Bacchon Ko Mobile Se Nuksan: बच्चों के मेंटल हेल्थ के लिए काल बन रहा मोबाइल फोन, अब इस्तेमाल पर सख्त हो रहीं देश की सरकारें
Bacchon Ko Mobile Se Nuksan: बच्चों के स्वास्थ और शिक्षा की गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए अमेरिका सहित कई देशों ने स्कूलों में मोबाइल फोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया है।;
Bacchon Ko Mobile Se Nuksan (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Bacchon Ko Mobile Se Nuksan: डिजिटल क्रांति के साथ अस्तित्व में आया स्मार्टफोन मौजूदा समय में हर इंसान की जिंदगी का सबसे जरूरी हिस्सा बन चुका है। जरूरी डॉक्यूमेंट्स से लेकर वित्तीय लेन देन की बात हो या फिर पढ़ाई लिखाई जैसे सारे काम काज अब सभी के हाथों में मौजूद स्मार्टफोन से आसानी से सुलभ हो जाते हैं। एक ओर बढ़ती डिजिटल तकनीक की ये तरक्की के चलते तमाम तरह के सकारात्मक प्रभाव हमारी जिंदगी को सरल और सुविधासंपन्न बनाने में मददगार साबित हो रहे हैं। वहीं, दूसरी और स्मार्टफोन जैसी टेक्नोलॉजी बच्चों की एकेडमिक परफॉर्मेंस के साथ-साथ उनकी सेहत बिगाड़ने का भी काम कर रही है।
यही वजह है कि अमेरिका सहित कई देशों ने स्कूलों में मोबाइल फोन के उपयोग पर प्रतिबंध (Mobile Phone Ban In Schools) लगाने का फैसला लिया है। ये कदम बच्चों के स्वास्थ और शिक्षा की गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए उठाया गया है। यह एक गंभीर कदम है जो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) को सुधारने के लिए उठाया गया है। चलिए जानते हैं कि किन देशों में बच्चों को स्कूल में मोबाइल फोन ले जाना मना है और वहां इसके लिए क्या कानून है-
पढ़ाई में बच्चों का ध्यान भंग कर रहे हैं मोबाइल फोन
फोटो साभार- सोशल मीडिया
बच्चों के लिए मोबाइल फोन और टीवी का आकर्षण अब आम बात हो गई है। पेरेंट्स भी अपने काम के चक्कर में बच्चों को मोबाइल फोन देकर या टीवी के सामने बैठा देते हैं। लेकिन इसका बच्चों पर बहुत खराब असर पड़ता है। अत्यधिक स्क्रीन टाइम आंखों की रोशनी, नींद की समस्याओं और मोटापे का कारण (Excessive Screen Time Side Effects) बन सकता है। स्क्रीन के सामने अधिक समय बिताने से बच्चों के सोशल स्किल कमजोर हो सकते हैं। सोशल मीडिया और विज्ञापनों के माध्यम से बच्चे अवास्तविक अपेक्षाएं पाल रहे हैं।
वहीं, पढ़ाई में मोबाइल फोन छात्रों का ध्यान भंग कर रहे हैं। हाल में सामने आई एक रिसर्च में पता चला है कि लगभग 70þ शिक्षक मानते हैं कि मोबाइल फोन बच्चों के ध्यान को प्रभावित कर रहा है। जब बच्चे फोन का इस्तेमाल करते हैं, तो वो पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग (जीईएम) रिपोर्ट में भी कहा गया है कि अगर आप मोबाइल फोन बच्चों के आसपास रखते हैं तो इससे उनका ध्यान भटकता है, और इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है। पूरी दुनिया में इस तरह के नकारात्मक प्रभाव देखने मिल रहे हैं।
यही वजह कि अब देश की सरकारों मोबाइल फोन के इस्तेमाल को लेकर कड़ा रुख अपना रही हैं। हालांकि अभी इसकी गति काफी धीमी है। अभी सिर्फ चार में ऐसे एक देश ऐसा है, जहां स्कूलों में स्मार्टफोन पर बैन लागू है। इस लिस्ट में अमेरिका समेत ऐसे कई देश हैं, जहां छात्रों को स्कूल में मोबाइल फोन ले जाना मना है। इसके लिए इन देशों में सख्त कानून भी बनाए गए हैं।
स्वीडन सरकार ने दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मोबाइल फोन और टीवी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि 2 साल से ऊपर के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम की लिमिट (Screen Time Limit) सेट कर दी है।
मोबाइल फोन इस्तेमाल को लेकर अमेरिका में ये है कानून
फोटो साभार- सोशल मीडिया
बच्चों के गिरते मानसिक स्वास्थ को लेकर अमेरिका काफी चिंतित हैं। यहां कई राज्यों ने स्कूलों में मोबाइल फोन पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया और टेक्सास जैसे राज्यों में अब क्लास में मोबाइल फोन लाने की परमिशन नहीं है। यदि कोई छात्र फोन लेकर आता है, तो उसे फोन स्कूल प्रशासन को सौंपना पड़ता है।
टेक्सास में 2023 में नया कानून पारित हुआ है, जिसके मुताबिक, सभी सार्वजनिक स्कूलों में छात्रों को क्लास में मोबाइल फोन लाने पर पूरी तरह से रोक है। यह फैसला तब लिया गया जब शिक्षकों और अभिभावकों ने इस समस्या के बारे में शिकायत की।
इस विषय पर संबंधित अधिकारी का कहना है कि, ‘‘अमेरिका के 50 राज्यों में से 20 में अब नियम लागू हैं, जिनमें कैलिफोर्निया में फोन-मुक्त स्कूल अधिनियम से लेकर फ्लोरिडा में ‘के-12’ कक्षाओं में फोन प्रतिबंध, इंडियाना में छात्रों द्वारा पोर्टेबल वायरलेस डिवाइस के उपयोग पर प्रतिबंध तथा ओहायो में एक अन्य प्रतिबंध शामिल हैं।’’
इन पूर्ण प्रतिबंधों के अलावा, कुछ देशों ने निजता संबंधी चिंताओं के कारण शिक्षा ‘सेटिंग्स’ से विशिष्ट ऐप्लिकेशन के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। डेनमार्क और फ्रांस दोनों ने ‘गूगल वर्कस्पेस’ (Google Workspace Restrictions) पर प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि जर्मनी के कुछ राज्यों ने माइक्रोसॉफ्ट उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
विरोध के कारण अपने प्रतिबंध को सऊदी अरब ने लिया वापस
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
इसके विपरीत, सऊदी अरब ने चिकित्सा उद्देश्यों के मद्देनजर दिव्यांग समूहों द्वारा विरोध के कारण अपने प्रतिबंध को वापस ले लिया। ‘जीईएम’ टीम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘(शैक्षणिक प्रणालियों के) इस मानचित्रण में संघीय देशों के सभी 6 उप-राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों को शामिल नहीं किया गया है, हालांकि चार का विस्तार से मूल्यांकन किया गया है।
उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया में नौ क्षेत्रों में से दो (न्यू साउथ वेल्स और साउथ ऑस्ट्रेलिया) ने प्रतिबंध लगाए हैं, जबकि स्पेन में 17 स्वायत्त समुदायों (बास्क कंट्री, स्पेन के पूर्वोत्तर भाग में स्थित एक स्वायत्त समुदाय), (ला रियोजा, नवरे) में से तीन को छोड़कर सभी ने प्रतिबंध लगाए हैं।’’
स्वीडन में दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन का इस्तेमाल करने पर पूरी तरह प्रतिबंध
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
स्वीडन ने दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन का इस्तेमाल करने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं, दो से पांच वर्ष, 6 से 12 वर्ष और उससे बड़े बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम लिमिट (Screen Time Limit In Sweden) निर्धारित की है। सरकार की तरफ से परामर्श में साफ कहा गया है कि, बच्चों को टीवी और मोबाइल फोन समेत किसी भी स्क्रीन के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। इस नियम के लागू होने के बाद अब बच्चे स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे।
बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहे बुरे प्रभाव को देखते हुए स्वीडन सरकार द्वारा जारी परामर्श के अनुसार, दो साल से कम उम्र के बच्चे को पूरी तरह मोबाइल फोन, टीवी या किसी अन्य स्क्रीन से दूर रखना चाहिए। जबकि 2 से 5 वर्ष वर्ष के बच्चों को 24 घंटे में ज्यादा से ज्यादा एक घंटा, और 6 से 12 वर्ष के बच्चों को सिर्फ दो घंटे ही स्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को भी दिनभर में सिर्फ तीन घंटे ही स्क्रीन टाइम की परमिशन मिलनी चाहिए।
स्वास्थ पर पड़ रहा गलत असर (Excessive Screen Time Impact On Health)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
स्वीडन सरकार का कहना है कि कई मेडिकल रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है कि, ज्यादा स्क्रीन टाइम की वजह से बच्चों और किशोरों में नींद की कमी और डिप्रेशन की शिकायत बढ़ती जा रही है। डिप्रेशन और माइग्रेन की बढ़ती समस्या से उनके स्वास्थ्य और फिजिकल फिटनेस पर भी बुरा असर पड़ता है। बच्चे अवसाद और मानसिक विकारों के साथ गलत कदम उठाने को मजबूर हो रहें हैं।
अमेरिका के अलावा, भारत, फ्रांस और इटली ने उठाया कदम
अमेरिका के अलावा, फ्रांस ने पहले ही 2018 में सभी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में मोबाइल फोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। वहां के शिक्षकों ने पाया कि छात्रों का ध्यान मोबाइल गेम्स और सोशल मीडिया में बंटा हुआ था। साथ ही इटली और स्पेन के कई स्कूलों ने भी मोबाइल फोन के इस्तेमाल को सीमित किया है। इन देशों में, छात्रों को कक्षा में जाते समय अपने फोन जमा करने होते हैं।
वहीं, ब्रिटेन के कई स्कूलों ने अपनी इच्छा से अपने लजीज मोबाइल फोन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इसके अलावा भारत के कई स्कूलों ने भी मोबाइल फोन पर प्रतिबंध लगाने के नियम को लागू किया है।
पड़ रहा सकारात्मक प्रभाव
बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखने के निर्णय के बाद कुछ रिसर्च से पता चला है कि मोबाइल फोन का क्लास में ज्यादा उपयोग छात्रों की पढ़ाई के प्रति रुचि को कम करता है। साथ ही विषय पर ध्यान केन्द्रित करने में बाधा पैदा करता है। एक अध्ययन में सामने आया है कि स्कूलों में मोबाइल फोन पर रोक लगाने से छात्रों के रिपोर्ट कार्ड पर औसतन 20 फीसदी अंकों का इजाफा हुआ है।
क्या कहती है यूनेस्को द्वारा जारी रिपोर्ट
यूनेस्को द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि मोबाइल फोन हो या कंप्यूटर, उससे बच्चों का ध्यान भटक सकता है और ऐसे में स्कूल या घर उनके सीखने का माहौल प्रभावित होता है। रिसर्च से पता चलता है कि कोई भी स्टूडेंट का ध्यान अगर एक बार टेकनोलॉजी की वजह से भटक रहा जाता है तो उसे फिर से ध्यान केंद्रित करने में 20 मिनट का समय लग सकता है या फिर पढ़ाई से ही अरुचि होनी शुरू हो जाती है।
इस बारे में यूएन एजुकेशन डिपार्टमेंट का कहना है कि, क्लासरूम में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सिर्फ एजुकेशन हासिल करने के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमीर देशों में क्लासरूम और एजुकेशन व्यवस्था बदल गई है। वापस एक बार कंप्यूटर स्क्रीन ने पेपर की जगह ले ली और कीबोर्ड की जगह पेन का उपयोग करने पर जोर दिया जा रहा है।
यूनाइटेड नेशन का कहना है कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ से जुड़े गंभीर परिणाम में इजाफा होने के बावजूद भी अभी तक सिर्फ 25 प्रतिशत से भी कम देशों ने शैक्षिक सेटिंग्स में स्मार्टफोन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है।