संसद का शीतकालीन सत्र चढ़ा हंगामे की भेंट, लोकसभा 92 में से 19 घंटे ही चला, मात्र 2 बिल पास

Update:2016-12-16 17:02 IST
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नई दिल्ली: संसद का शीतकालीन सत्र 16 नवंबर से शुरू होकर 16 दिसंबर को खत्म हो गया। एक महीने तक चले सत्र में लोकसभा की कार्यवाही मात्र 19 घंटे ही चली। जनता के चुने प्रतिनिधियों ने लोकसभा के 92 घंटे काम के बर्बाद कर दिए। उम्मीद ये जताई जा रही थी कि नोटबंदी को लेकर विपक्ष अपनी बात रखेगा और सरकार अपना पक्ष रखेगी। लेकिन देश की जनता को इन सब से वंचित रह जाना पड़ा। जनता समझ ही नहीं सकी, कि विपक्ष कहना क्या चाहता है और सरकार ने ये निर्णय क्यों लिया।

सांसदों से सहयोग की थी उम्मीद

राज्यसभा की कार्यवाही 16 दिसंबर को स्थगित होने से पहले सभापति हामिद अंसारी ने सदन ठीक ढंग से नहीं चलने पर नाराजगी जताई तो लोकसभा की कार्यवाही नहीं चलने पर अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने अफसोस जताया। दोनों ने उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में सदन के सदस्यों का उन्हें कार्यवाही संचालन में सहयोग मिलेगा।

सुमित्रा महाजन ने कामकाज का दिया ब्यौरा

कार्यवाही के स्थगन से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन में हुए कामकाज और बर्बाद हुए समय का भी ब्यौरा दिया। उस वक्त लोकसभा में पीएम और सदन के नेता नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी के वरिष्ठ सांसद लालकृष्ण आडवाणी, कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी, संसदीय कार्यमंत्री अनंद कुमार समेत तमाम प्रमुख नेता मौजूद थे।

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19 घंटे ही चली लोकसभा की कार्यवाही

सुमित्रा महाजन के संबोधन के समय पीएम नरेंद्र मोदी बेहद गंभीर नजर आए। उन्होंने बताया कि लोकसभा की कार्यवाही 19 घंटे चली, जबकि कार्य व्यवधान के कारण 91 घंटे 59 मिनट बर्बाद हुए। संसद के पूरे सत्र में नोटबंदी को लेकर हंगामे के कारण कोई काम नहीं हो सका।

दो बिल ही पास हुए

नोटबंदी को लेकर विपक्ष न तो बहस के लिए तैयार था और न काम होने दे रहा था। लोकसभा में सिर्फ दो आयकर अधिनियम संशोधन विधेयक और विकलांगों को ज्यादा सुविधा और सहूलियत वाला बिल ही पारित किया जा सका। कई अन्य बिल बिना पेश हुए ही रह गए। लेकिन ये दोनों बिल अभी राज्यसभा से पारित होने बाकी है । जब तक ये राज्यसभा से पारित नहीं होता कानून नहीं बन सकता। हंगामे के कारण राज्यसभा में तो दोनों बिल पेश भी नहीं किए जा सके।

प्रति मिनट 2 लाख 50 हजार रुपए का आता है खर्च

दिलचस्प है कि हंगामे को लेकर अभी तक लोकसभा का नाम ही आगे रहता था, लेकिन इस बार राज्यसभा ने अपने छोटे सदन को पीछे छोड़ दिया। संसद में कोई काम नहीं होने से जनता के पैसे का अपव्यय तो हुआ ही साथ ही नोटबंदी और कैशलेस को लेकर न तो चर्चा हुई और न ही बहस। विपक्ष हंगामा कर अपना ही नुकसान कर बैठा। इससे जनता के बीच उसकी छवि पर भी असर पड़ा। गौरतलब है कि संसद सत्र के दौरान प्रति मिनट 2 लाख 50 हजार रुपए का खर्च आता है।

विपक्ष लगातार चर्चा से भागती रही

संसद का सत्र खत्म होने के पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि संसद में उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा। जबकि कांग्रेस समेत विपक्ष पूरे सत्र में इस बात पर अड़ा रहा कि चर्चा के दौरान पूरे वक्त पीएम संसद में मौजूद रहें। ये अलग तरह की शर्त थी। उसके बाद कहा गया कि वोटिंग के नियम के तहत चर्चा कराई जाए। दरअसल, ये विपक्ष के चर्चा से भागने का तरीका था।

ये भी सच है कि नोटबंदी को लेकर जनता को परेशानी आ रही है लेकिन विपक्ष बहस से दूर भागकर अपनी बात जनता तक नहीं पहुंचा सका। बहस नहीं होने से सरकार भी अपना पक्ष नहीं रख पाई।

पीएम को था नाराजगी का डर

पीएम नरेंद्र मोदी नोटबंदी को लेकर ये साफ कर चुके हैं कि इससे जनता को 50 दिन तक परेशानी होगी।मतलब तकलीफ का आलम आगामी 30 दिसंबर तक रहेगा। लेकिन बैंकों में कैश की हालत को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि इस प्रक्रिया में दो से तीन महीने से कम समय लगेगा। लगता है कि इस मामले में पीएम ने देश से 'असत्य' बोला। संभवत: उनको अंदेशा रहा होगा कि सही समय सीमा बताने से जनता की नाराजगी बढ़ सकती है।

कांग्रेस लगातार बदलती रही स्टैंड

नोटबंदी पर बहस को लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस लगातार अपना स्टैंड बदलती रही है। पहले कांग्रेस का कहना था कि बहस के दौरान पीएम मोदी सदन में मौजूद रहें और जवाब दें। विपक्ष के दबाव या मांग पर मोदी राज्यसभा में आए भी लेकिन कांग्रेस फिर अपने स्टैंड से पलटी और कहा कि पूरी बहस के दौरान पीएम को मौजूद रहना होगा। कांग्रेस ने अपनी बात से फिर पलटी मारी और इसके लिए संयुक्त संसदीय समिति की भी मांग की। बहस नहीं होना केंद्र सरकार को भी रास आ रहा था। जनता के बीच कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष की खराब होती छवि से मोदी सरकार प्रसन्न थी। लोकतंत्र में संसद ही सर्वोपरि होता है लेकिन पूरा विपक्ष सरकार को घेरने का मौका गंवा गया।

अब तक ये होता आया है कि सरकार के किसी काम पर संसद में ही बहस होती रही है। विपक्ष के सुझाव को सरकार मानती भी रही है जैसा कि वस्तु एवं सेवा कर कानून (जीएसटी) के मामले में हुआ। विपक्ष के कई सुझाव सरकार की ओर से माने गए। सरकार भी कहती रही कि नोटबंदी पर विपक्ष के पास कहने को कुछ नहीं था। विपक्ष ने सिर्फ हंगामा कर कामकाज को रोका।

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