Adi Shankaracharya: कैसे बनते हैं शंकराचार्य? भारत में कब शुरू हुई यह परंपरा

Adi Shankaracharya: इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। आदि शंकराचार्य एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, जिन्हें हिंदूत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों के रूप में माना जाता है।

Written By :  Aakanksha Dixit
Update:2024-01-13 17:55 IST

Shankarachary source : newstrack 

Adi Shankaracharya: पूरे देश भर में अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा को लेकर तैयारियां काफी जोरो- शोरों से चल रही हैं। प्राण प्रतिष्ठा के लिए देश के वरिष्ठ गणमान्यों और साधु-संतों को राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से निमंत्रण भी भेजा गया है। इसी बीच, शंकराचार्यों का नाम भी काफी चर्चा में है। ऐसे में सभी के मन में ये प्रश्न उठ रहा है कि आखिर शंकराचार्य कौन होते है? भारतीय इतिहास में इनका क्या महत्व है? आज हम इसी विषय पर चर्चा करने वाले हैं? तो आइए जानतें हैं इस बारे में..

कब हुई शंकराचार्य की शुरुआत

शंकराचार्य एक हिन्दू धार्मिक गुरु और संत होते हैं, जो शंकराचार्य के पद की उपाधि को प्राप्त करते हैं। शंकराचार्य पद की उपाधि एक संस्कृत शब्द ‘‘आचार्य‘‘ के साथ जुड़ी हुई है, जिसका अर्थ होता है एक आदर्श गुरु या शिक्षक। इस पद की साधना उनके आध्यात्मिक ज्ञान, तपस्या और शिक्षा के प्रदर्शन के आधार पर होता है। वे अपने शिष्यों को वेदान्त और ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा देते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग दिखाते हैं।

आदि शंकराचार्य ने भारत में मठों की स्थापना की

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आदि शंकराचार्य ने भारत में मठों की स्थापना की। भारतवर्ष में उन्हें जगदगुरु के नाम से भी पुकारा जाता है। उन्होंने अपने मुख्य चार शिष्यों को देश के चार दिशाओं में स्थापित किए गए मठों की अधिकृति दी ताकि सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार हो सके। इन मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है। सनातन धर्म में शंकराचार्य को सर्वोच्च माना जाता है।

मठ का अर्थ

मठ का अर्थ ऐसे संस्थानों से है, जहां गुरुओं का मुख्य कार्य उनके शिष्यों को शिक्षा और उपदेश देना होता है। इन्हें पीठ भी कहा जाता है और इन गुरुओं का प्रमुख क्षेत्र आमतौर पर धार्मिक शिक्षा होता है। मठ में दी जाने वाली शिक्षा मुख्यतः आध्यात्मिक होती है। एक मठ में इन कार्यों के अलावा सामाजिक सेवा, साहित्य आदि से जुड़े कार्य भी होते हैं। मठ एक ऐसा शब्द है जिसका बहुधार्मिक अर्थ होता है। बौद्ध मठों को विहार कहा जाता है जबकि ईसाई धर्म में इन्हें मॉनेट्री, प्रायरी, चार्टरहाउस, एब्बे इत्यादि नामों से पहचाना जाता है।

कौन थे आदि गुरु शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य जी का जन्म 508 ईपू हुआ था। वे अद्वैत वेदांत के प्रमुख प्रवर्तक, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और हिन्दू धर्म प्रचारक थे। हिन्दू धर्म के अनुसार, इन्हें भगवान शंकर का अवतार माना जाता है। इन्होंने अपने जीवन में लगभग पूरे भारत में यात्रा की और इन्होंने अपना अधिकांश समय उत्तर भारत में व्यतीत किया। इन्होंने मुख्य चार पीठों की स्थापना की। इन्होंने कई ग्रंथ लिखे, लेकिन उनका अद्वैत दर्शन उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता के भाष्यों में प्रमुखता रखता है। आदि शंकराचार्य ने चारों मठों के साथ ही पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की और उन्हें अद्वैत परंपरा का प्रवर्तक माना जाता है। शंकराचार्य ने 474 ईपू अपनी देह को त्याग दिया था।

क्या है शंकराचार्य बनने की योग्यता

शंकराचार्य बनने की प्रक्रिया एक दीक्षा प्रक्रिया है। देश की चारों पीठों पर शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए कुछ योग्ताएं जरूरी हैं- वह त्यागी ब्राम्हण हो, ब्रह्मचारी हो, दंडी सन्यासी हो, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता हो, वह राजनीतिक न हो। यह प्रक्रिया विशेष गुरुकुलों में होती है, जो आध्यात्मिक शिक्षा और उन्नति के लिए स्थापित किए गए हैं।

यह है कुछ मुख्य चरण

आध्यात्मिक पठनः उम्मीदवार एक गुरुकुल में आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करते हैं, जहां उन्हें वेद, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कराया जाता है।

आचार्य की शिक्षाः आध्यात्मिक ज्ञान को सीधे गुरु के पास सीखने के बाद, उम्मीदवार किसी एक आचार्य के शिष्य बनते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें आचार्य द्वारा उच्च स्तर की आध्यात्मिक शिक्षा दी जाती है।

तपस्या और साधनाः शिष्य को आचार्य के मार्गदर्शन में तपस्या और साधना का अभ्यास करना होता है। यह उनके आत्मविकास को समर्थन करने के लिए महत्वपूर्ण है।

आध्यात्मिक दीक्षाः एक विशेष समय पर, आचार्य अपने शिष्य को आध्यात्मिक दीक्षा देते हैं, जिससे उन्हें आचार्य पद प्राप्त होता है। इस दीक्षा से उन्हें अद्वैत वेदान्त की गहन समझ और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।

कहां-कहां हैं शंकराचार्यों के चार मठ

ये चारों मठ ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में स्थापित किए गए थे। ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परंपरा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं।

श्रृंगेरी मठ

यह स्थान दक्षिण भारत के चिकमंगलूर में स्थित है। श्रृंगेरी मठ में दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों को सामान्यतः सरस्वती, भारती, और पुरी संप्रदाय के नामों से जाना जाता है, जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय के संन्यासी के रूप में पहचाना जाता है। इस मठ के प्रथम मठाधीश सुरेश्वराचार्य थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था।

मठ का महावाक्य है - ‘अहं ब्रह्मास्मि’।

इस मठ का वेद है- ‘यजुर्वेद’।

वर्तमान में शंकराचार्य का नाम है - स्वामी भारती कृष्णतीर्थ (36वें मठाधीश)।

गोवर्धन मठ

यह स्थान भारत के पूर्वी भाग, ओडिशा के जगन्नाथपुरी में स्थित है। गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों को सामान्यतः ‘आरण्य‘ सम्प्रदाय के नामों से जाना जाता है, जिससे उन्हें इस संप्रदाय के संन्यासी के रूप में पहचाना जाता है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आदि शंकराचार्य के पहले शिष्य पद्मपाद थे।

मठ का महावाक्य है - ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’।

इस मठ का वेद है - ‘ऋग्वेद’।

वर्तमान में शंकराचार्य का नाम है - निश्चलानंद सरस्वती (145वें मठाधीश)।

शारदा मठ

शारदा (कालिका) मठ गुजरात के द्वारकाधाम में स्थित है। इस मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ‘तीर्थ‘ और ‘आश्रम‘ सम्प्रदाय नाम का विशेषण लगाया जाता है, जिससे उन्हें इस संप्रदाय के संन्यासी के रूप में पहचाना जाता है। शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे, जो शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में एक थे।

मठ का महावाक्य है - ‘तत्त्वमसि’।

इस मठ का वेद है - ‘सामवेद’।

ज्योतिर्मठ

ज्योतिर्मठ उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है। यहां दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ एवं ‘सागर’ संप्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है। ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए थे।

मठ का महावाक्य- ‘अयमात्मा ब्रह्म’

इस मठ का वेद है दृ अथर्ववेद

मौजूदा शंकराचार्य- अब तक स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती इसके मठाधीश थे। अब उनके निधन से ये जगह रिक्त हो गई है। वर्तमान में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी हैं।

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