Begum Hazrat Mahal History: कौन थी अंग्रेजों को धूल चटाने वाली क्रांतिकारी महिला, जिसका नाम कभी नहीं हुआ इतिहास में दर्ज

Begum Hazrat Mahal Kaun Thi: बेगम हज़रत महल का जन्म 1820 के दशक में हुआ था। वे शुरुआत में एक साधारण परिवार से थीं और उनका नाम मुहम्मदी खानम रखा गया था।

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2024-12-19 15:46 IST

Begum Hazrat Mahal History Wiki in Hindi 

Begum Hazrat Mahal History: इतिहास में ऐसी कई क्रांतिकारी आए जिन्हें कभी उतना मूल्य नहीं दिया गया जितने वे अधिकारी थे। ऐसे ही भारत की वीर महिला हजरत महल थीं। भारत की आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 1857 में हुई, जिसमें महिलाओं और पुरुषों ने समान रूप से अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। इन्हीं वीर सपूतों में से एक थीं बेगम हजरत महल। एक साधारण मजदूर परिवार में जन्मी बेगम हजरत महल ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने अदम्य साहस और नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। उन्होंने अपने बेटे को अवध की गद्दी पर बैठाया और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभालते हुए लखनऊ को कुछ समय के लिए स्वतंत्र कराने में सफलता पाई।और कालांतर में लखनऊ की रानी कहलाईं ।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक गौरवशाली अध्याय का हिस्सा रही हैं। वे 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अपनी बहादुरी, नेतृत्व और देशभक्ति के लिए जानी जाती हैं। उनका असली नाम मुहम्मदी खानम था। लेकिन नवाब वाजिद अली शाह से विवाह के बाद वे बेगम हज़रत महल के नाम से विख्यात हुईं। वे अवध की बेगम थीं और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व करने वाली प्रमुख महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं।

प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि (Begum Hazrat Mahal ka Parichay 1820 To 1879)

बेगम हज़रत महल का जन्म 1820 के दशक में हुआ था। वे शुरुआत में एक साधारण परिवार से थीं और उनका नाम मुहम्मदी खानम रखा गया था। बेगम हजरत महल 1820 ई. में अवध प्रांत के फैजाबाद जिले के एक छोटे से गांव में बेहद गरीब परिवार में जन्मी थीं। बचपन में उन्हें सब मुहम्मदी खातून (मोहम्मद खानम) कहकर पुकारते थे। बेगम हजरत महल की परिवार की दयनीय हालत इतनी खराब थी कि उनके माता-पिता उनका पेट भी नहीं पाल सकते थे।


जिसके कारण उन्‍हें राजशाही घरानों में डांस करने पर मजबूर होना पड़ा। वहां पर उन्हें शाही हरम के परी समूह में शामिल कर लिया गया, जिसके बाद वे ‘महक परी’ के रूप में पहचानी जाने लगी। एक बार जब अवध के नवाब ने उन्हें देखा तो वे उनकी सुंदरता पर मुग्ध हो गए और उन्हें अपने शाही हरम में शामिल कर उन्‍हें अपनी बेगम बना लिया। इसके बाद उन्होंने बिरजिस कादर नाम के पुत्र को जन्म दिया। फिर उन्हें ‘हजरत महल’ की उपाधि दी गई।

अवध पर ब्रिटिश कब्जा और हज़रत महल का नेतृत्व (Begum Hazrat Mahal Ka Yogdan)

1856 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने नवाब वाजिद अली शाह को उनके सिंहासन से हटा दिया और अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। नवाब को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) निर्वासित कर दिया गया। इस समय हज़रत महल ने अपनी भूमिका निभानी शुरू की। उन्होंने अपने बेटे, बिरजिस क़द्र को अवध के राजा के रूप में घोषित किया और खुद सत्ता की बागडोर संभाली।


1857 का विद्रोह शुरू होने पर, बेगम हज़रत महल ने लखनऊ में ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ जोरदार विद्रोह किया। उन्होंने अपनी सेना को संगठित किया और लखनऊ के विभिन्न हिस्सों में ब्रिटिश सेना का डटकर सामना किया।बेगम हजरत महल ने ही सबसे पहले अंग्रेजों पर मुस्लिमों और हिन्दुओं के धर्म में फूट और नफरत पैदा करने का आरोप लगाया था।

1857 का विद्रोह और बेगम हज़रत महल का संघर्ष (Begum Hazrat Mahal Ka Sangharsh)

बेगम हज़रत महल ने न केवल लखनऊ में बल्कि पूरे अवध क्षेत्र में क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। उन्होंने स्थानीय किसानों, सैनिकों और जमींदारों को एकजुट किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया।


उनकी सेना ने लखनऊ के ऐतिहासिक रेजिडेंसी क्षेत्र को घेर लिया और वहां कई महीनों तक ब्रिटिश सेना को रोके रखा।

महत्वपूर्ण घटनाएँ (Begum Hazrat Mahal Important Facts)

बेगम हज़रत महल के नेतृत्व में विद्रोही सैनिकों ने लखनऊ के रेजिडेंसी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। यह क्षेत्र ब्रिटिश प्रशासन का केंद्र था। उनकी सेना ने यहां ब्रिटिश अधिकारियों को महीनों तक घेराबंदी में रखा। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम समुदायों को एकजुट किया और दोनों धर्मों के लोगों से मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की अपील की।


उन्होंने अपने नाबालिग बेटे बिरजिस क़द्र को अवध का शासक घोषित किया और खुद संरक्षक के रूप में काम किया।

बेगम हज़रत महल की चुनौतियाँ (Begum Hazrat Mahal Struggle)

हालांकि उनकी सेना ने लंबे समय तक ब्रिटिश सेना का मुकाबला किया। लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सेना आधुनिक हथियारों और रणनीति के साथ सुसज्जित थी, जबकि विद्रोहियों के पास संसाधनों की कमी थी। विद्रोहियों के बीच एकजुटता बनाए रखना मुश्किल था।


कुछ स्थानीय राजाओं और जमींदारों ने ब्रिटिश सेना का समर्थन किया। लंबे समय तक युद्ध के कारण उनकी सेना को रसद और धन की कमी होने लगी। कई सहयोगियों ने ब्रिटिश सेना से समझौता कर लिया, जिससे विद्रोह कमजोर हो गया।

विद्रोह की विफलता और निर्वासन (Begum Hazrat Mahal Veerta Ki Kahani)

1857 का विद्रोह धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा। ब्रिटिश सेना ने अत्यधिक क्रूरता के साथ विद्रोह को दबा दिया। लखनऊ पर ब्रिटिश सेना ने फिर से कब्जा कर लिया, और बेगम हज़रत महल को शहर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। विद्रोह की विफलता के बाद, बेगम हज़रत महल ने नेपाल में शरण ली। नेपाल के राजा ने उन्हें रहने की अनुमति दी। लेकिन वे भारत वापस नहीं लौट सकीं। अपनी शेष जिंदगी उन्होंने नेपाल में निर्वासन में बिताई।


बेगम हज़रत महल केवल एक योद्धा ही नहीं थीं, बल्कि वे एक गहरी राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा वाली नेता थीं। उन्होंने अपने शासनकाल में धर्म और जाति के भेदभाव को खत्म करने का प्रयास किया।1857 के संग्राम में उनकी भूमिका ने साबित किया कि महिलाएं भी नेतृत्व करने में सक्षम हैं।नेपाल में निर्वासन में कठिन परिस्थितियों में रहते हुए, 1879 में बेगम हज़रत महल का निधन हो गया। वे एक स्वतंत्र भारत का सपना देखती थीं। लेकिन उनकी मृत्यु उस समय हुई जब देश ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था।

उसूल से नहीं किया कभी समझौता (Begum Hazrat Mahal Life)

क्रांति के एक नायक सरदार दलपत सिंह बेगम के दरबार में पहुंच कर कहता है, ‘बेगम हुजूर, आप अपने कैदी अंग्रेजों को हमें सौंप दीजिये। हम उनके हाथ-पैर काटकर अंग्रेजों की छावनी में भेजेंगे, ताकि उन्हें पता चले कि हमारे साथ जो क्रूर व्यवहार किया गया, यह उसका जवाब है। हम चुप रहने वालों में से नहीं हैं।’ बेगम का चेहरा सुर्ख हो गया।

उन्होंने कहा, ‘हरगिज नहीं। हम अपने कैदियों के साथ ऐसा सलूक न तो खुद कर सकते हैं और न किसी को ऐसा करने की छूट दे सकते हैं। कैदियों पर जुल्म ढाने का रिवाज हमारे हिंदुस्तान का नहीं है। हमारे जीते जी अंग्रेज कैदियों और उनकी औरतों-बच्चों पर जुल्म नहीं किया जा सकता। हिंदुस्तानी तहजीब कैदियों की भी इज्जत और हिफाजत की रही है। आप हमारे सरदार हैं, हम आपकी हिम्मत और जज्बे की इज्जत करते हैं, मगर हम आपकी मांग पूरी नहीं कर सकते।’ इतने बड़े दिल की मलिका और हिंदुस्तान की पहचान बेगम हजरत महल ने खुद अंग्रेजों के जुल्म सहे, मगर अपने उसूलों से समझौता नहीं किया।


बेगम हजरत महल अपने समय की एक अद्भुत और साहसी महिला थीं। लेकिन उनके जीवन से जुड़े कुछ विवाद और चुनौतियां भी सामने आए।

1. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने लखनऊ में अपने शासन को स्थापित करने की कोशिश की और अंग्रेजों से खुलकर लोहा लिया। इस दौरान उनके विरोधियों। ने उन्हें विद्रोही और ‘अवज्ञाकारी रानी’ के रूप में प्रस्तुत किया।

2.अवध के कई राजघराने और सामंत अंग्रेजों के साथ मिल गए थे। इन लोगों ने उनके शासन को कमजोर करने के लिए गुप्त रूप से अंग्रेजों का समर्थन किया, जिससे उनके सैन्य प्रयासों को नुकसान हुआ।

3. बेगम हजरत महल के संघर्ष के दौरान उनके कई करीबी सहयोगियों ने अंग्रेजों के डर या लालच में आकर उनका साथ छोड़ दिया।


4. बेगम हजरत महल ने 1857 के संग्राम में हिंदू और मुसलमानों को एकजुट किया था। लेकिन कुछ कट्टरपंथियों ने उनके नेतृत्व को धर्म के चश्मे से देखा और उनके खिलाफ आलोचना की। वहीं, अंग्रेजों ने भी सांप्रदायिक फूट डालने की कोशिश की, जिससे उनकी एकता के प्रयासों को नुकसान हुआ।

5. बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों की संपत्तियों और संस्थानों पर हमला किया और कई जगहों पर अंग्रेजी अधिकारियों को बेदखल किया। इसे लेकर अंग्रेजी प्रशासन ने उन पर हिंसा और अराजकता फैलाने के आरोप लगाए।

7. बेगम हजरत महल का योगदान आजादी के संग्राम में अमूल्य था। लेकिन इतिहास में उन्हें उचित सम्मान और स्थान नहीं दिया गया।

बेगम हज़रत महल की विरासत (Begum Hazrat Mahal Ki Property)

बेगम हज़रत महल का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय है। उनकी विरासत को आज भी कई रूपों में याद किया जाता है। लखनऊ में उनके सम्मान में एक पार्क का नाम ‘हज़रत महल पार्क’ रखा गया । भारत सरकार ने उनके सम्मान में 1984 में एक डाक टिकट जारी किया। उनका जीवन महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है, जिन्होंने यह दिखाया कि साहस और नेतृत्व केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है।


बेगम हज़रत महल का जीवन साहस, बलिदान और देशभक्ति की मिसाल है। 1857 के संग्राम में उनका नेतृत्व यह दर्शाता है कि जब देश की स्वतंत्रता की बात आती है, तो कोई भी बाधा असंभव नहीं होती। उनकी कहानी आज भी हमें प्रेरणा देती है और यह सिखाती है कि अपने देश और अपने लोगों के लिए लड़ाई लड़ना सबसे बड़ा कर्तव्य है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को हमेशा सम्मान और गर्व के साथ याद किया जाएगा।

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