Ahilyabai Holkar Death Anniversary: बहादुर योद्धा और कुशल प्रशाशक, जानिए अहिल्याबाई होल्कर का जीवन
Ahilyabai Holkar Death Anniversary: अहिल्याबाई होळकर, 18वीं सदी के मध्य भारत के मालवा क्षेत्र की प्रमुख रानी और शासक थीं। उन्हें भारतीय इतिहास में महान महिला शासकों में से एक के रूप में याद किया जाता है। आज पूरा देश उनकी पुण्यतिथि मनाकर उन्हें और उनके द्वारा किये गए महँ कार्यो को याद करते है।
Ahilyabai Holkar Death Anniversary: अहिल्याबाई होल्कर, 18वीं सदी के मध्य भारत के मालवा क्षेत्र की प्रमुख रानी और शासक थीं। उन्हें भारतीय इतिहास में महान महिला शासकों में से एक के रूप में याद किया जाता है। कई लोग उन्हें भारतीय इतिहास की सर्वश्रेष्ठ योद्धा रानियों में से एक मानते हैं। अहिल्याबाई होल्कर का शानदार शासन तब समाप्त हो गया जब 13 अगस्त 1795 को उनका निधन हो गया। आज पूरा देश उनकी पुण्यतिथि मनाकर उन्हें और उनके द्वारा किये गए महँ कार्यो को याद करते है।
अहिल्याबाई होल्कर का प्रारंभिक जीवन
अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को मध्य प्रदेश, भारत के वर्तमान में स्थित चोंडी गाँव में हुआ था। उन्होंने छोटी उम्र में खंडेराव होल्कर से विवाह किया था।वे चोंडी मराठा परिवार से संबंधित थे। उनका विवाह महाराष्ट्र के होळकर राजवंश के सदस्य खंडेराव होल्कर से किया गया था। विवाह के बाद, वे मालवा के मालिया में अपने पति के साथ रहने लगीं। हालांकि, उनके पति की जल्दी मृत्यु हो गई जिससे उन्होंने अपने ससुर, मल्हार राव होल्कर , के द्वारा सत्ता संभाली। उनके बेटे माले राव होल्कर के जन्म 1745 में उनका आकलन हुआ, लेकिन बेटे की मृत्यु जल्द हो गई, जिससे अहिल्याबाई को रानी रेजेंट बनाया गया। अहिल्याबाई का प्रारंभिक जीवन शोकमग्न रहने में गुजरा जब उनके पति खंडेराव 1754 में कुंभेर की लड़ाई में मारे गए, तो वह केवल 29 वर्ष की उम्र में विधवा हो गईं। जब अहिल्याबाई सती होने वाली थीं तो उनके ससुर मल्हार राव ने ऐसा होने से मना कर दिया।
बेटे की मृत्यु के बाद संभाली सत्ता
उनके बेटे की मृत्यु के बाद वे सत्ता के संबंध में जागरूक हो गईं और उन्होंने उनके प्रदेश का प्रशासन करना 11 दिसंबर 1767 को शुरू किया। इसके बाद उन्होंने अपने प्रदेश के विकास, शासन और सामाजिक कल्याण में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। ऐसे बहुत कम नेता थे जिन्होंने विलासिता को त्यागकर इतनी सरल जीवन शैली अपनाई। अहिल्याबाई एक महान योद्धा साबित हुईं। एक कुशल तीरंदाज के रूप में, उन्होंने भील (राजस्थान की जनजाति) और गोंड (मध्य भारत की जनजाति) से भी युद्ध किया। 1766 में, राज्य उसके बेटे मालोजी को सौंप दिया गया जो एक अयोग्य और क्रूर शासक निकला। उसने अपने इकलौते बेटे को हाथी से कुचलवाकर मौत की सजा सुनाई क्योंकि वह एक घातक अपराध का दोषी पाया गया था। अहिल्याबाई ने पुनः राज्य पर अधिकार कर लिया। रानी अहिल्याबाई ने अपनी राजधानी महेश्वर में स्थानांतरित की जो कपड़ा, साहित्य, संगीत और कला, मूर्तियों आदि के लिए प्रसिद्ध थी। उन्होंने नर्मदा नदी के तट पर प्रसिद्ध अहिल्या किला बनवाया जो 18 वीं शताब्दी की शानदार मराठा वास्तुकला पर आधारित था।
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अहिल्याबाई होल्कर का कार्य
ऐसा कहा जाता है कि अहिल्याबाई बहुत अच्छी प्रशासक थीं और उनके शासन काल में इंदौर शहर का ऐतिहासिक विकास हुआ। उन्हें पूरे भारत में पानीकी टंकियों, सड़कों, घाटों, विश्रामगृहों आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए भी याद किया जाएगा।
1) इंफ्रास्ट्रक्चर विकास: अहिल्याबाई होळकर ने अपने शासनकाल में महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का समर्थन किया। उन्होंने नदियों के किनारे घाटों की निर्माण-सुधार कराई और जलाशयों, कुएं और बावड़ियों का निर्माण कराया।
2) मंदिरों की पुनर्निर्माण और विकास: अहिल्याबाई धार्मिक आस्था की महत्वपूर्ण प्रतीक थी और उन्होंने अपने शासनकाल में विभिन्न मंदिरों के पुनर्निर्माण और विकास का समर्थन किया। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और पांढरपुर के विठ्ठल मंदिर के लिए समर्थन प्रदान किया।
3) सामाजिक कल्याण: अहिल्याबाई ने सामाजिक कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। उन्होंने गरीब, विधवाओं, अनाथ बच्चों और बुजुर्गों के लिए आश्रय स्थलों की स्थापना की और उनकी सहायता की।
4) न्यायपालिका का प्रबंधन: अहिल्याबाई का न्यायपालिका के प्रति विशेष ध्यान था। उन्होंने न्यायपालिका को सुधारने के उपायों पर काम किया और न्याय की प्राथमिकता दी।
5) प्रशासनिक निपटारा: उन्होंने सुशासन और प्रशासन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका व्यवस्थापन और शासकीय कौशल उन्हें उनके राज्य के प्रजाओं की आवश्यकताओं का समाधान करने में मदद करता था।
अहिल्याबाई ने महेश्वर में कपड़ा उद्योग स्थापित किया
अहिल्याबाई ने महेश्वर में कपड़ा उद्योग भी स्थापित किया, जो आज अपनी माहेश्वरी साड़ियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। वह आम आदमी की समस्याओं के निवारण में मदद के लिए दैनिक सार्वजनिक सभाएँ आयोजित करती थीं। उन्होंने अपना ध्यान विभिन्न परोपकारी गतिविधियों की ओर भी लगाया, जिसमें उत्तर में मंदिरों, घाटों, कुओं, तालाबों और विश्रामगृहों के निर्माण से लेकर दक्षिण में तीर्थस्थलों तक का निर्माण शामिल था। उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान 1780 में प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का नवीनीकरण और मरम्मत था। 'दार्शनिक रानी' के नाम से वह प्रसिद्ध हैं, 13 अगस्त 1795 को सत्तर वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनकी विरासत अभी भी जीवित है और उनके द्वारा किए गए विभिन्न मंदिर, धर्मशालाएं और सार्वजनिक कार्य उस महान योद्धा रानी की गवाही के रूप में खड़े हैं।
अहिल्याबाई होल्कर का देहांत
13 अगस्त 1795 को 70 वर्ष की आयु में अहिल्याबाई की मृत्यु हो गई। आधुनिक समय की महिला, अहिल्याबाई के शासन को मराठा साम्राज्य के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में याद किया जाता है। अहिल्याबाई के उत्तराधिकारी उनके सेनापति और भतीजे तुकोजी राव होलकर थे, जिन्होंने जल्द ही 1797 में अपने बेटे काशी राव होलकर के पक्ष में सिंहासन छोड़ दिया।