बेलगाम UP पुलिस: विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद पूरा महकमा सवालों के घेरे में
लखनऊ: गीता के चौथे अध्याय के आठवें श्लोक को उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपना ध्येय वाक्य बनाया है जिसका अर्थ है ‘साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए, धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूं।’ ये बात श्री कृष्ण ने कही है लेकिन उत्तर प्रदेश की मित्र पुलिस इस श्लोक के ‘विनाशाय च दुष्कृताम’ की जगह ‘विनाशाय च साधूनाम’ पर आमादा है।
पुलिस ने सुर्खियां जब भी हासिल की हैं तो वजह साधुओं का उद्धार नहीं, विनाश ही रहा है। बीते दिनों राजधानी लखनऊ में एप्पल कंपनी के मैनेजर विवेक तिवारी की सिपाही प्रशांत चौधरी ने रात में गोली मार कर हत्या कर दी। इस घटना के बाद पूरा पुलिस महकमा सवालों के घेरे में है। सवाल यह कि प्रशांत चौधरी को बचाने की जुगत कौन और क्यों कर रहे थे। सवाल यह कि विवेक तिवारी की गाड़ी के क्षतिग्रस्त होने के दृश्य अलग-अलग क्यों थे।
सवाल यह कि इसे आत्मरक्षा में सिपाही द्वारा गोली चलाया जाना क्यों बताया जा रहा था। सवाल यह कि पुलिस महकमे में काली पट्टïी बांध कर विरोध दर्ज कराया जा रहा है। सवाल यह कि प्रशांत चौधरी के लिए चंदा इकठ्ठïा किया जा रहा है। ऐसे तमाम सवाल पुलिस के इर्दगिर्द घूम रहे हैं। और प्रदेश भर में हर रोज किसी न किसी वारदात के साथ यक्ष प्रश्न की तरह अनुत्तरित मिलते हैं। अश्लील पोस्ट डालने के मामले में सिपाही सर्वेश चौधरी के खिलाफ मुकदमा लिखना पड़ता है।
अंग्रेजों के शासनकाल में ही रॉयल पुलिस कमीशन ने पुलिसिया ढांचे में आमूल चूल बदलाव की सिफारिश की थी वो भी तब जबकि पुलिस का गठन भारतीय जनविद्रोह को कुचलने के लिए किया था। आजादी के बाद भी कई पुलिस आयोग बने, पुलिस ढांचे और उसकी कार्यपद्धति में सुधार की बातें तो खूब हुईं पर हुआ कुछ नहीं। नतीजतन आज भी पुलिस जनता के लिए खौफ और दहशत का पर्याय बनी हुई है।
यूपी पुलिस हाल के समय में एनकाउंटरों के मामले में मानवाधिकार संगठनों के निशाने पर है। ‘सिटीजन्स अगेंस्ट हेट’ नामक संगठन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत की है कि इस साल मई से यूपी में १२०० लोगों को पुलिस ने मार गिराया है। आयोग ने इसका संज्ञान लेते हुए ३७ मामलों की जांच के लिए डीजीपी से कहा है। इस साल जुलाई में सुप्रीमकोर्ट ने भी यूपी सरकार को एनकाउंटर मामले में नोटिस जारी किया था।
पर्दा डालने में जुटे रहे अफसर
लखनऊ में हुए विवेक तिवारी हत्याकांड ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है। एप्पल कंपनी के मैनेजर विवेक तिवारी बीते 28 सितंबर को सहकर्मी सना को देर रात घर छोडऩे जा रहे थे। गोमतीनगर एक्सटेनशन में अचानक बाइक पर सवार दो पुलिसवाले आए। पीछे वाले सिपाही संदीप कुमार के हाथ में डंडा था और आगे वाले सिपाही प्रशांत चौधरी के पास रिवॉल्वर।
उन्होंने विवेक से गाड़ी रोकने को कहा। विवेक और सना डर गये कि इतनी रात को ये पुलिसकर्मी पता नहीं क्या करें। इसलिए विवेक ने उनसे बचकर निकलने की कोशिश की। इसी में उनकी कार सिपाहियों की बाइक से टकरा गई।
इसके बाद प्रशांत नामक सिपाही ने रिवाल्वर से निशाना साध कर विवेक को गोली मार दी। इसके बाद विवेक ने जान बचाने के लिए अपनी एसयूवी ले कर भागे, लेकिन गाड़ी शहीद पथ अंडरपास के एक पोल से टकरा गई। इस जघन्य घटना का शर्मनाक पहलू यह रहा कि पुलिस अधिकारियों ने मामले पर पर्दा डालने की भरसक कोशिश की। पुलिस और प्रशासनिक अफसरों की इन कोशिशों से सरकार की जमकर किरकिरी हुई। घटनास्थल से थाने पहुंचते-पहुंचते एसयूवी की रंगत इतनी बदल गई की उसे पहचानना मुश्किल हो गया।
गाड़ी को डैमेज किया गया और नम्बर प्लेट गायब कर दीगई। मौके से सबूतों को भी नष्ट करने की कोशिश हुई। एक सच छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने की कहावत पर अमल करते हुए राजधानी पुलिस के मुखिया ने पुलिस की खूब किरकिरी कराई। एसएसपी लखनऊ कलानिधि नैथानी घटना की सूचना मिलने के बाद मौके पर जरूर पहुंच गए मगर उनकी कोशिश पीडि़त को इंसाफ दिलाने के बजाय आरोपी को बचाने की ज्यादा नजर आई।
चश्मदीद से सादे कागज पर दस्तखत भी एसएसपी की मौजूदगी में ही कराया गया। यही नहीं हद तो यह हो गई कि विवेक तिवारी की बड़ी बेटी प्रियांशी ने आरोप लगाया कि डीएम और एसएसपी मम्मीपर दबाव बना रहेथे। डीएम कौशल राज शर्मा ने विवेक की पत्नी से कहा ‘कोई पूछने नहीं आएगा और काम के लिए मेरे पास ही आना पड़ेगा।’
सिपाहियों के बगावती तेवर
सरकार के कड़े तेवर के बाद दोनों सिपाहियों पर हत्या का मामला दर्ज किया गया और दोनों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन अब मामला बिगड़ता ही जा रहा है। प्रशांत नामक सिपाही ने कोर्ट में अर्जी दी है कि उस पर एसयूवी चढ़ाने की कोशिश की गई थी और उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई और उसकी भी एफआईआर दर्ज की जाए।
यही नहीं, यूपी पुलिस के तमाम सिपाही सोशल मीडिया पर विवेक तिवारी, उनकी पत्नी कल्पना तिवारी, सना खान, पुलिस के अफसरों को लेकर बेहद आपत्तिजनक बातें लिख रहे हैं। सिपाहियों को गोलबंद करके विद्रोह के लिए भडक़ाया जा रहा है। सिपाहियों ने प्रशान्त चौधरी के लिए चन्दा जमा करना शुरू कर दिया है। इस बीच जवानों ने काली पट्टी बांधकर विरोध जताने और सामूहिक अवकाश पर जाने की भी धमकी दी है।
कानून की नजर में सब बराबर:डीजीपी
डीजीपी ओ पी सिंह ने कहा कि कानून की नजर में सब बराबर हैं। उन्होंने बताया कि लखनऊ में विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है। इस तरीके की घटना किसी भी कीमत पर अक्षम्य नहीं होगी। डीजीपी ने बताया कि सिपाहियों ने जो कृत्य किया वह सीधे-सीधे अपराध की श्रेणी में आता है। यही वजह है कि उन्हें सस्पेंड करके गिरफ्तार किया गया और बाद में बर्खास्त भी किया गया। उन्होंने बताया कि हाल में ही उन्होंने पुलिसकर्मियों के साथ सीधा संवाद शुरू किया हैताकि जो कमियां हैं, वो उनके सामने आएंगी और उसका निराकरण किया जाएगा।
पुलिस के चंद कारनामे
एक मुस्लिम लडक़े व हिन्दू लडक़ी पर पुलिसिया कहर टूटा था। पुलिस वालों ने लडक़ी की पिटाई की और उस पर अपने ही दोस्त के खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज कराने के लिए दबाव बनाया। पुलिस पूरे मामले को लव जिहाद़ का रंग देने में लगी रही। घटना का वीडियो वायरल होते ही 4 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया।
लखनऊ के इंजीनियरिंग कालेज चौराहे के पास रात में एक टेम्पो व ई-रिक्शा से टक्कर होने पर एक सिपाही ने टेम्पो ड्राइवर को बाल पकडक़र सडक़ पर बूटों से रौंदा था। घटना का वीडियो वायरल होने पर सिपाही व एक दरोगा को सस्पेंड किया गया। थाना इंचार्ज को लाइनहाजिर किया गया।
27 जुलाई, अम्बेडनगर : जिले में पुलिस की गुंडई का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें 3 पुलिसकर्मी बस के ड्राइवर और कडंक्टर को सरेराह पीटते दिख रहे थे। कडंक्टर की गलती बस इतनी थी कि उसने बस में सफर कर रहे दीवान से किराया मांग लिया था। इस मामले में दो सिपाही और एक होमगार्ड को निलंबित किया गया।
28 जुलाई, लखनऊ : इंदिरानगर निवासी एक सरकारी डॉक्टर की नौकरानी के पिता को चोरी के इल्जाम में पुलिस ने थाने में बंद कर दिया। डाक्टर साहब जब उन्हें छुड़ाने गए तो उन्हीं को थाने के पुलिसवालों ने बुरी तरह पीट दिया व पैसे लूट लिए। इस मामले में एक सिपाही को लाइनहाजिर कर दिया गया।
13 जुलाई, आगरा : एक व्यापारी से बदमाशों ने 15 लाख रुपए लूट लिए थे। जांच में सामने आया कि इस लूट में 4 सिपाही भी शामिल थे। इन सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
27 जून, लखनऊ : जनेश्वर मिश्र पार्क के पास चेकिंग के दौरान पुलिस के सिपाही ने एक लडक़ी को डंडा मार दिया। इस मामले में दो सिपाही सस्पेंड किए गए।
23 मई, लखनऊ: गोसाईगंज थाने के पुलिसवालों ने एक टैक्सी ड्राइवर को मांस तस्करी के मामले में फंसाने की धमकी देकर उससे १ लाख १५ हजार वसूल लिए। इस मामले में एक दरोगा व दो सिपाही सस्पेंड किए गए।
25 अप्रैल, सीतापुर : सीतापुर जिले में तिलक समारोह के दौरान हुई एक ट्रैफिक कांस्टेबल ने फायरिंग की जिसमें एक लडक़े की मौत हो गई। गोली चलाने वाले सिपाही को गिरफ्तार किया गया।
३ फरवरी, नोएडा : एक सब इंस्पेक्टर ने एनकाउंटर के नाम पर एक जिम ट्रेनर को गोली मार दी। इसमें तीन पुलिसकर्मी सस्पेंड हुए और सब इंस्पेक्टर को गिरफ्तार किया गया।
18 जनवरी, मथुरा : थाना हाईवे इलाके के पुलिस ने इनकाउंटर के दौरान एक आठ वर्षीय मासूम को गोली मार दी। इसमें एसआई सहित 4 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया।
17 फरवरी, लखनऊ : पुलिस इंस्पेकटर त्रिलोकी सिंह ने एक तेंदुए की गोली मारकर ह्त्या कर दी। कोई कार्रवाई नहीं हुई।
लखनऊ के गाजीपुर थाने में तैनात थानाध्यक्ष संजय राय ने अपनी प्रेमिका को हासिल करने के लिए उसके भाई माज की हत्या करवा दी थी। संजय को गिरफ्तार किया गया लेकिन फिलहाल जमानत पर रिहा है।
सिपाहियों को देंगे 12 दिन की ट्रेनिंग
विवेक तिवारी की हत्या के बाद अब सिपाहियों की ट्रेनिंग कराने का फैसला किया गया है। फिलहाल ट्रेनिंग का यह कार्यक्रम लखनऊ पुलिस के करीब 6000 सिपाहियों से शुरू किया जायेगा। ट्रेनिंग से मिलने वाले नतीजे के बाद इसको पूरे प्रदेश भर में लागू भी किया जा सकता है। 12 दिनों में अलग-अलग विषयों को अब सिपाहियों की ट्रेनिंग करायी जाएगी।
एडीजी जोन राजीव कृष्णा ने बताया कि भर्ती होने के बाद सिपाहियों की 9 माह की ट्रेनिंग करायी जाती है। इसके बाद ट्रेनिंग के लिए कुछ नहीं किया जाता है। अब इस बात की जरूरत सामने निकल कर आ रही है कि फिर से ट्रेनिंग होना जरूरी है। एडीजी ने बताया कि सिपाहियों की ट्रेनिंग के लिए पुलिस विभाग के आलाधिकारी, सेवानिवृत्त अधिकारी तो रहेंगे ही। कुछ नागरिकों, पत्रकारों और वकीलों को भी ट्रेनिंग देने के लिए आमंत्रित किया गया है। ट्रेनिंग देने के लिए इच्छुक लोग एडीजी से सम्पर्क कर सकते हैं।
इस ट्रेनिंग में हथियार चलाना व रख-रखाव, संदिग्ध की चेकिंग, क्राइम सीन का कैसे सुरक्षित किया जाये, गिरफ्तारी, घायल की मदद, वीआईपी सिक्योरिटी, भीड़ प्रबंधन, सोशल मीडिया का प्रयोग, क्राइम कंट्रोल, एनसीआर और प्रार्थना पत्र की जांच आदि सिखाया जाएगा। एक बार सिपाहियों की ट्रेनिंग होने के बाद इस बात की भी कोशिश की जायेगी कि समय-समय पर थानाध्यक्ष, सीओ और एडिशनल एसपी अपने-अपने इलाके में तैनात सिपाहियों को भी इस तरह की ट्रेनिंग देते रहें।
राजीव कृष्णा ने बताया कि विवेक तिवारी की हत्या ने विभाग की छवि को धूमिल कर दिया है। जो कुछ भी हुआ वह गलत था।
अमेरिका में पुलिस पर लगा दिया था अदालत का पहरा
वर्ष २००० में अमेरिका की लॉस एंजिल्स पुलिस (एलएपीडी) को ५ साल के लिए एक संघीय अदालत के सुपरविजन में रख दिया गया था। कारण था पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार, अक्षमता, दमनकारी व्यवहार, नस्लवादी हरकतें और नागरिकों के अधिकारों का हनन। एलएपीडी की चार साल तक जांच करने वाले अमेरिकी संघीय न्याय विभाग ने एलएपीडी पर आरोप लगाया कि उसने पूर्व में किए सुधार प्रयासों की अवहेलना की। बहरहाल, संघीय सुपरविजन कई समीक्षाओं के बाद २००९ में हटा। आज यूपी पुलिस की भी यही स्थिति है।
राजन सिंह ने आईपीएस छोडऩे के ये बताए कारण
(राजन सिंह ने आईआईटी से पढ़ाई की है। वे अब ‘कॉन्सेप्ट आउल’ के सीईओ हैं)
‘मैंने २००५ में आईपीएïस छोड़ दी। हां, आईपीएस में आने के लिए कठिन मेहनत करनी पड़ती है। मुझे तो सर्विस में आने के बाद सौ गुना ज्यादा कठिन मेहनत करनी पड़ी। तो फिर इतना सब करने के बाद ये सर्विस क्यों छोड़ी? इसके कई कारण हैं :
- थोड़े समय के बाद ये सब बहुत उथला लगने लगा। बहुत से आईएएस या आईपीएस अफसरों, जिन्हें मैं देखता था, उनके प्रति मेरे मन में कोई सम्मान भाव पैदा नहीं होता था। उनमें से ज्यादातर स्किल या क्षमता के मामले में एक ठहराव की स्थिति में थे।
- सिर्फ इधर-उधर भागने से आप ज्यादा स्मार्ट नहीं बन जाते। (लाल-नीली बत्ती जो अब जा चुकी है, आपकी कार पर मात्र एक बल्ब के अलावा कुछ नहीं होती)
- जो कुछ भी छोटा-मोटा बदलाव आप लाते हैं वो स्थायी नहीं होता। मेरे विचार से मेरा सबसे बड़ा योगदान त्रिवेंद्रम में गंभीर अपराध के मामलों से जुड़े हजारों लोगों को ट्रैक करने का सिस्टम बनाने का रहा। इस सिस्टम के लिए सॉफ्टवेयर हमने ही बनाया था। हर रात गश्ती दल इस सूची में दिए गए लोगों को चेक करती थी और उन लोगों की लोकेशन रोजाना अपडेट होती थी। खैर, मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे वहां से ट्रांसफर के बाद वो सिस्टम दो हफ्ते भी नहीं चल पाया होगा।
- सिस्टम कतई काम नहीं करता है और आप इसे सुधार नहीं सकते। हर कोई असहाय प्रतीत होता है। सही काम करने वाले एक इनसान की बजाय परत दर परत अक्षम लोग हैं।
- उत्कृष्टïता के लिए कोई रिवार्ड नहीं है। मेरे साथ कुछ बहुत बेहतरीन पुलिसकर्मी काम करते थे, लेकिन मैं उन्हें उनके बैचमेट से एक दिन भी पहले प्रमोशन या वेतन वृद्धि नहीं दे सका।कुछ समय के बाद ये काम बौद्धिक तौर पर चुनौतीपूर्ण नहीं रह जाता। पहली मर्तबा राष्ट्रपति की यात्रा की तैयारी के लिए मुझे १५ दिन लगे। अगली बार मात्र दो-तीन दिन।
- यहां-अदालतें, नेता, सीनियर्सहर कोई आपको दबाने की कोशिश में लगा रहता है। आपके द्वारा वर्षों का किया धरा आपके सीनियर्स एक मिनट में भूल जाते हैं। मुझे पक्का भरोसा है कि मैं भी उन्हीं की तरह हो जाता।
- मैं ये नहीं कह रहा कि सबकुछ खराब ही है। मैं बस सर्विस छोडऩे के अपने कारण बता रहा हूं। स्वाभाविक है, बहुत सी सकारात्मक चीजें भी हैं, लेकिन कुछ वर्षों के बाद मुझे लगा कि अगर आप अपना विवेक-अंतरात्मा जीवित रखना चाहते हैं तो ये बहुत बड़ा बोझ है और पूरी तरह थैंकलेस भी।
- मैं अब साइंस की पढ़ाई का एक स्टार्टअप चला रहा हूं। मैंने आईपीएïस छोडऩे के बाद कई बातें सीखीं। मैंने व्हार्टन से एमबीए किया फिर न्यूयार्क में मैकिन्से में काम किया। वो चीजें जिनके बारे में मैंने जिंदगी में बस सुना ही था मैंने उन्हें बहुत करीब से देखा। मैंने विश्व के सर्वश्रेष्ठï लोगों के साथ काम किया।
- अब मैं कोई पोस्टिंग पाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं हूं। मेरा ज्ञान और कौशल मेरे हैं, उन्हें मुझसे कोई छीन नहीं सकता। मैं बच्चों को फिजिक्स के अचंभे दिखा सकता हूं। मैं एक दिन लाखों बच्चों को पढ़ा सकने योग्य बनना चाहता हूं। अगर मैं ऐसा कर सका तो मेरे विचार से मैं आईपीएस में जो कुछ कर पाता उससे कहीं ज्यादा ये उपलब्धि होगी।