नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व सांसदों को जीवनभर दी जाने वाली पेंशन व परिवारिक पेंशन को समाप्त करने की मांग संबंधी एक याचिका पर बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और कहा कि इसे 'भेदभाव' के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता। न्यायालय इस मामले में एनजीओ लोक प्रहरी की याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिका में कहा गया है कि 82 प्रतिशत सांसद 'करोड़पति' हैं और गरीब करदाताओं पर उनकी पेंशन या उनके परिवार की पेंशन के खर्च का भार नहीं डाला जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा, "हम सहमत हैं कि यह एक आदर्श स्थिति नहीं है, लेकिन हम इस पहलू को नहीं परख सकते।"
याचिकाकर्ता ने बहस के दौरान कहा कि लोगों को अपने टैक्स के पैसे को पूर्व सांसदों को देना पड़ता है, इसपर न्यायमूर्ति चेलेमेश्वर ने कहा, "हम आंकड़े लेते हैं। कितने पूर्व नौकरशाह करोड़पति हैं? क्या उनकी पेंशन को रोक देना चाहिए?"
चुनाव आयुक्तों, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और सांसदों के कार्यालयों का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि उनके काम करने की स्थिति अलग होती है और उनकी तुलना जिंदगी भर सर्विस करने वाले लोगों के पेंशन से नहीं की जा सकती।
शीर्ष अदालत ने कहा, "आप सभी पेंशनधारी को एक वर्ग में नहीं रख सकते।"
ये भी देखें : ‘ऑनर किलिंग’ होगा संज्ञेय अपराध, प्रेमी युगल को सुरक्षा देगी सरकार
न्यायालय लोकप्रहरी की ओर से पेश एस.एन. शुक्ला की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें पूर्व सांसदों को पेंशन दिए जाने को संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत नागरिकों के समानता के अधिकार का हनन बताया गया है।
शुक्ला एक पूर्व शीर्ष नौकरशाह हैं और इस एनजीओ के महासचिव हैं।
शुक्ला ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों के पेंशन को भी बंद करना चाहिए।
हालांकि, अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने पूर्व सांसदों को पेंशन दिए जाने के पक्ष में कहा कि उनकी गरिमा को बनाए रखना चाहिए। उन्होंने यह कहकर सांसदों को यात्रा भत्ता दिए जाने के प्रावधान का भी पक्ष लिया कि उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों की यात्रा भी करनी पड़ती है।
शुक्ला ने पीठ से कहा कि किसी भी अन्य लोकतंत्र में सांसदों को पेंशन नहीं मिलती है, इस पर न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि क्या ऐसा कोई लोकतंत्र है जहां इस तरह के मामले का निर्णय न्यायालय लेता है।
शुक्ला ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, "कुछ लोगों के लाभ के लिए संविधान में संशोधन करना सही नहीं है और इससे साफ-सुथरे चुनाव कराने के लिए एकसमान मौका दिए जाना बाधित होता है।"