Brave Mother Hirkani Story: साहस और ममता की अमर गाथा,’हीरकणी’
Brave Mother Hirkani History: हीरकणी एक सर्वसाधरण महिला थीं, जो अपने बच्चे और परिवार के साथ रायगढ़ किले के पास एक गाँव में रहती थीं ।
Brave Mother Hirkani Ki Kahani: एक साधारण महिला ‘हीरकणी’ जिन्होंने मराठा शासनकाल के दौरान शासन के नियमों के विरुद्ध जाकर अपने शौर्य और वीरता का परिचय देते हुए सबको अचंबित कर दिया था। कहते हैं कि माँ भगवान का रूप होती है और इसका अमर उदाहरण है हीरकणी। एक साधारण ग्रामीण महिला, जिसने अपनी ममता और अदम्य साहस से ऐसा कार्य कर दिखाया जिसे इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया। हीरकणी की गाथा मराठा इतिहास के उस स्वर्णिम काल की है, जब छत्रपति शिवाजी महाराज का शासन था। वह केवल एक माँ नहीं थीं; वह साहस, धैर्य और निष्ठा की साक्षात प्रतिमूर्ति थीं।
तो आइये जानते है हीरकणी की कहानी
कौन थी हीरकणी
यह कहानी उस समय की है जब 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने रायगढ़ किले पर विजय हासिल कर इसे अपनी राजधानी में बदल दिया था। रायगढ़ किला, जो अपनी मजबूती और ऊँचाई के लिए प्रसिद्ध है, आज हीरकणी की साहसिक गाथा का केंद्र है।
हीरकणी एक सर्वसाधरण महिला थीं, जो अपने बच्चे और परिवार के साथ रायगढ़ किले के पास एक गाँव में रहती थीं। तथा किले पर रहने वाले लोगों को दूध बेचकर राज्य की सेवा किया करती थी। यह गांव किले के ठीक नीचे ही हुआ करता था। किले के अंदर जाने के लिए एक सड़क थी, जिसके माध्यम से किले के अंदर आना-जाना किया जाता था तथा किले के अंदर रहने वाले लोगों के लिए आवश्यक और दैनिक चीजों को पहुंचाया जाता था ।किले के द्वार सुबह खोले जाते थे और सुरक्षा कारणों की वजह रात को बंद कर दिया जाते थे, ताकि रात के अंधेरे का फायदा उठाते हुए दुश्मन किले के अंदर ना घुस पाए।
क्या थी घटना
उस दिन भी रोज की ही तरह हीरकणी के दिन की शुरुआत किले के निवासियों को दूध पहुंचाने से हुई ।लेकिन उस दिन उसका बच्चा अस्वस्थ था, जिसकी वजह से, हीरकणी किले पर देरी से पहुंची थी। और उसका सारा ध्यान जल्दी दूध बेचकर किले से बाहर निकलने पर था। दूध बेचते-बेचते सूर्यास्त हो गया।लेकिन हीरकणी दूध बेचने में इतनी व्यस्त हो गई की सूर्यास्त हो गया और उसे पता ही न चला:।और जब हीरकणी मुख्य द्वार पर पहुंची तब-तक किले का विशाल द्वार बंद हो चुका था।
हीरकणी घबरा गई क्योकि उस दिन उसका बच्चा अस्वस्थ होने साथ-साथ घर पर अकेला और भूखा भी था ।घबराई हुई हीरकणी ने द्वार पर खड़े सैनिकों से विनती कि, की उसे बाहर जाने दिया जाए क्योंकि उसका बच्चा घर पर अस्वस्थ और अकेला है । लेकिन सूर्यास्त होने के बाद किले के दरवाजे न खोलने के शिवाजी महाराज के सख्त आदेशों के कारण सैनिकों ने हीरकणी को मना करते हुए सूर्योदय तक इंतजार करने को कहा।
लेकिन एक माँ का मन इसके लिए तैयार नहीं था ।एक माँ होने के नाते हीरकणी अपने अस्वस्थ बच्चे को रात में अकेला छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी । और इसलिए अपने जीवन की परवाह न करते हुए हीरकणी ने किले की ऊँची और खड़ी दीवार से नीचे उतरने का निर्णय लिया। यह कार्य अत्यंत खतरनाक था । क्योकि रायगढ़ किले की दीवारें खड़ी चट्टानों पर बनी थीं और रात के अंधेरे में यह कार्य और भी कठिन था। हीरकणी ने अपनी ममता और आत्मविश्वास के सहारे किले की दीवार से उतरना शुरू किया। खड़ी दीवार, अंधेरा और चट्टानों की तीखी धाराएँ जैसी कठिनाइयों के बावजूद वह डटी रहीं।किले से उतरते - उतरते हीरकणी के हाथ-पैर घायल हो गए, लेकिन उनकी ममता ने हर दर्द को सह लिया। और आख़िरकार हीरकणी ने सारी कठिनाइयों को पार कर लिया ।
अगली सुबह हीरकणी रोज की तरह दूध बेचने के लिए किले के द्वार खुलने का इंतजार कर रही थी। लेकिन हीरकणी को किले के बाहर देख सैनिक हैरान रह गए। इसिलए सैनिकों ने नियमों का उल्लंघन करने के लिए हिरकानी को शिवाजी महाराज के समक्ष ले जाने का फैसला किया। जब महाराज ने हीरकणी से पूछा कि, वह शाम के समय किले से बाहर कैसे गई तो हीरकणी ने जवाब देते हुए कहा कि उसका बच्चा घर पर अकेला और अस्वस्थ था। वह उसे घर पर अकेला नहीं छोड़ सकती थी इसलिए उन्होंने किले की खड़ी गिरावट वाली पहाड़ियों को पार किया था। हीरकणी की यह बात सुनकर शिवाजी महाराज हीरकणी के साहस और ममता से अत्यंत प्रभावित हुए और उह्नोने इस कार्य के लिए हीरकणी की प्रशंसा की ।
हिरकणी सम्मान में ‘हिरकणी बुर्ज’ निर्माण
हिरकणी के साहस और वीरता ने शिवाजी महाराज को इस कदर प्रेरित कर दिया था की उन्होंने हिरकणी के सम्मान में उस पहाड़ी पर एक दीवार बनाने का आदेश दिया। और उस दिवार को ‘हिरकणी बुर्ज’ नाम दिया गया।ताकि उनकी बहादुरी और ममता की यह कहानी हमेशा याद रखी जा सके।
ममता का यह प्रतीक आज भी रायगढ़ किले में मौजूद है और उस माँ की वीरता का प्रतीक है, जिसने अपने बच्चे के लिए खतरनाक किले की दीवारों को पार कर दिखाया।
रायगढ़ किले की संरचना
रायगढ़ का किला अपनी अद्वितीय संरचना और अभेद्य बनावट के लिए प्रसिद्ध है। यह किला पहाड़ की चोटी पर स्थित है और इसकी रणनीतिक स्थिति इसे दुश्मनों के लिए लगभग अजेय बनाती है। किले को चारों ओर से खड़ी दीवारों और गहरी खाईयों ने सुरक्षित किया है। लेकिन किले के एक ओर खड़ी चट्टान थी, जहाँ कोई दीवार नहीं बनाई गई थी। यह निर्णय इसलिए लिया गया था क्योंकि सेनापतियों का मानना था कि इस ओर से किसी भी इंसान का किले में प्रवेश करना असंभव है।
यह खड़ी गिरावट लगभग सीधी और खतरनाक थी, जो दुश्मनों खिलाफ प्राकृतिक सुरक्षा के रूप में काम करती थी। रायगढ़ किले की ऊँचाई और संरचना इतनी अद्भुत थी कि इसे पार करना न केवल कठिन था, बल्कि कई बार असंभव भी प्रतीत होता था। किले के शिल्पकारों ने इसकी ऊँचाई और प्राकृतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए इसे एक अभेद्य दुर्ग में बदल दिया था।
इस किले का निर्माण छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में हुआ था और इसे मराठा साम्राज्य की राजधानी के रूप में चुना गया। इसकी ऊँचाई और मजबूती के कारण यह किला दुश्मनों के लिए एक चुनौती बना रहा।
लेकिन जहां यह खड़ी चट्टान दुश्मनों के लिए एक रुकावट थी, वहीं यह हीरकणी के साहस की परीक्षा का स्थल बन गई। वह खड़ी चट्टान, जिसे पार करना असंभव माना जाता था, हीरकणी की ममता और साहस के कारण हीरकणी का मार्ग बन गई। अद्वितीय संरचना और अभेद्य बनावट वाले इस किले में आज भी साहसी हीरकणी के मातृत्व की गाथाएँ गूंजती है|