History Of Naked Warrior: ब्रिटिशों का समर्थन करके भारत के खिलाफ युद्ध लड़ने वाला कौन था ये जटाधारी और नग्न योद्धा? आइये जानते हैं
History Of Naga Sanyasi Anup Giri Gosain: अनूपगिरि ने कभी अंग्रेजों के साथ युद्ध किया तो कभी अंग्रेजों के खिलाफ, उन्होंने उस दौर के हर युद्ध में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने मराठों के ख़िलाफ़ मुगलों का भी साथ दिया।;
Anupgiri Gosain Story: अनूपगिरि गोसाईं (Anupgiri Gosain) एक ऐसा नागा संन्यासी जिसने युद्ध में भारत के खिलाफ की थी अंग्रेजों की मदद से मुग़लों ने भारत पर करीब 300 सालों तक राज किया तो वही करीब 190 सालों तक भारत अंग्रेजों के कब्जे में था। भारत की आज़ादी से पहले और बाद के इतिहास में कई ऐसे किस्से और घटनाएं हैं, जो आज भी रोमांचक हैं। इन्हीं में से एक है नागा संन्यासी ‘अनूपगिरि गोसाईं’ (Anupgiri Gosain) का किस्सा। अनूपगिरि गोसाईं एक नागा संन्यासी होने के साथ-साथ एक प्राइवेट आर्मी के मुखिया भी थे। उनकी सेना को ‘नग्न योद्धाओं’ के नाम से जाना जाता था।
अनूपगिरि ने कभी अंग्रेजों के साथ युद्ध किया तो कभी अंग्रेजों के खिलाफ, उन्होंने उस दौर के हर युद्ध में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने मराठों के ख़िलाफ़ मुगलों का भी साथ दिया। इस संन्यासी शिवभक्त को मुग़ल 'हिम्मत बहादुर' कहकर संबोधित करते थे। भारत पर अंग्रेजों द्वारा कब्जे में अनूपगिरि गोसाईं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आज इस लेख के माध्यम से हम इस नागा संन्यासी के जीवन के बारे में आपको जानकारी देंगे।
कौन थे अनूपगिरि गोसाईं (Anupgiri Gosain Kon The)
अनूपगिरि गोसाईं (Anupgiri Gosain) का वर्णन 18वीं सदी के एक दुस्साहसी कमांडर के रूप में किया जाता है, जो जटाधारी नागा साधुओं की एक निजी सेना का नेतृत्व करते थे। इस सेना में पैदल सैनिकों के साथ घुड़सवार योद्धा भी शामिल थे, जो तोपों से लैस होकर जंग के मैदान में दुश्मनों पर टूट पड़ते थे। अनूपगिरि गोसाईं एक संन्यासी और शिव भक्त थे, और भारत में उनका विशेष आदर था।
ऐसा कहा जाता है, अनूपगिरि गोसाईं का जन्म 1734 में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण प्रांत बुंदेलखंड (वर्तमान उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश) में हुआ था। पिता के मृत्यु के बाद, उनकी ग़रीब और विधवा मां ने, उन्हें और उनके बड़े भाई को एक सेनापति को दे दिया था। और अनूपगिरि गोसाईं ने अपना पूरा बचपन मिट्टी के सैनिकों से खेलते हुए बीताया। हालांकि ये बस कहानियां हैं और इसके अधिकारक तौर पर कोई साक्ष मौजूद नहीं है।
अलग-अलग लेखकों और इतिहासकारों द्वारा भिन्न वर्णन
लेखक विलियम आर पिंच की किताब में अनूपगिरि गोसाईं का वर्णन
विलियम आर पिंच ने अपनी किताब 'वॉरियर एसेटिक्स एंड इंडियन एम्पायर्स' में अनूपगिरी को एक ‘योद्धा संन्यासी’ के रूप में वर्णित किया है। वे नागा साधुओं की 'डरावनी और बेलगाम' छवि को चुनौती देते हुए बताते हैं कि 18वीं सदी में ये साधु ‘हथियारों से लैस और अनुशासित’ होते थे। पिंच के अनुसार, इन साधुओं को ‘सबसे बेहतरीन घुड़सवार और पैदल सेना’ माना जाता था।
ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसर जेम्स स्किनर द्वारा चित्र में वर्णन
ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसर जेम्स स्किनर ने 19वीं सदी की शुरुआत में एक चित्र बनाया था, जिसमें एक नागा सैनिक को नंगे बदन, हथियारों से लैस और सुरक्षा तंत्र के साथ दर्शाया गया था।
पिंच यह भी बताते हैं कि नागा साधुओं की ख्याति ‘धावा बोलने और हाथ से लड़ने’ में थी, और अनूपगिरी के नेतृत्व में ये साधु एक पूरी पैदल और घुड़सवार सेना के रूप में विकसित हो गए थे।
विलियम डैलरिम्पल द्वारा ‘द एनार्की’ वर्णन में वर्णन
विलियम डैलरिम्पल ने अनूपगिरी को ‘निर्भीक नागा कमांडर’ के रूप में वर्णित किया है और बताया कि मुग़ल शासकों ने उन्हें ‘हिम्मत बहादुर’ का खिताब दिया था। डैलरिम्पल ने अपनी किताब ‘द एनार्की’ में ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहास और भारत पर उसके कब्जे के संदर्भ में मुग़ल कमांडर मिर्ज़ा नजफ़ ख़ान की सेना का ज़िक्र किया है, जिसमें अलग-अलग प्रकार के सैनिक शामिल थे। इनमें अनूपगिरी गोसाईं के नेतृत्व में 6,000 जटाधारी नागा संन्यासी थे, जो नंगे बदन लड़ते थे और उनके पास 40 तोपें थीं।
इस किताब में अनूपगिरी की सेवाओं का एक और उल्लेख मिलता है, जिसमें बताया गया है कि उनकी फ़ौज में 10,000 पैदल और घुड़सवार सैनिक शामिल थे। उनके पास पांच तोपें, असंख्य रसद से लदी बैलगाड़ियां, टेंट और 12 लाख रुपये की नगद राशि थी। लेखक डैलरिम्पल की इस किताब में 18वीं सदी के सबसे सफल 'फ़ौजी व्यवसायी' या भाड़े के सैनिकों में से एक के रूप में अनूपगिरी का वर्णन किया गया है।
बनारस के जज थॉमस ब्रुक द्वारा अनूपगिरी का वर्णन
बनारस के जज थॉमस ब्रुक ने अनूपगिरी के बारे में कहा कि एक स्थानीय व्यक्ति के अनुसार, वे ऐसे इंसान थे जो दो नावों पर सवार रहते थे और डूबने वाली नाव को तुरंत छोड़ने के लिए तैयार रहते थे। इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि यह करिश्माई योद्धा संन्यासी हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराता था।
लेखक पिंच कहते हैं.....
पिंच लिखते हैं कि अनूपगिरी हर जगह अपनी उपस्थिति बनाए रखते थे, क्योंकि उनकी जरूरत हर किसी को थी। हालांकि, लोग उन्हें पसंद नहीं करते थे, क्योंकि वे ऐसे व्यक्ति थे जिनकी जरूरत के पीछे अक्सर नापसंदगी छिपी होती थी। वे सैनिक उपलब्ध कराने, जमीन से जुड़े मामलों में जानकारी देने, कुशल मध्यस्थ बनने या फिर विवादास्पद कामों को चुपचाप अंजाम देने में माहिर थे। अनूपगिरी ने अलग-अलग मोर्चों पर कई युद्ध लड़े। 1761 के पानीपत के युद्ध में उन्होंने मराठों के खिलाफ मुग़ल साम्राज्य और अफ़गानों का साथ दिया। तीन साल बाद, बक्सर के युद्ध में वे अंग्रेज़ों के खिलाफ मुग़लों के साथ लड़ाई में शामिल थे।
दिल्ली में फ़ारसी शासक नजफ़ ख़ान के प्रभाव को बढ़ाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। पिंच के अनुसार, बाद में अनूपगिरी ने मराठों के खिलाफ अंग्रेज़ों का साथ दिया। 1803 में अपने जीवन के अंतिम दौर में, उन्होंने मराठों की हार सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई, जिससे दिल्ली पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा संभव हुआ। परिणामस्वरूप ईस्ट इंडिया कंपनी को न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख शक्ति के रूप में मार्ग प्रशस्त करने का अवसर मिला।
मुख्य युद्धों में अनूपगिरी भागीदारी:- अनूपगिरी ने अलग-अलग समय पर विभिन्न पक्षों का समर्थन किया
1761 में पानीपत की लड़ाई में मुगलों और अफ़गानों के पक्ष में मराठों के खिलाफ लड़े।
1764 में बक्सर की लड़ाई में मुगलों के पक्ष में अंग्रेजों के खिलाफ हिस्सा लिया।
1803 में मराठों के खिलाफ अंग्रेजों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी और दिल्ली पर अंग्रेजों के कब्ज़े में मदद की।
अंग्रेजों की विजय में उनकी भूमिका:- उनके योगदान ने 1803 में अंग्रेजों को मराठों पर जीतने में मदद की, जिससे दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों पर ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण मजबूत हुआ। यह घटना ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसने विश्व में एक प्रमुख शक्ति बना दिया।
बक्सर की निर्णायक लड़ाई:- डैलरिम्पल ने बक्सर की निर्णायक लड़ाई के बारे में लिखा है कि इस युद्ध ने बंगाल और बिहार पर अंग्रेजी शासन को स्थायी रूप से स्थापित कर दिया। इस लड़ाई में अनूपगिरी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उन्होंने अवध के गवर्नर शुजाउदौला को युद्ध के मैदान से पीछे हटने के लिए राजी कर लिया और कहा, “यह बेवजह अपनी जान गंवाने का समय नहीं है। हम आसानी से पीछे हट सकते हैं और भविष्य में बदला लेने का अवसर मिलेगा।” इसके बाद, शुजाउदौला एक नाव से बने पुल के सहारे पीछे हटे, और अनूपगिरी ने आदेश दिया कि उनके पीछे सभी नावों को नष्ट कर दिया जाए।