नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय में स्वीकार किया कि राजनीति के अपराधीकरण पर लगाम लगाने की जरूरत है। मगर सरकार का कहना था कि न्यायपालिका के बजाय संसद को इस पर विचार करना चाहिए।
महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ को आरोपपत्र सौंपने के बाद तीन चरणों में समय सीमा तय करने का सुझाव दिया, जिसमें आरोप तय करना, बरी करने के लिए आवेदन करना और आरोपों को निरस्त करने के लिए उच्च न्यायालय में अपील करना शामिल है।
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पहले से ही दंड संबंधी प्रावधान है जिसमें प्रथम जांच रिपोर्ट दर्ज करने के 90 दिनों के भीतर आरोपपत्र दाखिल करना अनिवार्य है। महान्यायवादी प्रधान न्यायाधीश की टिप्पणी पर जवाब दे रहे थे, जिसमें उन्होंने कहा कि यह समाज की मांग है कि राजनीति के अपराधीकरण पर रोक लगाने के लिए संसद को कानून में संशोधन करना चाहिए।
पीठ में प्रधान न्यायाधीश मिश्रा के अलावा न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि हत्या के मामले में आरोपी राजनेता कैसे संविधान और विधि-शासन को कायम बनाए रख सकते हैं। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, "यहां एक लक्ष्मण रेखा है। हम सिर्फ कानून की घोषणा करते हैं जबकि विधायिका कानून बनाती है।"
वकील दिनेश द्विवेदी ने बताया कि संसद और राज्यों के विधानमंडलों में 34 फीसदी सांसदों और विधायकों पर आपराधिक मामलों का आरोप है। द्विवेदी याचिकाकर्ता एनजीओ पब्लिक इंटेरेस्ट फाउंडेशन की ओर से पेश हुए थे। द्विवेदी और महान्यायवादी की शंका के संदर्भ में प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने कहा, "हम इस विषय पर कानून नहीं बनाना चाहते हैं, बल्कि हम चाहते हैं कि संसद यह कार्य करे।"
--आईएएनएस