नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक महिला को 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दे दी। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित सात केईएम मेडिकल कॉलेज की 7 सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट के बाद लिया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि इस कदम से महिला की जान कोई खतरा नहीं है।
कमेटी ने रिपोर्ट में कहा, कि भ्रूण में न तो खोपड़ी और न ही लीवर। इसके साथ ही भ्रूण की आंत भी शरीर के बाहर बढ़ रही है। कमेटी यह भी बताया कि यह भ्रूण जन्म के दौरान बच नहीं पाएगा, बावजूद इसके महिला बच्चे को जन्म देती है तो उसकी जान को खतरा है।
अटॉर्नी जनरल की दलील
इस मामले में केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी पेश हुए। उन्होंने कहा, 'इस मामले में केंद्र 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी' (एमटीपी) एक्ट की धारा-5 के तहत गर्भपात की अनुमति दे सकता है, क्योंकि इस मामले में मां की जान को खतरा है। बाकी की धाराओं को लेकर हम अभी कुछ नहीं कहना चाहेंगे, क्योंकि ये एक बेहद गंभीर मामला है। कन्या भ्रूण हत्या के मद्देनजर रियायत देने पर कानून के गलत इस्तेमाल की संभावना है।'
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'कुछ परिस्थितियां अपवाद हैं'
सर्वोच्च न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट और अटॉर्नी जनरल की दलीलों को ध्यान में रखते हुए कहा की हम एमटीपी एक्ट की धारा-5 के तहत गर्भपात की इजाजत देते हैं। धारा-5 में कुछ अपवाद परिस्थितियां हैं, जिनमें 20 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है। मां की जान को खतरा ऐसा ही एक अपवाद है।
क्या है मामला ?
गौरतलब है कि 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की मांग करने वाली महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद ही वह मामले में आदेश देगा। खुद को रेप पीड़ित बताने वाली महिला का कहना है कि उसका भ्रूण सामान्य नहीं है। वह अनुवांशिक बीमारी से पीड़ित है। आंतों की समस्या के साथ ही भ्रूण का मस्तिष्क भी विकसित नहीं हो रहा है। ऐसे में बच्चे के पैदा होते ही मर जाने की आशंका है।
जस्टिस जेएस केहर और जस्टिस दीपक मिश्रा ने याचिका में उठाए गए दूसरे संवैधानिक मुद्दों पर सुनवाई के लिए याचिकाकर्ता को उस बेंच के सामने जाने को कहा है जो एमटीपी एक्ट की कई धाराओं की संवैधानिक वैद्यता पर पहले से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है.
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20 हफ्ते के भ्रूण का ही हो सकता है गर्भपात
महिला ने याचिका दायर कर कोर्ट से 20 हफ्ते तक ही गर्भपात की मंजूरी के कानून की समीक्षा की मांग की थी। याचिका में एमटीपी एक्ट की धारा 3(बी) को चुनौती दी गई। मांग की गई कि इसे असंवैधानिक घोषित करार दिया जाए। इस धारा के मुताबिक कोई भी महिला 20 हफ्ते के बाद गर्भपात नहीं करा सकती है।
1971 में बना था कानून
याचिका के मुताबिक 1971 में जब यह कानून बना था तब भले ही इस धारा का औचित्य हो सकता हो, लेकिन आज इसका औचित्य नहीं है। ऐसी आधुनिक तकनीक मौजूद हैं, जिससे 26 हफ्ते के बाद भी गर्भपात करवाया जा सकता है।