KBC: 'गूंज' के फाउंडर ने बताई 'लाश से लिपटकर सोने वाली मासूम' की कहानी

पूरे देश में पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से चर्चित टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में' शुक्रवार को अंशु नामक सामालिक कार्यकर्ता की बारी थी जो गरीबों में कपड़े बांटने के लिए गूंज नामक संस्था चलाते हैं । 

Update:2017-09-16 13:44 IST

मुंबई: पूरे देश में पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से चर्चित टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में' शुक्रवार को अंशु नामक सामाजिक कार्यकर्ता की बारी थी जो गरीबों में कपड़े बांटने के लिए गूंज नामक संस्था चलाते हैं ।

गरीबी के लिए फुटपाथ पर रहने वाले लोगों को क्या-क्या नहीं करना पड़ता है। अंशु की माने तो उनका सामना दिल्ली में पांच साल की एक ऐसी बच्ची से हुआ, जो ठंड से बचने के लिए लाशों से लिपटकर सो जाती थी। अभिषेक बच्चन के साथ अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर बैठे अंशु ने कहा, पांच साल की बच्ची लाश के साथ सर्दी से बचने के लिए सोती थी। उसने अंशु को बताया था कि लाश हिलती नहीं और परेशान भी नही करती।

दरअसल, गेम शो में अंशु ने ये कहानी तब बताई जब अमिताभ ने उनसे उस प्रेरणा के बारे में जानना चाहा, जिसकी वजह से वह सामाजिक कार्य के लिए आगे आए। अंशु ने बताया ऐसी कहानियों ने उन्हें लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित किया। अंशु ने इससे जुड़े कई और अनुभव साझा किए।

वो पेशे से पत्रकार भी रहे हैं। शो के दौरान अमिताभ ने उनका परिचय देते हुए कहा कि उनकी संस्था गूंज देश के 22 राज्यों में सक्रिय है। इतना ही नहीं उनकी संस्था गूंज इस वक्त 10 बाढ़ग्रस्त राज्यों में राहत कार्यों में भी जुटी हुई है । शो में अंशु के साथ उनकी पत्नी और बेटी भी पहुंची थी।

अंशु गुप्ता का जन्म एक मध्य वर्गीय परिवार में हुआ। दसवीं पास करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग करने की तमन्ना से आगे की पढ़ाई विज्ञान विषय से की। इसके बाद वह दिल्ली आए और यहां उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन से पत्रकारिकता का कोर्स किया। लावारस लाशों को ढोने वाले एक शख्स पर स्टोरी करने के दौरान उन्हें वो बच्ची मिली थी। जो व्यक्ति लावारिस शव को ढोया करता था उसे अस्पताल की ओर से 20 रूपए और ढाई गज का कफन मिला करता था ताकि वो शव को ढक के ला सके। हमीद नाम के उस व्यक्ति की ही वो पांच साल की बच्ची थी जो शव के साथ लिपट कर सो जाया करती थी।

अंशु के अनुसार अभी उसके पास ढाई टन से ज्यादा कपड़े हैं जिसे वो देश के गांवों में गरीबों को बांटते हैं। इसकी शुरूआत उन्होंने अपने घर से की थी और 67 कपड़े निकाले थे जिसका इस्तेमाल घर वाले अब नहीं कर रहे थे जो किसी के काम आ गए ।

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