कावेरी जल विवाद : वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं, सिर्फ यहां

Update:2018-02-16 16:51 IST

नई दिल्ली : दक्षिण भारत सिर्फ और सिर्फ अपनी फिल्मों और कावेरी जल विवाद के लिए देश और दुनिया में जाना जाता है। लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुना दिया है। इसके बाद 1892 से चले आ रहे। इस पानी के बवाल को कोर्ट ने थामते हुए, संबंधित प्रदेशों के मध्य पानी का बंटवारा कर दिया है।

कोर्ट के निर्णय के बाद किसे कितना मिलेगा पानी

तमिलनाडु को 177.25 TMC

कर्नाटक को 192 TMC

केरल को 30 TMC

पुडुचेरी को 7 TMC

क्या है कोर्ट का फैसला

निर्णय चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सुनाया। इस निर्णय को पिछली 20 सितंबर को सुरक्षित रखा गया था। जानकारों के मुताबिक कोर्ट का ये फैसला कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल के फैसले का संशोधित रूप है।

कोर्ट ने 1994 के समझौते के आधार पर 22 बिंदुओं में अपना निर्णय सुनाया है।

ये भी देखें : कावेरी विवाद पर ‘सुप्रीम’ फैसला, कोर्ट ने कहा- नदी का पानी राष्ट्रीय संपत्ति

आखिर क्या है, कावेरी विवाद जो 1892 से चला आ रहा है

कावेरी नदी का उद्गम स्थल कर्नाटक के कोडागू जिले में है। इसके बाद ये लम्बा रास्ता तय करते हुए तमिलनाडु, केरल व पुडुचेरी से होते हुए बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। इस दौरान कावेरी तकरीबन 750 किमी लंबी यात्रा तय करती है। यह भी जान लीजिये कावेरी एक बरसाती नदी है।

आपको बता दें, कावेरी बेसिन में कर्नाटक राज्य का 32 हजार वर्ग किमी। जबकि तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किमी का इलाका आता है। कावेरी दोनों ही सूबों की सिंचाई संबंधी आवश्यकता पूरी करती है।

कई बार पानी के बदले बहा है खून

कर्नाटक और तमिलनाडु कावेरी पर हक जताते रहे हैं। कई बार दोनों राज्यों के किसानों में हिंसक झड़प हुई। जिसमें काफी खून बहा।

इतिहास में लिखा है विवाद

1892 में पहली बार कावेरी कानूनी पचड़े में शामिल हुई। मैसूर राजपरिवार और मद्रास प्रेसिडेंसी आमने सामने थी। इसके बाद दोनों पक्षों के मध्य पानी के बंटवारे को लेकर समझौता हुआ। लेकिन 1924 में किसान भड़क उठे। इसके बाद मामला कोर्ट में गया और इस बार केरल और पुडुचेरी भी विवाद में फांद पड़े। सभी के मध्य कोर्ट ने अगले 50 वर्षों के लिए समझौता करवा दिया।

वर्ष 1976 में चारों पक्षों के बीच समझौता हुआ। जिसकी घोषणा संसद में हुई थी। लेकिन चारों पक्षों ने इसका कभी भी पालन नहीं किया।

वर्ष 1986 में तमिलनाडु के किसानों की एक याचिका पर हाईकोर्ट ने भारत सरकार को ट्रिब्यूनल बनाने का आदेश दिया। 2 जून 1990 को एक ट्रिब्यूनल का गठन किया गया। 1991 में ट्रिब्यूनल ने एक अंतरिम आदेश दिया कि कर्नाटक हर महीने कितना पानी तमिलनाडु को देगा। लेकिन अंतिम निर्णय नहीं हुआ।

वर्ष 2007 में ट्रिब्यूनल के अंतिम निर्णय के अनुसार तमिलनाडु को 419 TMC पानी मिलना था (1TMC= एक हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट)। जबकि तमिलनाडु 562 TMC पानी मांग रहा था। जबकि कर्नाटक 465 TMC पानी मांग रहा था। ट्रिब्यूनल ने कर्नाटक को 270 TMC पानी देना तय किया।

इस निर्णय के पीछे कारण यह था कि ट्रिब्यूनल ने माना था कि कावेरी में 740 TMC पानी रहता है। इसके बाद केरल के हिस्से में 30 TMC, पुडुचेरी को 7 TMC पानी मिलता। लेकिन ट्रिब्यूनल के निर्णय से कोई भी प्रदेश सहमत नहीं था। इसके बाद साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को तमिलनाडु को और पानी देने के लिए कहा। कर्नाटक सरकार कोर्ट के आगे झुक गई लेकिन राज्य में माहौल हिंसक हो उठा।

अगस्त 2016 में तमिलनाडु ने शिकायत की कि इस साल कर्नाटक ने उसे कम पानी दिया है। इसके बाद बवाल इतना बढ़ा कि बेंगलुरु में 20 बसों को आग के हवाले कर दिया गया और पुलिस फायरिंग में एक की मौत हो गई।

कुछ तर्क तो कुछ कुतर्क

कर्नाटक का कहना है कि आजादी से पहले वो एक रियासत था। जबकि तमिलनाडु अंग्रेज बस्ती था। ऐसे में 1924 में जो समझौता हुआ वो दमनकारी था। जब देश आजाद हुआ और वर्ष 1956 में नए राज्य का गठन होने लगा तो पुराने समझौतों को रद्द होना चाहिए था। नदी पहले उसके पास आती है, तो सारे पानी पर अधिकार उसका है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद क्या अब सुलझ जाएगा विवाद

कोर्ट के फैसले से कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया तो खुश हैं। लेकिन तमिलनाडु की पालनीसामी सरकार आम आदमी के निशाने पर आ गई है। तमिलनाडु सरकार अब कोर्ट के निर्णय की समीक्षा में जुटने जा रही। जबकि हिंसा न भड़क उठे इसके लिए तमिलनाडु कर्नाटक सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। दोनों राज्यों के बस परिवहन पर भी रोक लगा दी गई है। लेकिन दोनों ही राज्यों में आदेश के विरुद्ध असंतोष की आग सुलग रही है। जो कानून व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी।

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