक्त आटे के निर्यात पर प्रतिबंध की घोषणा की। अब, चावल के निर्यात पर प्रतिबंधों पर विचार किये जाने की खबरें हैं।

ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि बढ़ती घरेलू कीमतों पर लगाम लगाने के लिए भारत गेहूं के आयात पर 40 प्रतिशत ड्यूटी में कटौती कर सकता है। यही नहीं, अब भारत में गेहूं आयात करने की भी संभावना है।

वैसे, सरकार का कहना है कि गेहूं की स्थिति नियंत्रण में है। खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने कहा है कि गेहूं आयात की कोई योजना नहीं है क्योंकि घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देश में पर्याप्त स्टॉक है।

दरअसल, इस साल भयंकर हीटवेव के चलते गेहूं उत्पादन प्रभावित हुआ है। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई चेन ठप होने से भारतीय गेंहू की डिमांड बढ़ी और एक्सपोर्ट में बड़ा इजाफा हुआ। लेकिन विभिन्न वजहों से भारत में खाद्य पदार्थों की महंगाई बढ़ती जा रही है।

रूस-यूक्रेन युद्ध

दरअसल, रूस और यूक्रेन दोनों गेहूं के प्रमुख निर्यातक हैं, और वैश्विक गेहूं व्यापार में इनकी लगभग एक-चौथाई हिस्सेदारी है। युद्ध से पहले, यूक्रेन और रूस ने गेहूं और जौ के वैश्विक निर्यात का एक तिहाई हिस्सा भेजा था। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के कारण सप्लाई चेन ठप पड़ गईं, रूस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लग गए। इसका नतीजा ये हुआ कि गेहूं की ग्लोबल कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हो गई। इस वर्ष की शुरुआत से गेहूं की वैश्विक कीमतों में 40 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। युद्ध से पहले ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी की कीमतें 10 साल की ऊँचाई पर थीं।

भारत के गेहूं की डिमांड बढ़ी

भारत दुनिया में गेहूं और चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। युद्ध के कारण सप्लाई चेन बाधित होने पर भारतीय गेहूं की मांग बढ़ गई। बीते अप्रैल में भारत ने बाजार की कमी को भरने की उम्मीद की थी और कहा था कि वह 2022-23 में एक करोड़ टन गेहूं का एक रिकॉर्ड निर्यात करना चाह रहा है। इस ऐलान से वैश्विक कीमतें कुछ स्थिर हुईं और गेहूं की बड़ी कमी का भय भी कम हुआ।

देश में महंगाई

इस साल अभूतपूर्व हीटवेव के कारण उत्पादन घट गया तो घरेलू कीमतें रिकॉर्ड उच्च स्तर तक बढ़ गईं। इसके चलते मई में भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।

दामों में रिकार्ड वृद्धि

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, गेहूं का अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य पिछले साल 22 अगस्त को 25.41 रुपये प्रति किलोग्राम रुपये की तुलना में इस साल 22 प्रतिशत से बढ़कर 31.04 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है।

सरकार ने गेहूं के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाया तो गेहूं के आटे की डिमांड बढ़ गई। और इसके निर्यात में अप्रैल और जुलाई के बीच एक साल पहले की तुलना में 200 फीसदी की वृद्धि हो गई।

वजह चाहे जो हो लेकिन देश में गेहूं के आटे का औसत खुदरा मूल्य 17 प्रतिशत बढ़कर 35.17 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार, साल भर पहले ये 30.04 रुपये प्रति किलो था।

गोदामों में स्टॉक

22 जुलाई को, भारत में 27.6 मिलियन टन के स्टॉकिंग मानदंड के सापेक्ष 27.8 मिलियन टन गेहूं था। खाद्य सब्सिडी योजनाओं और रणनीतिक भंडार के लिए ये आवश्यक न्यूनतम भंडार है। सरकार ने अनुमान लगाया था कि गेहूं का उत्पादन 111.32 मिलियन टन के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच जाएगा।

लेकिन घरेलू उत्पादन में लगभग 3 प्रतिशत की गिरावट के कारण 2021-22 फसल वर्ष में 106.84 मिलियन टन तक कम उत्पादन हुआ और थोक व खुदरा बाजार दोनों में गेहूं की कीमतें भी बढ़ गईं।

वाणिज्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने कहा है कि देश के कुछ हिस्सों में हाल के हफ्तों में गेहूं और आटे की कीमतों में 20 से 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वैश्विक कीमतों में तेज वृद्धि के कारण, कुछ किसान सरकार की बजाय व्यापारियों को अपना स्टॉक बेच रहे हैं।

बहरहाल, गेहूं और आटे के दाम तो अभी ऊंचाई पर ही हैं और इनमें नरमी कब आएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण एक्सट्रीम मौसम की घटनाओं में वृद्धि ही होनी है सो भीषण गर्मी, अतिवृष्टि, बाढ़ और भयंकर ठंड के एपिसोड और ज्यादा फ्रीक्वेंसी पर आते रहेंगे जिनसे फसलों पर असर पड़ना तय है।

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