Astronaut Lifestyle Wiki Hindi: आइए जानते हैं कितनी कठिन होती अंतरिक्ष यात्रियों की जीवन शैली ?
Astronaut Lifestyle Wiki Hindi: जहां समुद्र तल से 3,000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित, लद्दाख में ऑक्सीजन का स्तर समुद्र तल के केवल 40þ है। निम्न दबाव, कम ऑक्सीजन की स्थिति शोधकर्ताओं को मंगल ग्रह जैसी स्थितियों के तहत जीवन रक्षक प्रणालियों का मूल्यांकन करने के लिए अनुकूल साबित होती है।
Astronaut Ki Lifestyle: विश्व पटल पर अपनी मनबूत पहचान बनाता भारत दिनों दिन तरक्की की नई इबारत गढ़ रहा है। इसी कड़ी में देश का पहला एनालॉग अंतरिक्ष मिशन लद्दाख के लेह से रवाना हो गया है, जहां अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अंतरग्रहीय आवास में जीवन का अनुकरण करेगी, क्योंकि भारत निकट भविष्य में चंद्रमा पर मानव भेजने की योजना बना रहा है।
लेकिन क्या आपको पता है कि अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए लद्दाख के चुनाव का विचार किसने रखा था? तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय विज्ञान संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर आलोक कुमार, भारत के चार गगनयान अंतरिक्ष यात्रियों में से एक शुभांशु शुक्ला और बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज की वैज्ञानिक बिनीता फर्तियाल ने इस प्रस्ताव को रखा था। पहला एनालॉग अंतरिक्ष मिशन से मिली जानकारियों के आधार पर कहा गया कि मिशन का तैनाती योग्य आवास, आका स्पेस स्टूडियो द्वारा डिजाइन किया गया है। यह एक ऐसी संरचना है जिसे चरम वातावरण के लिए बनाया गया है
जहां समुद्र तल से 3,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर स्थित, लद्दाख में ऑक्सीजन का स्तर समुद्र तल के केवल 40þ है। निम्न दबाव, कम ऑक्सीजन की स्थिति शोधकर्ताओं को मंगल ग्रह जैसी स्थितियों के तहत जीवन रक्षक प्रणालियों का मूल्यांकन करने के लिए अनुकूल साबित होती है। इसलिए स्पेस स्टूडियो की टीम पर्यावरण सूट का परीक्षण कर रही है और लेह में भूवैज्ञानिक अध्ययन कर रही है।
वर्तमान में, अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ-साथ निजी संस्थाओं और शोधकर्ताओं द्वारा दर्जनों एनालॉग मिशन आयोजित किए जा रहे हैं। उनमें से कुछ प्रमुख हैं नासा का एनालॉग मिशन प्रोजेक्ट और एनालॉग अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र। नासा परियोजना का प्रबंधन जॉनसन स्पेस सेंटर द्वारा किया जाता है। इसमें चार वित्त पोषित एनालॉग मिशन शामिल हैंः अनुसंधान और प्रौद्योगिकी अध्ययन, नासा का एक्सट्रीम एनवायरनमेंट मिशन ऑपरेशंस, इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन, एएटीसी, जिसने 2023 के अंत तक 75 एनालॉग सिमुलेशन आयोजित किए हैं, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और अंतरिक्ष यात्री उम्मीदवारों के लिए मानव शरीर क्रिया विज्ञान अनुसंधान और परिचालन प्रशिक्षण में विशेषज्ञता रखता है।
अंतरिक्ष यात्रियों के सामने आने वाली चुनौतियों को जानने-समझने में मिलेगी मदद
लद्दाख की शुष्क जलवायु और बंजर भूभाग मंगल और चंद्रमा की स्थितियों से काफी मिलते-जुलते हैं, जो इसे एनालॉग शोध के लिए आदर्श बनाते हैं।इसरो का यह कदम मंगल और चंद्र मिशन की तैयारियों के लिहाज से बेहद मायने रखता है।
लद्दाख की अत्यधिक विषम स्थितियां, कठोर जलवायु और अद्वितीय भौगोलिक विशेषताएं इसे इन खगोलीय पिंडों पर अंतरिक्ष यात्रियों के सामने आने वाली चुनौतियों को जानने-समझने के लिए एक आदर्श स्थल बनाती हैं। यह मिशन भारत के गगनयान कार्यक्रम और भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए जरूरी डाटा जुटाने में भी योगदान देगा।
एनालॉग मिशन किसी असली मिशन की नकल
गौरतलब है कि भारत आने वाले दिनों में कई अहम मिशन्स की तैयारी कर रहा है। ऐसे में लेह में इस तरह एनालॉग मिशन की तैयारी अहम है। आने वाले समय में अलग-अलग आकाशीय पिंडों पर मिशन के लिए भी यह एनालॉग मिशन सकारात्मक भूमिका अदा करेगा, जिनके जरिए अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
इसरो ने जो मिशन शुरू किया है, वह अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण कदम है। अंतरिक्ष की भाषा में एनालॉग मिशन भविष्य में प्रस्तावित असली मिशन का एक पूर्व अभ्यास की तरह है। इसके तहत वैज्ञानिक कुछ ऐसी जगह चुनते हैं, जो कि अंतरिक्ष या किसी आकाशीय पिंड के वातावरण और माहौल जैसा ही हो। इन जगहों को बाद में तय मानकों के अनुसार तैयार किया जाता है, ताकि ऐसी ही जगहों पर अंतरिक्ष यात्रियों या अन्य आकाशीय पिंडों पर जाने वालो को पूर्व प्रशिक्षित किया जा सके।
इन एनालॉग मिशनों के दौरान क्या होगा
एनालॉग मिशन्स के दौरान इनमें हिस्सा लेने वाले लोग दूसरे ग्रहों और आकाशीय पिंडों में रहने लायक स्थिति का अनुभव करेंगे। यहीं पर वह भविष्य के अंतरिक्ष मिशन के लिए तैयार किए जाएंगे। वैज्ञानिक ऐसी स्थितियों में रखने के बाद क्रू सदस्यों के प्रबंधन और मानसिक स्थिति पर नजर रखेंगे।
अंतरिक्ष यात्री पर पड़ने वाले प्रभाव की मिलेगी जानकारी
एनालॉग मिशन के जरिये आन जीवन शैली से अलग-थलग रहने के अलावा अंतरिक्ष यात्री टीम की गतिशीलता और कारावास जैसे व्यावहारिक प्रभावों का भी निरीक्षण किया जाता है। ये क्षुद्रग्रहों या मंगल जैसे गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिए तैयारी में सहायक होते हैं। एनालॉग मिशन परीक्षणों में नई तकनीक, रोबोट उपकरण, वाहन, आवास, संचार, बिजली उत्पादन, गतिशीलता, बुनियादी ढांचा और भंडारण आदि का इस्तेमाल होता है। ऐसे एनालॉग मिशन महासागर, रेगिस्तान और ज्वालामुखी वाले क्षेत्रों की कठिन परिस्थितियों के बीच स्थापित किए जाते हैं।
खगोलविदों की 2024 में नई अंतरिक्ष खोज
खगोलविदों ने इसी वर्ष अंतरिक्ष यात्रा के दौरान 1 अक्टूबर, 2024 को बर्नार्ड के तारे की परिक्रमा करने वाले एक एक्सोप्लैनेट की खोज की है, इस नए खोजे गए एक्सोप्लैनेट पर, जिसका द्रव्यमान शुक्र के द्रव्यमान का कम से कम आधा है। जो हमारे सूर्य के सबसे नज़दीकी एकल तारे में से एक है।
अंतरिक्ष स्टेशन पर ऑक्सीजन का क्या स्रोत होता है?
अंतरिक्ष स्टेशन पर ऑक्सीजन का स्रोत पानी है, जो ऑक्सीजन और हाइड्रोजन परमाणुओं से मिलकर बना होता है , का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर ऑक्सीजन की आपूर्ति बनाए रखने के लिए भी किया जाता है। अंतरिक्ष यात्री इलेक्ट्रोलिसिस नामक एक प्रक्रिया का उपयोग करके हाइड्रोजन से ऑक्सीजन को अलग करने में सक्षम होते हैं, इसके अलावा पानी के माध्यम से बिजली का इस्तेमाल भी किया जाता है।
अंतरिक्ष में बिना ऑक्सीजन के अंतरिक्ष यात्री सांस कैसे लेते हैं?
अंतरिक्ष यात्रियों के सांस लेने के लिए ऑक्सीजन और नाइट्रोजन को कैप्सूल में मिलाया जाता है ।सांस लेने के लिए हवा को अलग-अलग गैसों के रूप में संग्रहित किया जाता है, जिसमें एक टैंक में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन और तीन टैंक में ऑक्सीजन होती है, जो कुल मिलाकर 90 किलोग्राम होती है।
अंतरिक्ष यात्री आपस में बात कैसे करते हैं?
अंतरिक्ष यात्रियों की अंतरिक्ष में में आपस में बात चीत कैसे होती है इसके पीछे का राज जानकर आप निश्चित ही चौक जाएंगे। असल में अंतरिक्ष में हवा नहीं होती है। वहीं ध्वनि तरंगों को वातावरण में फैलाने के लिए हवा जैसी किसी भौतिक माध्यम की आवश्यकता होती है, अब बिना हवा के ध्वनि प्रसारित नहीं हो सकती इसलिए अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में एक दूसरे की आवाज को सामान्य रूप से सुन नहीं सकते।
इसके लिए, रेडियो तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि रेडियो तरंगों को प्रसारित होने के लिए किसी भौतिक माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है और इसलिए अंतरिक्ष यात्री रेडियो रिसीवर का इस्तेमाल करते हैं।
क्या अंतरिक्ष यात्री की चलने फिरने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं?
अंतरिक्ष स्टेशन पर रहना किसी कड़ी चुनौती से कम नहीं आंका जा सकता क्योंकि वहां पर जाकर अंतरिक्ष यात्रियों की चलने फिरने की क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इनके अंतरिक्ष में ज्यादा दिन तक रहने पर मसल्स कमजोर हो जाती हैं, इसी वजह से जब अंतरिक्ष यात्री धरती पर लौटते हैं, तब कई दिनों तक अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते हैं। यहां तक कि उनका दिल तक कमजोर हो जाता है। क्योंकि लगातार स्पेस स्टेशन में रहने के बाद धरती पर अंतरिक्ष यात्री पहुंचते हैं तो शरीर को ज्यादा काम करना पड़ता है जिससे उनके हार्ट पर जोर पड़ता है और सामान्य ब्लड फ्लो के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को लगातार चिकित्सीय परीक्षण में रहते हुए व्यायाम और मेहनत करनी पड़ती है।
अंतरिक्ष में जाने में मुख्य चुनौतियां क्या है?
अंतरिक्ष में जाने में मुख्य चुनौतियों की बात करें तो अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव बहुत कम होता है। जिस वजह से हमारे पैरों की ओर जाने वाला ब्लड फ्लो हमारी छाती और सिर की ओर बहने लग जाता है। इसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों को मोशन सिकनेस, संतुलन की कमी और स्वाद और गंध की कमी का अनुभव जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
अंतरिक्ष यात्री के पृथ्वी पर वापसी के बाद क्या समस्याएं आती हैं?
लगातार लंबे समय तक स्पेस स्टेशन में समय गुजारने के बाद एक बार जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर वापस लौटता है, तो उसे सुरक्षा के लिए, अक्सर पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद एक कुर्सी पर बिठाया जाता है क्योंकि उसे तुरंत पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार शरीर को समायोजित होना पड़ता है,जिस दौरान अंतरिक्ष यात्री को पैरों के बल खड़े होने, अपनी नज़र को स्थिर करने, चलने और मुड़ने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
अंतरिक्ष यात्री का भोजन क्या है?
स्पेस स्टेशन में कई महीने गुजारने के दौरान यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनका आहार पौष्टिक और स्वादिष्ट दोनों हो।इसलिए सूक्ष्म शैवाल, प्रयोगशाला में विकसित मांस और शराब की गोलियों जैसे सुपरफूड पर आश्रित रहते हैं।
अंतरिक्ष स्टेशन पर अंतरिक्ष यात्रियों के अपशिष्ट को किस तरह मैनेज किया जाता हैं?
अंतरिक्ष स्टेशन पर कभी-कभी, अंतरिक्ष यात्रियों के मल को वैज्ञानिकों के अध्ययन के लिए पृथ्वी पर वापस लाया जाता है। लेकिन ज़्यादातर, बाथरूम के कचरे - जिसमें मल भी शामिल है - को जला दिया जाता है ।अंतरिक्ष स्टेशन पर सभी अंतरिक्ष यात्रियों के पेशाब को एकत्र किया जाता है और उसे एक प्रक्रिया द्वारा साफ, पीने योग्य पानी में बदल दिया जाता है। अंतरिक्ष यात्री कहते हैं कि “आज की कॉफी कल की कॉफी है!“
अंतरिक्ष सूट के बिना, इंसान कितनी देर तक जीवित रह सकता है?
अंतरिक्ष यात्रियों के लिए उनका अंतरिक्ष सूट ही उनके लिए जीवन रक्षक कवच है जिसके बिना,वे लगभग 15 सेकंड में बेहोश हो जाएंगे, 90 सेकंड के बाद मर जाएंगे। साथ ही मात्र 12 से 26 घंटों के भीतर पूरी तरह जम कर ममी की तरह बन जाएंगे।
अंतरिक्ष में अब तक कितने यात्रियों की मृत्यु हो चुकी है?
अंतरिक्ष यात्रा के दौरान जिन यात्रियों की मृत्यु हो चुकी हैं उनकी संख्या की बात करें तो कई मिशन में 20 लोग मारे जा चुके हैं। 1967 में अपोलो 1 लॉन्च पैड की आग लगने से तीन अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हुई थी। 1986 से 2003 की नासा अंतरिक्ष शटल त्रासदी में 14, 1971 के सोयुज 11 मिशन के दौरान तीन अंतरिक्ष यात्री की मृत्यु हुई थी।
मौत होने पर अंतरिक्ष में शव का क्या किया जाता है
स्पेसक्राफ्ट में बहुत कम जगह होती है, ऐसे में शव को ज्यादा दिन तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। ऐसी स्थिति में शव को एयरलॉक सूट में पैक करके अंतरिक्ष में छोड़ दिया जाता है।जानकारी के मुताबिक किसी भी स्पेस मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्री की मौत होने पर शव को वापस नहीं लाया जाता है।
( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)