Indian History in Hindi: मलिक अंबर का गुलामी से लेकर अहमदनगर सल्तनत के प्रधानमंत्री बनने का अद्वितीय सफर

History Of Mallik Ambar: क्या आप जानते हैं अहमदनगर सल्तनत के प्रधानमंत्री रहे मलिक अंबर के बारे में आइये विस्तार से जाने गुलामी से लेकर अहमदनगर सल्तनत के प्रधानमंत्री बनने तक का उनका सफर कैसा था।;

Report :  Shivani Jawanjal
Written By :  Shivani Jawanjal
Update:2025-01-04 15:54 IST

History Of Mallik Ambar 

History Of Mallik Ambar: अफ्रीकी मूल के एक महान रणनीतिकार, शासक और प्रशासक, मलिक अंबर एक प्रमुख सैन्य नेता और अहम ऐतिहासिक व्यक्तित्व थे, जो अहमदनगर सल्तनत के प्रधानमंत्री रहे।उनका जन्म अफ्रीकी मूल के एक गुलाम के रूप में हुआ था।बाद में उन्होंने अहमदनगर राज्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रारंभिक जीवन

मलिक अंबर का जन्म 1549 में इथियोपिया के हारार क्षेत्र में हुआ था। वह ओरोमो समुदाय से संबंधित थे, जो उस समय पूर्वी अफ्रीका में बसा हुआ एक प्रमुख जातीय समूह था। मलिक अंबर का मूल नाम ‘चापु’ था। उनका बचपन एक साधारण ग्रामीण और चरवाहा जीवन में बीता, जो ओरोमो समुदाय की परंपराओं और शांतिपूर्ण जीवनशैली से जुड़ा हुआ था।


16वीं शताब्दी का इथियोपिया दास व्यापार का एक बड़ा केंद्र बन चुका था। ओरोमो समुदाय के लोग, जो उस समय समाज में नए थे, ईसाई सोलोमोनिक साम्राज्य और मुस्लिम अदाल सल्तनत के आक्रमणों के कारण दास व्यापार का मुख्य शिकार बन गए। और मलिक अंबर भी इन्हीं परिस्थितियों के शिकार हुए।

उनका प्रारंभिक जीवन अत्यंत कठिनाइयों और संघर्षों से भरा था। बाल्यकाल में ही उन्हें दास बना लिया गया और बगदाद के बाजार में बेच दिया गया। वहाँ उन्हें ख्वाजा पीर बगदाद ने खरीदा और अपने साथ दक्षिण भारत ले आए। यहाँ उन्हें मुर्तजा निजामशाह प्रथम के मंत्री चंगेज खाँ ने दास के रूप में खरीद लिया। चंगेज खाँ उस समय अहमदनगर का प्रधानमंत्री थे।


मलिक अंबर अत्यंत बुद्धिमान और प्रतिभाशाली थे। तथा उदार स्वाभाव व नीतिगत कुशलता ने उन्हें चंगेज खाँ का विश्वासपात्र बना दिया। चंगेज खाँ के संरक्षण में रहते हुए मलिक अंबर को निजामशाही राजनीति और सैन्य प्रबंधन को निकटता से समझने का अवसर मिला। और यह अवसर उनके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए महत्तवपूर्ण साबित हुआ ।हालांकि चंगेज खाँ की आकस्मिक मृत्यु के बाद मलिक अंबर को कुछ समय तक अहमदनगर राज्य में संघर्ष करना पड़ा ।

ख्याति की शुरुआत

अहमदनगर पर मुगलों के निरंतर आक्रमण और राज्य की गिरती स्थिति ने मलिक अंबर को अन्य विकल्प खोजने के लिए मजबूर किया। उन्होंने बीजापुर और गोलकुंडा राज्यों में स्थान पाने की कोशिश की।लेकिन असफल रहे। अंत में वह दोबारा अहमदनगर लौटे और सेना में भर्ती हो गए। यहाँ उनके साहस और नीतिगत कौशल के कारण उन्हें जल्दी ही 150 अश्वारोही सैनिकों का नेतृत्व सौंपा गया।


उन्होंने इस अवसर का लाभ उठाया और अपनी सैन्य प्रतिभा का परिचय देते हुए शत्रु शिविरों पर छापेमारी की और रसद लूटकर मुगल आक्रमणकारियों को परेशान किया। उनकी योजनाओं और नेतृत्व ने उन्हें एक अद्वितीय योद्धा और सैन्य रणनीतिकार के रूप में ख्याति दिलाई । 

निजामशाही का पुनरुत्थान

हालांकि 1595 में जब अहमदनगर पर मुगलों का अधिकार हो गया, तब मलिक अंबर ने निजामशाही परिवार के सदस्य अली को सिंहासन पर बैठाया और परेंदा को नई राजधानी के रूप में स्थापित किया। उन्होंने मराठों की सहायता से एक नई सेना का निर्माण किया और राज्य का पुनर्गठन किया। उनकी सैन्य नीति और प्रशासनिक सुधारों ने अहमदनगर को पुनः जीवित किया ।


उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मराठा सैनिकों को संगठित करना और एक नवीन गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का विकास करना थी। इस युद्ध प्रणाली ने मुगलों के विशाल और संगठित सैन्य बलों को कमजोर किया। 1605 तक, मलिक अंबर ने अहमदनगर के अधिकांश क्षेत्र मुगलों से प्राप्त कर लिए थे ।

मुगलों से संघर्ष

अकबर की मौत के बाद मुगलों की कमान में परिवर्तन हुआ और मुगल साम्राज्य की डोर शहजादे सलीम यानी जहांगीर के हाथ में आई।जहाँगीर के शासनकाल में मलिक अंबर की बढ़ती ख्याति को कमजोर करने के लिए मुगलों ने कई षड़यंत्र रचे ।लेकिन बीजापुर और गोलकुंडा की सहायता से मलिक अंबर ने मुगलों का डटकर सामना किया। और 1610 में मुगलों को बड़ी शिकस्त का सामना करना पड़ा।


जहाँगीर ने अहमदनगर पर तीनो दिशाओं से आक्रमण करने का षड़यंत्र रचा।लेकिन मलिक अंबर की रणनीति के सामने उसकी एक न चली।मलिक अंबर ने अपनी सैन्य कुशलता और साहस से अपने राज्य की रक्षा की तथा अहमदनगर के आसपास के क्षेत्रों को पुनः प्राप्त किया। जिस कारण आग बबूला जहांगीर ने एक पेंटिंग बनवाई जिसमें वो मलिक अंबर के कटे सिर पर बाण चलाता हुआ दिख रहा है,हालांकि उसका यह सपना कभी पूरा न हो सका।

अहमदनगर का नया शाह

मलिक अंबर के जीवन और शासन में कई विवादस्पद घटनाएँ भी जुड़ी हैं, जिनमे अहमदनगर के किशोर राजा मुर्तजा शाह की आकस्मिक मृत्यु का समावेश है ।हालांकि इतिहासकारों के बीच इस घटना को लेकर भिन्न मत है ।

अहमदनगर के राजा मुर्तजा शाह अपने किशोरावस्था में ही सिंहासन पर बैठे थे। उनके शासनकाल के दौरान प्रशासन और कानून व्यवस्था पूरी तरह मलिक अंबर के हाथों में ही थी। मलिक अंबर ने राज्य की सुरक्षा और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के साथ-साथ अपनी स्थिति को भी बेहद प्रभावशाली बना लिया था। हालांकि, मलिक अंबर की यह प्रभावशाली स्थिति राजा मुर्तजा शाह को रास न आई ।


और ऐसी परिस्थितियों में, मुर्तजा शाह ने मलिक अंबर को हटाने की योजना बनाई ।मुर्तजा शाह के इस संभावित विद्रोह को भांपकर मलिक अंबर ने अपने सचिव मीर अब्दुल फतेह के साथ मिलकर राजा को सत्ता से हटाने का षड्यंत्र रचा। यह भी कहा जाता है कि इस योजना के तहत मुर्तजा शाह को जहर देकर मार दिया गया। उनकी मृत्यु के बाद सिंहासन खाली हो गया।

मलिक अंबर ने तत्काल प्रभाव से अपने अनुकूल स्थिति बनाने के लिए एक नया राजा नियुक्त किया। इस बार उन्होंने मुर्तजा शाह के केवल 5 साल के बेटे को गद्दी पर बैठा दिया। यह निर्णय उनकी रणनीतिक कुशलता को दर्शाता है, क्योंकि एक नाबालिग राजा के रहते हुए वास्तविक सत्ता और नियंत्रण पूरी तरह मलिक अंबर के हाथों में आ गया। हालांकि, इस घटना को लेकर इतिहासकारों के बीच विवाद है।

विद्या और कला का संरक्षण

मलिक अंबर ने विद्या और कला को प्रोत्साहन प्रदान किया । उन्होंने न केवल अरब और फारस के विद्वानों को अपने दरबार में आमंत्रित किया बल्कि उन्हें संरक्षण भी प्रदान किया। उनके शासनकाल में किर्की, विद्या और ज्ञान का केंद्र बन गया। तथा उन्होंने चितखाना की स्थापना की, जहाँ हिंदू और मुस्लिम विद्वान मिलकर विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन किया करते थे ।


मृत्यु और विरासत

1625 में भाटवाड़ी के युद्ध में मलिक अंबर ने मुगलों और आदिलशाही सेनाओं को करारी शिकस्त दी। इस जीत ने उनकी प्रतिष्ठा को और बढ़ा दिया। लेकिन अगले ही वर्ष, मई 1626 में, अस्सी वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

मलिक अंबर का जीवन संघर्ष, साहस और सफलता की कथा है। उन्होंने एक बिखरे हुए राज्य को अपने साहस और कौशल से पुनर्जीवित किया। उनकी नीतियों और उपलब्धियों ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया। 

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