Ashok Vijayadashami Utsav: इसलिए मनाया जाता है अशोक विजयादशमी उत्सव, भीमराव अम्बेडकर ऐसे जुड़े थे इससे
Ashok Vijayadashami Utsav History: क्या आप जानते हैं कि कहाँ भीमराव अम्बेडकर ने पांच लाख अनुयायियों के साथ अपनाया था बौद्ध धर्म वहीँ क्यों मनाया जाता है अशोक विजयादशमी उत्सव।;
Ashok Vijayadashami Utsav: दशहरा और विजयादशमी के साथ ही मनाया जाने वाला एक और ऐसा उत्सव है, जिसके बारे में सीमित लोगों को ही जानकारी होगी। यह उत्सव है ’अशोक विजयादशमी’ का। 1956 में विजयादशमी 14 अक्टूबर को पड़ी थी। ट्रेंड पर जाएंगे तो महाराष्ट्र के नागपुर में चक्रवर्ती सम्राट अशोक की प्रतिमा स्थापित किए जाने के कार्यक्रम की जानकारी मिलती है। दरअसल, विजयादशमी के दिन ही धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया था। इसलिए इसे अशोक विजयादशमी भी कहते हैं। जब पूरा देश रावण को जलाए जाने पर ढोल ताशे बजा-बजा कर खुशी मनाता है। तब इस उत्सव से दूर दीक्षाभूमि में लाखों लोग बौद्ध धम्म प्रवर्तन हेतु नतमस्तक होते हैं।
महाराष्ट्र के विशाल नगर नागपुर में आयोजित होता है ये मेला
महाराष्ट्र के विशाल नगर नागपुर में हर वर्ष दशहरा के उपलक्ष में अपने ऐतिहासिक दिन को याद करने और बौद्ध धर्म अपनाने हेतु लाखों की संख्या में एकत्र होते हैं।
माना जाता है कि इस दिन मोर्यवंशीय सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध की विजय के बाद हुए रक्तपात से खिन्न हो कर शान्ति और विकास के लिए बौद्ध धम्म स्वीकार किया और दस दिन तक राज्य की ओर से भोजन दान एवं दीपोत्सव किया था।
भीमराव अम्बेडकर ने पांच लाख अनुयायियों के साथ हिन्दू धर्म तज कर अपनाया था बौद्ध धम्म
14 अक्तूबर, 1956 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने पांच लाख अनुयायियों के साथ हिन्दू धर्म को त्याग कर, बौद्ध धम्म में विश्वास करने वाले पूर्वज नागो की जमीन नागपुर में बौद्ध धम्म स्वीकार किया।
आधुनिक भारत के इतिहास में दुबारा से बौद्ध धम्म की पताका फहराई गयी थी। बौद्ध धम्म को मानने वाले देश चीन, जापान, थाईलैंड से प्रति वर्ष हजारो की संख्या में अक्तूबर के महीने में सैलानी नागपुर की दीक्षाभूमि में दर्शन के लिए आते है।
अम्बेडकर ने दीक्षा लेते समय ली थीं 22 प्रतिज्ञाएं
डॉ. अम्बेडकर ने दीक्षा लेते समय 22 प्रतिज्ञाएं ली, जिसका सार था ईश्वरवाद-अवतारवाद, आत्मा स्वर्ग- नर्क, अंधविश्वास और धार्मिक पाखंड से मुक्ति और जीवन में सादगीपूर्ण सदव्यवहार का संचार। हिन्दू धर्म की मान्यताओं से दूर जाति-उपजातियों से उपजे भेदभाव को समाप्त करके बाबासाहेब ने एक प्रबुद्ध भारत की ओर एक कदम उठाया था। नागपुर स्थित दीक्षाभूमि में तीन दिन बड़ा उत्सव होता है।
महाराष्ट्र के दूर दराज जिलों, गावों कस्बों से नंगे पांव लाखों लोग दीक्षा भूमि के दर्शन करने आते है, न केवल महाराष्ट्र से बल्कि पुरे भारत के कोने-कोने से लाखों लोग दीक्षाभूमि में धम्म की वंदना करने आते है।
रौनकों से भरपूर होता है ये उत्सव
इस उत्सव में रौनक देखते ही बनती है। दलित आन्दोलन की झलक पल-पल पर देखने को मिलती है। महिलाओं के मंडप, छात्रों के मंडप, पुस्तकों के मंडप, अंधविश्वास निवारण मंडप, बुद्धिस्ट विचारों के कैम्प, कर्मचारियों के कैम्प, पत्रिकाओं के स्टाल, समता सैनिक दल का मार्च, आरपीआई का मार्च, महिलाओं का मार्च, युवाओं का मार्च नारे लगाते लोग दिखते हैं, तो नागपुर की सड़कों पर जहां-जहां से लोग गुजरते है। उनके लिए भोजन की व्यवस्था वहीं के लोग करते है।
महिलाएं भोजन दान करती हैं। जितना विशाल उत्सव होता है, उतना ही विशाल पुस्तकों, पोस्टर, बिल्लो का बाजार होता है, जो अपनी विशिष्ट छाप छोड़ता है।
देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है ये उत्सव
यह उत्सव नागपुर के अलावा अब पूरे देश में मनाया जाता है। अम्बेडकरवादी विचारधारा को मानने वाले संगठन, संस्थाएं, पार्टी, समूह दल अपने-अपने राज्यों में दशहरा के दिन अशोक विजयदशमी मनाते है। बनारस, आगरा, दिल्ली , हरियाणा, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कानपुर, लखनऊ में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इस उत्सव के बारे में प्रचार बहुत ही कम देखने को मिलता है।