केंद्र सरकार के खिलाफ लामबंद हो रहे IIMs, निशाने पर नई गाइडलाइंस

Update: 2018-11-14 11:49 GMT

नई दिल्ली : भारतीय प्रबंधन संस्‍थानों (आईआईएम्स) और सरकार के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। देश के सभी आईआईएम्स मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा हाल में घोषित पीएचडी योग्‍यता मानदंडों का विरोध कर रहे हैं। सरकार के सामने क्या कहना है इसके लिए सभी आईआईएम्स के निदेशक 13 दिसंबर को बड़ी बैठक करेंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईआईएम अहमदाबाद ने मंत्रालय को चिट्ठी लिख पीएचडी गाइडलाइंस पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है।

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प्रबंधन संस्‍थानों का कहना है कि सरकार ने आईआईएम्स में पीएचडी कार्यक्रमों के लिए जो योग्‍यता मानदंड तय किए हैं, वह ‘प्रतिबंध’ जैसे हैं और फेलो प्रोग्राम इन मैनेजमेंट की प्रकृति के खिलाफ हैं। इन मानदंडों को तय करने में आईआईएम्स को दी गई स्वायत्तता के अनुरूप कार्य नहीं किया गया है।

आपको बता दें, केंद्र सरकार की ओर से 23 अक्‍टूबर को सभी प्रबंधन संस्‍थानों के निदेशकों को पीएचडी कार्यक्रमों में प्रवेश की न्‍यूनतम मानदंडों के बारे में लिखित में जानकारी दी थी।

क्या है चिंता का विषय

योग्‍यता मानदंडों में तीन पहलुओं पर आईआईएम्स ने चिंता जताई है। इनमें चार वर्षीय डिग्री या बीटेक वाले उम्‍मीदवारों के लिए 8 सीजीपीए, एक साल की बजाय दो वर्ष के पोस्‍ट ग्रेजुएट डिप्‍लोमा और सीए, सीएस या आईसीडब्लूए जैसे कोर्स के बाद भी ग्रेजुएट डिग्री की आवश्‍यकता शामिल हैं।

आईआईएम्स चाहते हैं कि एक पीएचडी कार्यक्रम दो साल का ही रखा जाए। पुराने आईआईएम्स अभी डॉक्‍टोरल एफपीएम देते हैं। लेकिन आईआईएम एक्ट, 2017 के प्रभावी होने के बाद, आईआईएम्स इसकी जगह पीएचडी डिग्रियां दे सकते हैं।

क्या कहता है मंत्रालय

मंत्रालय के मुताबिक जो गाइडलाइंस आई हैं, वो विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग के मानकों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थानों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं को ध्‍यान में रखकर बनाई गई हैं। मंत्रालय की मंशा है कि सभी संस्‍थानों में एकरूपता होनी चाहिए।

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