Famous Freedom Fighter: "मेरी अस्थियां तभी भारत जाएं जब देश स्वतंत्र हो"श्यामजी कृष्ण वर्मा: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम क्रांतिकारी

Freedom Fighter Shyamji Krishan Verma: यूँ तो भारत की आज़ादी की लड़ाई में कई महान क्रांतिकारियों ने भाग लिया लेकिन कई सेनानी ऐसे भी रहे जिनके बारे में कम ही ज़िक्र मिलता है लेकिन उनके त्याग को भुलाया नहीं जा सकता ऐसी ही अनसुनी कहानी है श्यामजी कृष्ण वर्मा की।;

report :  Jyotsna Singh
Update:2025-03-01 08:00 IST

Freedom Fighter Shyamji Krishan Verma (Image Credit-Social Media)

Freedom Fighter Shyamji Krishan Verma: भारत की मिट्टी के प्रति अपनी वफादारी निभाने वाले श्यामजी कृष्ण वर्मा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने विदेश में रहकर स्वतंत्रता की लौ जलाए रखी और अनेक भारतीय युवाओं को क्रांतिकारी आंदोलन से जोड़ा। वे एक महान राष्ट्रवादी, विद्वान, पत्रकार और समाज सुधारक थे। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि "इंडिया हाउस" की स्थापना थी, जो लंदन में भारतीय क्रांतिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बना। श्यामजी कृष्ण वर्मा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक गुमनाम नायक थे। उन्होंने विदेश में रहकर क्रांतिकारी आंदोलन को बढ़ावा दिया और भारतीय युवाओं को प्रेरित किया। उनका योगदान स्वतंत्रता आंदोलन की नींव मजबूत करने में बेहद महत्वपूर्ण था। आज, वे भारतीय इतिहास के एक महान राष्ट्रवादी के रूप में याद किए जाते हैं, जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि जब तक आत्मसम्मान, शिक्षा और स्वतंत्रता की भावना जीवित है, तब तक कोई भी शक्ति हमें रोक नहीं सकती।श्यामजी कृष्ण वर्मा सिर्फ एक क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि एक विलक्षण बुद्धिजीवी, समाज सुधारक और दूरदर्शी नेता थे। उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे रोचक किस्से हैं, जो उनकी राष्ट्रभक्ति, सूझबूझ और अद्वितीय व्यक्तित्व को उजागर करते हैं। आइए जानते हैं इनके जीवन से जुड़े उन किस्सों के बारे में -

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म 4 अक्टूबर 1857 को गुजरात के मांडवी (कच्छ) नामक स्थान पर हुआ था। उनका परिवार सामान्य स्थिति में था, लेकिन उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और मेहनत के बल पर उच्च शिक्षा प्राप्त की।

प्रारंभिक शिक्षा मांडवी और मुंबई में हुई। संस्कृत और वैदिक ग्रंथों में गहरी रुचि थी, जिससे वे स्वामी दयानंद सरस्वती के संपर्क में आए। 1879 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के "बैलियोल कॉलेज" में प्रवेश लिया और वहां से संस्कृत में विशेष योग्यता प्राप्त की।

उनकी विद्वत्ता के कारण उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में संस्कृत का प्रथम भारतीय प्रोफेसर बनने का अवसर मिला।

ब्रिटेन में राष्ट्रवाद की नींव

श्यामजी कृष्ण वर्मा की राष्ट्रवादी भावना इतनी मजबूत थी कि उन्होंने ब्रिटेन में रहकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आधारशिला रखी।

ऑक्सफोर्ड में पहले भारतीय संस्कृत प्रोफेसर बनने की दिलचस्प कहानी

  • श्यामजी कृष्ण वर्मा की विद्वत्ता इतनी अद्भुत थी कि जब वे 1879 में इंग्लैंड पहुंचे, तो उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के "बैलियोल कॉलेज" में प्रवेश लिया और वहां संस्कृत में विशेष योग्यता प्राप्त की।
  • उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर प्रसिद्ध जर्मन विद्वान मोनियर विलियम्स ने उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत का प्रोफेसर नियुक्त किया।
  • यह ब्रिटिश शासन के दौर में एक असाधारण उपलब्धि थी, क्योंकि उस समय भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। उनकी विद्वत्ता को देखकर यूरोपीय समाज में भी भारतीय ज्ञान पर विश्वास बढ़ा।

स्वामी दयानंद सरस्वती के शिष्य बनने की घटना

श्यामजी कृष्ण वर्मा केवल क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि वैदिक ज्ञान और हिंदू धर्म में भी गहरी रुचि रखते थे। उनकी मुलाकात स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई और वे आर्य समाज से प्रभावित होकर उनके शिष्य बने। 1875 में मुंबई में स्वामी दयानंद से पहली बार मुलाकात हुई और वे उनके विचारों से इतने प्रभावित हुए कि आर्य समाज के प्रचार में लग गए। उन्होंने हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और समाज सुधार को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा।

स्वामी दयानंद का राष्ट्रवाद से जुड़ा विचार बाद में श्यामजी के क्रांतिकारी दृष्टिकोण का आधार बना।

लंदन में क्रांतिकारियों के लिए "इंडिया हाउस" बनाने का साहसिक निर्णय

  • श्यामजी कृष्ण वर्मा ने जब ब्रिटिश समाज में भारतीयों की दयनीय स्थिति को देखा, तो उन्होंने 1905 में "इंडिया हाउस" की स्थापना की। इस फैसले से ब्रिटिश सरकार को करारा झटका लगा, क्योंकि यह स्थान भारतीय क्रांतिकारियों के लिए एक क्रांतिकारी केंद्र बन गया।
  • वीर सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा जैसे युवा यहाँ रहकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ योजनाएं बनाने लगे।
  • उन्होंने यहां निःशुल्क आवास और शिक्षा दी, ताकि युवा स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दे सकें। ब्रिटिश अखबारों ने इसे "भारत में क्रांति की प्रयोगशाला" कहकर संबोधित किया।
  • ब्रिटिश सरकार को यह नागवार गुजरा और वे श्यामजी कृष्ण वर्मा को गिरफ्तार करने की योजना बनाने लगे।

द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट: एक प्रतिबंधित पत्रिका जिसने ब्रिटेन को हिला दिया

  • श्यामजी कृष्ण वर्मा ने भारत की स्वतंत्रता के विचार को जन-जन तक पहुँचाने के लिए 1905 में "द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट" नामक पत्रिका शुरू की।
  • यह पत्रिका ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारतीयों को जागरूक करने का सबसे प्रभावी माध्यम बनी। ब्रिटिश सरकार ने इस पर देशद्रोह का आरोप लगाकर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन श्यामजी ने इसकी छपाई अलग-अलग स्थानों से जारी रखी। इस पत्रिका ने वीर सावरकर और अन्य क्रांतिकारियों को प्रेरित किया।
  • श्यामजी कृष्ण वर्मा को जब लगा कि ब्रिटिश सरकार उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बना रही है, तो उन्होंने लंदन छोड़कर जिनेवा (स्विट्जरलैंड) में शरण ले ली।

मदनलाल ढींगरा की फांसी और श्यामजी का साहसिक कदम

  • 1909 में लंदन में मदनलाल ढींगरा ने ब्रिटिश अधिकारी विलियम हट कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी।
  • यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के लिए एक बड़े झटके की तरह थी। मदनलाल ढींगरा को गिरफ्तार कर लिया गया और अदालत ने उन्हें मृत्युदंड दे दिया।
  • इस घटना के बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा को भी ब्रिटिश सरकार ने निशाना बनाया, जिससे बचने के लिए वे स्विट्जरलैंड चले गए।

अंतिम इच्छा: "मेरी अस्थियां तभी भारत जाएं जब देश स्वतंत्र हो "

श्यामजी कृष्ण वर्मा ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ इतना संघर्ष किया कि उन्हें भारत लौटने की अनुमति कभी नहीं मिली।श्यामजी कृष्ण वर्मा ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष जिनेवा, स्विट्जरलैंड में बिताए। उन्होंने वहां भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रचार-प्रसार जारी रखा। 1930 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता (पूर्ण स्वराज) की मांग उठने पर वे अत्यधिक प्रसन्न हुए।

30 मार्च 1930 को जिनेवा में उनका निधन हुआ। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी अस्थियां तब तक भारत न लाई जाएं, जब तक देश स्वतंत्र न हो जाए। 2003 में गुजरात सरकार ने उनकी अस्थियां स्विट्जरलैंड से भारत लाकर कच्छ (गुजरात) में "कृष्ण वर्मा स्मारक" में रखीं।

श्यामजी कृष्ण वर्मा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सच्चे नायक थे। उनके जीवन से जुड़े किस्से हमें बताते हैं कि कैसे उन्होंने न केवल भारत में, बल्कि विदेश में भी ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांति की नींव रखी। वे एक विद्वान, क्रांतिकारी, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका योगदान भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए।

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