Avni Lekhra: सफलता की नई सीख देती है अवनी लेखरा की साहस भरी कहानी, सभी के लिए बनीं प्रेरणा
Avni Lekhra Success Story: पेरिस पैरालंपिक में भारतीय शूटर अवनी लेखरा ने भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता है आइये जानते हैं क्या है उनकी साहस भरी कहानी।
Avni Lekhra Success Story: कहते हैं कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ऐसी ही साहस और प्रेरणा से भरी है भारत के लिए स्वर्ण पदक लाने वाली खिलाड़ी अवनी लेखरा की कहानी। 10 साल की उम्र में लकवाग्रस्त इस पैरा-शूटर ने इस त्रासदी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। अपने समर्थक पिता, पूर्व भारतीय निशानेबाज सुमा शिरूर और अभिनव बिंद्रा की आत्मकथा से प्रेरणा पाकर, उन्होंने बंदूक चलाईं और पैरालंपिक रिकॉर्ड तोड़ दिए। आइये जानते हैं क्या है उनकी सफलता की कहानी और कैसे वो यहाँ तक पहुंचीं।
क्या है अवनी लेखरा की कहानी
20 फरवरी, 2012 की वो तारीख जिसे अवनी लेखरा शायद अपने जीवन में कभी नहीं भूल पाएंगीं। उनका परिवार जयपुर से राजस्थान के धौलपुर जा रहा था, तभी उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई और कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। उस समय की 10 वर्षीय लड़की को उस दिन घर पर ही रहना था, लेकिन उसने साथ जाने पर जोर दिया क्योंकि वह स्कूल में एक डांस कॉम्पिटिशन में भाग लेना चाहती थी।
10 साल की उम्र में हुआ हादसा
अवनी लेखरा बताती हैं, “मुझे डांस करने का करना पसंद था और मैंने वहां जाने का फैसला किया। मैं पिछली सीट पर सो रही थी। मेरे पिता गाड़ी चला रहे थे तभी सामने से एक तेज़ रफ़्तार ट्रक आया। दुर्घटना से बचने के लिए उसने कार मोड़ी, लेकिन कार पलट गई।" मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं एक पल में ठीक हो जाऊँगी और अगले ही पल स्थिर हो पाउंगीं। यह एक बुरे सपने जैसा था। मैं सात महीने तक बिस्तर पर आराम करती रही।"
पेरिस पैरालंपिक में भारतीय शूटर अवनी लेखरा ने अब इतिहास रच दिया है। उन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया है। ये उनका दूसरा पैरालंपिक गोल्ड है जो उन्होंने लगातार दूसरी बार जीता है। इसके पहले टोक्यो में हुए पैरालंपिक गेम्स में भी उन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। अवनी ने अपने सेट किये रिकॉर्ड को तोड़कर नया रिकॉर्ड बनाया। जिसके बाद उन्होंने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल SH1 इवेंट में स्वर्ण पदक भारत को दिलाया। उन्होंने ये गोल्ड मैडल अपनी मेहनत और साहस के दम पर जीता है।
अवनी लेखरा की शिक्षा
अवनी ने जयपुर के केंद्रीय विद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। लेखरा की कहानी धैर्य और हिम्मत और हार न मानने की कहानी है। अपने साथ हुई इस दुर्घटना के बाद, वो दो साल तक घर पर ही पड़ी रही और काफी अंतर्मुखी हो गई थी। उन्होंने 2014 में व्हीलचेयर पर स्कूल जाना फिर से शुरू किया, तो ये अवनि के लिए एक नया अनुभव था। अवनी ने एक बार बताया था कि जब उन्होंने नए दोस्त बनाए तब खुलकर उन्होंने बातें कीं और उनमें काफी आत्मविश्वास आया। उन्होंने आगे कहा कि जब उन्होंने एक साल बाद शूटिंग शुरू की, तो जिंदगी फिर से बेहतर दिखने लगी।
उनके पिता प्रवीण ने उन्हें निशानेबाजी से परिचित कराया, लेकिन लेखरा को शुरुआत में इस खेल में कोई दिलचस्पी नहीं थी और उन्हें कई चुनौतियों से पार पाना पड़ा। उनके पास राइफल पकड़ने की शारीरिक ताकत भी नहीं थी, उनके पास अपनी राइफल या खेल के लिए उचित व्हीलचेयर भी नहीं थी, और महत्वपूर्ण बात ये भी थी कि कोई पैरा शूटिंग कोच नहीं था।
प्रवीण ने अपनी बेटी को प्रशिक्षित करने के लिए पूर्व भारतीय निशानेबाज सुमा शिरूर से संपर्क किया। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उनके पास पैरा एथलीट को पढ़ाने का कोई अनुभव नहीं था। इसके बाद अवनी के पिता ने छह महीने बाद उन्हें दोबारा लिखा, तो उन्होंने कहा कि वो सबसे पहले लेखरा से मिलना चाहेगी। वहीँ आपको बता दें कि सुमा शिरूर कहतीं हैं कि," जैसे ही मैंने अवनी को देखा, मुझे उससे प्यार हो गया। वह बहुत प्यारी थी! मैंने उसका शूट भी नहीं देखा था, लेकिन मैंने कहा, 'मैंने पहले हां क्यों नहीं कहा?''
फिलहाल अवनी की कहानी बेहद प्रेरणा दायक है जो किसी को भी सफलता की राहों पर अग्रसर कर सकती है।