Chandra Shekhar Azad Death Anniversary: ’हम आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे’ कहने वाले चंद्रशेखर तिवारी कैसे बने चंद्रशेखर आजाद, आइए जानते हैं

Chandra Shekhar Azad Story In Hindi: चंद्रशेखर आजाद एक महान क्रांतिकारी थे, जिनका जीवन संघर्ष, आत्मबलिदान और देशप्रेम का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। आइए जानें उनके बारे में।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-02-26 14:37 IST

Chandra Shekhar Azad Death Anniversary(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Chandra Shekhar Azad Death Anniversary: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वह एक ऐसे महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने न केवल अपने साहस और बलिदान से ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी, बल्कि देश के युवाओं को स्वतंत्रता की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। चंद्रशेखर आजाद का जीवन संघर्ष, आत्मबलिदान और देशप्रेम का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।

प्रारंभिक जीवन (Chandra Shekhar Azad Biography In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भावरा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था। उनका बचपन बेहद साधारण वातावरण में बीता, लेकिन उनकी माता ने उन्हें बचपन से ही वीरता और साहस की कहानियां सुनाई, जिसने उनके मन में देशभक्ति की भावना जागृत की। आजाद का बचपन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गांव में बीता था। यहां पर आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाए थे। जिसके कारण उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी।

शिक्षा और प्रारंभिक प्रभाव (Chandra Shekhar Azad Education Qualification In Hindi)

चंद्रशेखर आजाद ने प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की। बाद में वे वाराणसी पहुंचे, जहां उन्होंने संस्कृत शिक्षा ग्रहण की। वाराणसी में रहते हुए उनकी मुलाकात कई क्रांतिकारी विचारधारा वाले लोगों से हुई।

प्रारंभिक संघर्ष और असहयोग आंदोलन में भागीदारी (Asahyog Andolan)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन (Asahyog Andolan) से जुड़ने के बाद, चंद्रशेखर आजाद की गिरफ्तारी हुई। जज के सामने पेशी के दौरान जब उनसे नाम पूछा गया, तो उन्होंने अपना नाम 'आजाद' और अपने पिता का नाम 'स्वतंत्रता' बताया। इस निर्भीकता से जज नाराज हो गया और आजाद को 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई।

15 बेंतों की सजा और भारत माता की जय

आदेश के बाद बालक चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाए गए, लेकिन उन्होंने उफ्फ तक नहीं की। हर बेंत के साथ उन्होंने 'भारत माता की जय' का नारा लगाया। अंत में, उन्हें तीन आने दिए गए, जिन्हें उन्होंने जेलर के मुंह पर फेंक दिया। इसी घटना के बाद से वे 'चंद्रशेखर आजाद' के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

चौरा-चौरी कांड और कांग्रेस से मोहभंग

जलियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर आजाद समझ गए थे कि अंग्रेजी हुकूमत से आजादी बंदूक से ही मिलेगी। पहले वे गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन में शामिल हुए, लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद आंदोलन वापस लेने से उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया और वे बनारस चले गए।

महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लिए जाने से चंद्रशेखर आजाद निराश हुए और उन्होंने क्रांतिकारी मार्ग अपनाया। वे 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' (HRA) में शामिल हो गए, जिसका नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल कर रहे थे। इस संगठन का उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था।

आजाद ने काकोरी कांड (1925) में सक्रिय भूमिका निभाई, जहां क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूटकर अंग्रेजों को चुनौती दी। हालांकि, इस घटना के बाद कई क्रांतिकारी पकड़े गए और राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां समेत चार क्रांतिकारियों को फांसी दी गई, लेकिन आजाद बच निकले।

बनारस में क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत

बनारस उस समय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था। यहां आजाद मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क में आए और 'हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ' में शामिल हो गए। शुरुआत में यह दल गरीबों को लूटकर जरूरतें पूरी करता था, लेकिन बाद में केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही निशाना बनाया।

सांडर्स की हत्या और असेंबली में बम कांड

सन 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत द्वारा किए गए लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए और कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद भगत सिंह, सुखदेव ,राजगुरु ने उनकी मृत्यु का बदला लेने का फैसला किया और चंद्रशेखर आजाद ने उनका साथ दिया। इन लोगों ने 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) के पुलिस अधीक्षक जे.पी. सॉन्डर्स के दफ्तर को चारों ओर से घेर लिया और राजगुरु ने सॉन्डर्स पर गोली चला दी, जिससे उसकी मौत हो गई।

इसके बाद ‘आयरिश क्रांति’ से प्रभावित भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु और सुखदेव के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कुछ बड़ा धमाका करने की सोची। तब वर्ष 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली के अलीपुर रोड में स्थित ब्रिटिश सरकार की असेंबली हॉल में बम फेंक दिया। इसके साथ ही उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाये और पर्चे बाटें लेकिन वह कही भागे नहीं बल्कि खुद ही गिरफ्तार हो गए। इसके बाद भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर पर मुकदमा चलाया गया, जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।

खुद को ही मार ली गोली

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

आजाद का जीवन अनुशासन और साहस से भरा था। वे हमेशा कहते थे कि वे कभी अंग्रेजों के हाथों जीवित नहीं पकड़े जाएंगे। उन्होंने क्रांतिकारियों को संगठित करने, उन्हें प्रशिक्षण देने और योजनाओं को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

27 फरवरी 1931 को, इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब चंद्रशेखर आजाद पार्क) में पुलिस से घिर जाने के बाद, उन्होंने अंतिम गोली खुद को मार ली ताकि अंग्रेज उन्हें जीवित न पकड़ सकें। उनके इस बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी और युवाओं में आजादी के प्रति जोश भर दिया।

चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संस्कार भी अंग्रेज सरकार ने बिना किसी सूचना के कर दिया। जब लोगों को इस बात की जानकारी मिली, तो सड़कों पर लोगों का जमावड़ा लग गया और हर कोई शोक की लहर में डूब गया। लोगों ने उस पेड़ की पूजा शुरू कर दी, जहां इस महान क्रांतिकारी ने अपनी आखिरी सांस ली थी। आजाद ने जिस पिस्‍तौल से अपने आप को गोली मारी थी, उसे अंग्रेज अपने साथ इंग्‍लैंड ले गए थे, जो वहां के म्‍यूजियम में रखा गया था, हालांकि बाद में भारत सरकार के प्रयासों के बाद उसे भारत वापस लाया गया, अभी वह इलाहाबाद के म्‍यूजियम में रखा गया है।

चंद्रशेखर आजाद का जीवन सच्चे क्रांतिकारी का प्रतीक है। उनके त्याग, साहस और निडरता ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। आज भी उनका जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका नारा, 'हम आजाद थे, आजाद हैं, और आजाद रहेंगे', आज भी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान का प्रतीक बना हुआ है। चंद्रशेखर आजाद का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय है। उनका साहस, निडरता और देशभक्ति आज भी हर भारतीय के दिल में जीवित है। उनके बलिदान ने आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता और स्वाभिमान का संदेश दिया।

Tags:    

Similar News