एयर स्ट्राइक पर सबूत मांगने से पहले ये जान लो कौन 'गिनता है कि कितने मरे'

एयर स्ट्राइक के बाद से ही ढेर हुए आतंकियों की गिनती 250 से 400 तक बताई जा रही है। वहीं कांग्रेस सहित विपक्ष सबूत मांग रहा हैं। सूत्रों के मुताबिक, हमले की अनुमति मिलने के बाद नैशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (एनटीआरओ) ने सर्विलांस शुरू किया था। सर्विलांस के दौरान यह जानकारी सामने आई कि कैम्प में करीब 300 मोबाइल फोन ऐक्टिव नजर आए थे।

Update:2019-03-05 11:11 IST

नई दिल्ली : एयर स्ट्राइक के बाद से ही ढेर हुए आतंकियों की गिनती 250 से 400 तक बताई जा रही है। वहीं कांग्रेस सहित विपक्ष सबूत मांग रहा हैं। सूत्रों के मुताबिक, हमले की अनुमति मिलने के बाद नैशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (एनटीआरओ) ने सर्विलांस शुरू किया था। सर्विलांस के दौरान यह जानकारी सामने आई कि कैम्प में करीब 300 मोबाइल फोन ऐक्टिव नजर आए थे। जिसके कुछ दिन बाद एयर स्ट्राइक हुआ था। ये तो रही सबूत की बात। लेकिन हम आपको बताएंगे कि जब युद्ध, हमला या कोई आपदा आती है तो कौन गिनता है कि कितने लोग मारे गए।

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पहले तो आप से समझ लें कि संघर्ष,आपदा या युद्ध में मरने वालों का कोई 'प्रामाणिक' आंकड़ा नहीं होता। सिर्फ आकलन किया जाता है। मरने वालों की संख्या गिनने की जिम्मेदारी स्थानीय संस्थाओं पर होती है। जैसे कि एयर स्ट्राइक के बाद ये जिम्मेदारी पाकिस्तान सरकार की थी कि वो बताए कि कितनी मौतें हुई है। लेकिन आपको जानकर हैरत होगी कि सरकारें अपने मनमुताबिक आकड़ें पेश करती है (जैसा पाकिस्तान सरकार ने किया) इसकी वजह ये होती है कि देश में कहीं हालत न बिगड़ जाएं।

ये भी जान लीजिए, जब बड़े पैमाने पर मौतें होती हैं तो संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं संख्या बताती हैं। लेकिन ये भी मोटी-मोटा तौर पर ही आकलनों पर निर्भर रहती हैं।

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दो तरह से गिनती होती है। पहला तरीका होता है शवों की गिनती या उस इलाके के घरों का सर्वे। दूसरा तरीका होता है अस्पतालों, मुर्दाघरों सहित अन्य एजेंसियों से मिले आकड़ों का आकलन।

लेकिन यहां एक समस्या भी सामने आती है। वो ये कि यदि किसी देश में तानाशाही है या फिर वो आतंकी ग्रुप्स के कब्जे में है तो आंकड़े जुटाना नामुमकिन हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वो देश अपने यहां किसी बाहरी को आने नहीं देते और स्वयं आकड़ें जारी करते हैं। जो कम से कम मौतों को उजागर करते हैं।

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इसकी विश्वसनीयता की बात करें तो ये निर्भर करता है कि आंकड़ों को कौन बता रहा है और उसकी बात लोग मान भी रहे हैं या नहीं।

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