Budget 2024: जानिए राम राज्य में कैसा था शासन, किस तरह पेश किया जाता था बजट
Budget 2024 : भारत का अंतरिम बजट 2024 अब पेश हो चुका है वहीँ क्या आपको पता है कि राम राज्य में बजट कैसे पेश किया जाता था। आइये जानते हैं वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में क्या बताया गया है।
Budget 2024: देश का अंतरिम बजट पेश हो चुका है लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामायण काल में शासन कैसा था और उस समय कैसे बजट पेश किया जाता रहा होगा। आइये आपको अवगत करते हैं राम राज्य से।
राम राज्य में कैसे पेश किया जाता था बजट
भारत का अंतरिम बजट भले ही पेश हो गया हो जिससे कुछ लोग काफी प्रसन्न हैं और वहीँ कुछ काफी निराश। लेकिन रामायण काल की अर्थव्यवस्था और बजट की अगर बात की जाये तो ये कैसा रहा होगा ये जानने की उत्सुकता हर सनातनी के मन में ज़रूर होगी। दरअसल हर राज्य में संचालन और रख-रखाव में धन का उपयोग भी प्रचुर मात्रा में होता है। वहीँ राजकोष में प्रजा द्वारा कर से लेकर अधीनस्थ राजाओं द्वारा दी जा रही राशि को संचित किया जाता है जिसका प्रयोग राज्य के विकास और उससे जुड़े कामों में प्रयोग किया जाता है। प्राचीन समय में यही बजट होता था।
राम राज्य में अयोध्या नगरी या पूरा कोशल प्रदेश एक आदर्श राज्य था। जिससे ये बात भी साफ़ होती है कि वहां की अर्थव्यवस्था से लेकर राज्य के कल्याण के लिए बनाई गईं योजनाएं सभी कुछ पूरी तरह प्रजा के हित और भलाई को ध्यान में रखकर बनाया गया था। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के बालकाण्ड के अंतर्गत पंचम और छठे सर्ग में राजा दशरथ के समय की अयोध्या नगरी के वैभव का वर्णन किया गया है आइये जानते हैं किस तरह इसका बखान किया गया है।
सामन्तराज सघेश्च बालिकर्मभीरावृताम।
नान्देशनिवासाशैश्च वनिगभीरूपशोभिताम।।14।। (वाल्मिकी रामायण बालकाण्ड 5.14)
इसका अर्थ है, कर देने वाले सामंत नरेश उसे अमीर रखने के लिए सदा वहां मौजूद रहा करते थे। साथ ही विभिन्न देशों के निवासी वैश्य वहां की शोभा बढ़ाते थे।
दूसरा वर्णन इस प्रकार है-
तेन सत्याभिसन्धें त्रिवर्ग मनुतिष्ठता।
पालिता ता पुरी श्रेष्ठा इंद्रेनेवामरावती।।5।। (वाल्मिकी रामायण बालकाण्ड 6.5)
इसका अर्थ है; धर्म, अर्थ और काम का सम्पादन करके कर्मो का अनुष्ठान करते हुए वे सत्यप्रतिज्ञ नरेश श्रेष्ठ अयोध्या का उसी तरह पालन करते हैं जैसे इंद्र अमरावती का।
अश्वमेध यज्ञ के दौरान प्रभु राम के राज्य की एक झलक देखिए: –
कोशसंग्रहने युक्ता बलस्य च परिग्रहे।
अहितम चापि पुरुषम न हिन्स्युरविधुशकम।।11।। (वाल्मिकी रामायण उत्तर काण्ड 7.11)
इसका अर्थ है, उस विभाग के लोग कोष के संचय और चतुरंगिणी सेना के संग्रह में सदा लगे रहते थे। शत्रु ने भी अगर अपराध न किया हो तो वे उनके साथ हिंसा नहीं करते थे। इसका तात्पर्य ये है कि वहां की अर्थव्यवस्था को ठीक रखने वाले निरपराध भाव से वहां कार्यरत थे।
अन्तरापाणीवीथियाश्च सर्वेच नट नर्तका:। सुदा नार्यश्च बहवो नित्यं यौवनशालीनः।।22।। (वाल्मिकी रामायण उत्तर काण्ड)
इसका अर्थ है, रामजी का आदेश था अश्वमेध के आयोजन के समय मार्ग में आवश्यक वस्तुओं के क्रय विक्रय के लिए जगह जगह बाजार भी लगने चाहिए। इतना ही नहीं बल्कि प्रवर्तक वणिक और व्यवसायी लोग भी इस दौरान यात्रा करें। साथ ही नट नर्तक, युवा भी यात्रा करें।
रामायण काल सबसे समृद्ध समय माना गया है ये वो काल था जब राजा कर लेकर भ्रष्टाचार नही करते थे। जैसा आधुनिक युग में अक्सर ही सुनने को हमे मिल जाता है।
वाल्मिकी रामायण अरण्या कांड 6.11 के अनुसार: –
सुमहान् नाथ भवेत् तस्य तु भूपतेः । यो हरेद् बलिषद्भागं न च रक्षति पुत्रवत् ।। 11 ।।
इसका अर्थ है, जो राजा प्रजा से उसकी आय का छठा भाग कर के रूप में ले ले और पुत्र की भांति प्रजा की रक्षा न करे, उसे महान अधर्म का भागी होना पड़ता था।
रामायण में लिखीं ये सभी बातें एक न्याय संगत अर्थव्यवस्था और सुशासन की ओर इशारा करतीं हैं। आशा है कि हमारा भारतवर्ष एक बार फिर से राम राज्य की तरह समृद्ध हो और यहाँ के लोग भी राम राज्य की प्रजा की भांति प्रसन्न और संतुष्ट।