Famous Author Saadat Hasan Manto: सआदत हसन मंटो, वो उर्दू साहित्यकार जिनकी कलम नहीं रोक सकी कोई कानूनी तलवार

Famous Author Saadat Hasan Manto Kaun The: पत्रकारिता और अनुवाद की शुरुआत- मंटो के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात बारी (अलीग) से हुई, जो ‘मुसावात’ पत्रिका के संपादक थे।;

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2025-01-18 12:53 IST

Famous Books Author Saadat Hasan Manto Biography Wikipedia in Hindi (Photo - Social Media)

Famous Author Saadat Hasan Manto Kaun The: सआदत हसन मंटो का जन्म 11 मई, 1912 को पंजाब के लुधियाना जिले के समराला कस्बे में हुआ। वह एक कश्मीरी परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता, मौलवी ग़ुलाम हुसैन, पेशे से जज थे। मंटो का बचपन समराला में ही बीता।मंटो की प्रारंभिक शिक्षा समराला के एक स्थानीय स्कूल में हुई। पढ़ाई में उनका मन कभी नहीं लगा। वह मैट्रिक की परीक्षा में दो बार फेल हुए। अंततः उन्होंने थर्ड डिवीज़न से मैट्रिक पास किया। इसके बाद उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भेजा गया। लेकिन टीबी की बीमारी के चलते उन्होंने पढ़ाई अधूरी छोड़ दी। लौटकर उन्होंने अमृतसर के एक विद्यालय में दाखिला लिया। मगर यहां भी पढ़ाई के प्रति उनका रुझान कम ही रहा। अधिकतर समय घूमने-फिरने में व्यतीत हुआ।

पत्रकारिता और अनुवाद की शुरुआत- मंटो के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात बारी (अलीग) से हुई, जो ‘मुसावात’ पत्रिका के संपादक थे। बारी ने मंटो की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें पत्रकारिता और अनुवाद के क्षेत्र में मार्गदर्शन दिया। मंटो ने फ्रांसीसी लेखक विक्टर ह्यूगो की पुस्तक ‘The Last Day of a Condemned Man’ का उर्दू में अनुवाद ‘सरगुज़श्त-ए-असीर’ के नाम से किया।


  • पत्रकारिता में कदम रखने के बाद मंटो ने ‘मुसावात’ पत्रिका में काम किया। बाद में ‘ख़ुल्क़’ पत्रिका से जुड़ गए। यहीं उनकी पहली प्रकाशित कहानी ‘तमाशा’ सामने आई।
  • बंबई में पहचान- 1935 में मंटो बंबई चले गए, जहां उन्हें एक नई पहचान मिली। उन्होंने ‘पारस’ और ‘मुसव्विर’ जैसी लोकप्रिय पत्रिकाओं के संपादन का काम किया। इसके साथ ही उन्होंने फिल्मों के लिए संवाद लिखने की शुरुआत की।
  • ऑल इंडिया रेडियो का अनुभव-1940 में मंटो को ऑल इंडिया रेडियो (AIR) के दिल्ली केंद्र में नौकरी मिली। यहां उन्होंने 18 महीनों तक काम किया और 100 से अधिक नाटक लिखे। लेकिन निदेशक एन.एम. राशिद के साथ विवाद के चलते उन्होंने इस्तीफा दे दिया और बंबई लौट आए।
  • विभाजन और पाकिस्तान प्रवास- बंबई लौटकर मंटो ने फिल्मों के संवाद लिखने और कहानियों पर काम जारी रखा। इसी दौरान उनकी कई कहानियां प्रकाशित हुईं। 1947 में भारत का विभाजन हुआ, जिससे मंटो को गहरा आघात पहुंचा। 1948 में वह पाकिस्तान चले गए और लाहौर में बस गए।
  • मंटो की कहानियों का प्रभाव- मंटो की कहानियों में तत्कालीन समाज का बेबाक चित्रण मिलता है। वह समाज के हर वर्ग और व्यक्ति को अपनी कहानियों का विषय बनाते थे। उनकी लेखनी ने सामाजिक मुद्दों, मानवीय कमजोरियों और विभाजन के दर्द को बड़ी सजीवता से पेश किया।

  • मंटो की प्रसिद्ध रचनाएँ- मंटो की प्रमुख कहानियों में ‘टोबा टेक सिंह’, ‘ठंडा गोश्त’, ‘खोल दो’, और ‘काली शलवार’ शामिल हैं। उनके लेखन का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और वह साहित्यिक दुनिया में अमर हो गए।
  • मंटो पर चलने वाले मुकदमे- सआदत हसन मंटो का लेखन बेबाक और समाज के यथार्थ को उजागर करने वाला था। उनकी कहानियों पर कई बार अश्लीलता के आरोप लगाए गए, जिसके चलते उन्हें कई बार कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
  • मंटो पर पहला मुकदमा ‘काली सलवार’ के लिए हुआ था। इस कहानी को लाहौर की ‘अदब-ए-लतीफ’ पत्रिका ने 1942 में छापा था। कहानी पर अश्लीलता के आरोप लगे। अदालत ने दंड भी दिया।लेकिन बाद में सेशन कोर्ट ने कहानी को अश्लीलता के आरोप से मुक्त कर दिया।
  • मंटो पर दूसरा मुकदमा उनकी कहानी ‘बू’ के लिए चला। यह कहानी ‘अदब-ए-लतीफ’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। इस पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगाया गया। मंटो पर डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स की धारा 38 के तहत केस चला।लेकिन अंततः उन्हें बरी कर दिया गया।
  • मंटो पर तीसरा मुकदमा उनकी कहानी ‘धुआं’ के लिए दर्ज हुआ। यह कहानी दिल्ली के साकी बुक डिपो द्वारा प्रकाशित की गई थी। इस पर भी अश्लीलता के आरोप लगाए गए और मंटो पर ताजीरात-ए-हिंद की धारा 292 के तहत केस चला। अदालत ने उन्हें 200 रुपये जुर्माना भरने का आदेश दिया। हालांकि, जब यह मामला सेशन कोर्ट पहुंचा, तो मंटो बरी हो गए और जुर्माने की राशि उन्हें लौटा दी गई।

पाकिस्तान में मंटो पर चौथा मुकदमा उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘ठंडा गोश्त’ के लिए चला। यह कहानी पाकिस्तान जाने के बाद उनकी पहली प्रमुख रचना थी। कहानी के प्रकाशित होने के बाद उस पर अश्लीलता फैलाने के आरोप लगे। मंटो, साथ ही पत्रिका के मुद्रक और संपादक, तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें तीन महीने की सजा सुनाई गई और 300 रुपये जुर्माना भी लगाया गया। हालांकि, बाद में उन्हें जमानत मिल गई।

मंटो पर पाँचवा मुकदमा ‘ऊपर, नीचे और दरमियान’ के लिए चला। यह कहानी लाहौर के ‘अहसान’ अखबार में प्रकाशित हुई थी। दिलचस्प बात यह है कि मुकदमे की सुनवाई करने वाले मजिस्ट्रेट मेहंदी अली सिद्दीकी स्वयं मंटो के प्रशंसक थे। सुनवाई के दौरान उन्होंने मंटो से तारीख पूछी और मंटो के जवाब देने पर उन पर 25 रुपये का जुर्माना लगाकर मामला समाप्त कर दिया।

मंटो का बंटवारे से मोहभंग- मंटो का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के लुधियाना जिले में 11 मई, 1912 को हुआ था। 1947 में देश का विभाजन हुआ और मंटो पाकिस्तान चले गए। हालांकि, उनका दिल हमेशा भारत में ही बसा रहा।उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ विभाजन के दर्द को गहराई से दर्शाती है। इस कहानी में वह लिखते हैं, “उधर ख़ारदार तारों के पीछे हिंदुस्तान था, इधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान। दरमियान में ज़मीन के उस टुकड़े पर जिसका कोई नाम नहीं था, टोबा टेक सिंह पड़ा था।”पाकिस्तान में रहते हुए मंटो ने अपनी आत्मकथा में लिखा, “मेरे लिए यह एक तल्ख हकीकत है कि अपने मुल्क में, जिसे पाकिस्तान कहते हैं, मैं अपना सही स्थान ढूंढ़ नहीं पाया हूं। यही वजह है कि मेरी रूह बेचैन रहती है। मैं कभी पागलखाने में और कभी अस्पताल में रहता हूं।”

आर्थिक तंगी और सामाजिक संघर्ष

मंटो ने अपने जीवन में नाम तो बहुत कमाया।लेकिन हमेशा आर्थिक तंगी में रहे। उन्होंने लिखा, “बाइस किताबें लिखने के बाद भी मेरे पास रहने के लिए घर नहीं है। टूटी-फूटी एकाध पुरानी कार भी नहीं है। मुझे अगर कहीं जाना होता है, तो साइकिल किराये पर लेकर जाता हूं।”

उनके परिवार और दोस्तों ने शुरुआत में लेखन को लेकर उनका मजाक उड़ाया। मंटो ने अपनी आत्मकथा ‘मैं क्यों लिखता हूं’ में लिखा, “मैं क्यों लिखता हूं? यह सवाल ऐसा है जैसे मैं क्यों खाता हूं, क्यों पीता हूं। लेकिन जब गहराई में जाता हूं, तो पाता हूं कि मैं लिखता हूं इसलिए कि मुझे कुछ कहना होता है। मैं लिखता हूं, इसलिए कि मैं कुछ कमा सकूं ताकि मैं कुछ कहने के काबिल हो सकूं।”


साहित्यिक योगदान और विवाद- पाकिस्तान में मंटो के खिलाफ आखिरी मुकदमा उनकी कहानी ‘ऊपर, नीचे और दरमियान’ पर चला। कहानी पर अश्लीलता का आरोप लगा। लेकिन यह मामला भी 25 रुपये के जुर्माने के साथ समाप्त हुआ।मंटो ने विभाजन के खिलाफ सवाल उठाए और इस विषय पर फैज अहमद फैज, अहमद नदीम कासमी, चिराग हसन हसरत और साहिर लुधियानवी जैसे साहित्यकारों से चर्चा की। लेकिन किसी ने उन्हें संतोषजनक उत्तर नहीं दिया।

सआदत हसन मंटो ने 18 जनवरी, 1955 को, मात्र 42 वर्ष की आयु में, इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मृत्यु के साथ ही उर्दू साहित्य का एक चमकता हुआ सितारा बुझ गया।लेकिन उनकी रचनाएं उन्हें अमर बना गईं।

पुरस्कार और सम्मान- मंटो ने अपने छोटे से जीवन में साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। हालांकि, अपने जीवनकाल में उन्हें वह सम्मान और पहचान नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे। विडंबना यह है कि जिस सरकार ने उनकी कहानियों पर अश्लीलता के आरोप लगाए और उन्हें जेल भेजा, उसी सरकार ने मंटो के निधन के बाद उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-इम्तियाज’ से नवाजा। उनके सम्मान में डाक विभाग ने एक डाक टिकट भी जारी किया।


मंटो ने अपने जीवनकाल में 22 कहानी संग्रह, नाटक और निबंध लिखे। उनकी कहानियां ‘खोल दो,’ ‘ठंडा गोश्त,’ और ‘टोबा टेक सिंह’ आज भी उर्दू साहित्य की धरोहर मानी जाती हैं। उनकी जिंदगी पर बॉलीवुड में 2018 में एक फिल्म ‘मंटो’ बनाई गई, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने उनका किरदार निभाया।

सआदत हसन मंटो का जीवन और लेखन संघर्षों और विवादों से भरा रहा।लेकिन उन्होंने अपनी कलम से समाज को आईना दिखाया। वह उर्दू साहित्य के ऐसे रचनाकार हैं, जिनकी कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं और पाठकों को झकझोरती हैं।

Tags:    

Similar News