नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा में बीते 2 जून को जवाहर बाग में हुई हिंसा के मामले की जांच सीबीआई से कराने की जनहित याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष और जस्टिस अमिताभ रॉय की पीठ ने बहस के बाद अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। यह जनहित याचिका सीनियर एडवोकेट कामिनी जायसवाल ने दी थी।
क्यों सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका ?
-जस्टिस रॉय ने कहा कि हर मामले में सीबीआई जांच के आदेश नहीं दिए जा सकते।
-इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश तभी दिया जा सकता है जब यह साबित हो जाए कि राज्य सरकार जांच कराने में अक्षम है या रुचि नहीं ले रही।
-इसके अलावा राज्य की जांच एजेंसी निष्पक्ष जांच नहीं करा पा रही है।
-याचिकाकर्ता को पहले हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए।
-हाईकोर्ट के आदेश पर ही यूपी पुलिस अतिक्रमण हटाने गई थी।
क्या कहना है याचिकाकर्ता का ?
-घटना की शुरुआत से ही सबूत नष्ट किए जा रहे हैं और करीब 200 वाहन पहले ही जलाए जा चुके हैं।
-हिंसा की गंभीरता को देखते हुए सीबीआई जांच जरूरी है।
याचिका में क्या कहा गया है?
-जवाहर बाग में कब्जा हटाने के लिए कार्रवाई के दौरान एसपी और एसओ समेत 29 लोग मारे गए।
-इस हिंसक झड़प के मास्टरमाइंड रामवृक्ष यादव को राजनीतिक संरक्षण हासिल था।
-राजनीतिक संरक्षण की वजह से रामवृक्ष अपनी समानांतर सरकार पिछले दो साल से चला रहा था।
-जवाहर बाग में काफी गोला-बारूद जमा था, जो बिना सरकारी और राजनीतिक संरक्षण के मुमकिन नहीं है।
मीडिया में आई खबरों का दिया हवाला
-याचिका में मीडिया में आई खबरों का हवाला दिया गया है।
-घटना की निष्पक्ष जांच की अपील अदालत से की गई है।
-कहा गया है कि ऐसी संभावना है कि सरकार अपने मंत्री का बचाव कर सकती है।
-केंद्र और कई विपक्षी दल सीबीआई जांच के पक्ष में हैं, सत्तारूढ़ सपा नहीं चाहती।
-निष्पक्ष जांच के लिए केस सीबीआई के हवाले किया जाए।
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दादरी के मुकाबले कम मुआवजे पर भी सवाल
याचिका में ये भी कहा गया है कि प्रतापगढ़ के कुंडा में डीएसपी जिया-उल-हक और दादरी के बिसाहड़ा गांव में अखलाक को सपा की सरकार ने ज्यादा मुआवजा दिया, जबकि जवाहर बाग में मारे गए पुलिसकर्मियों को मुआवजा कम दिया गया। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि मुआवजे को लेकर एक समान नीति होनी चाहिए।
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