Holi 2022: मंदिरों में चढ़े फूलों से रंग बनाने का खोजा अनोखा तरीका, त्वचा के साथ रखा प्रकृति का भी ख्याल

Holi 2022: मंदिरों में भगवान के चरणों में अर्पित किये गए फूलों को एकत्रित करके उनसे होली के विभिन्न रंग बनाते हैं। जो पूरी तरह से प्राकृतिक (natural) हैं।

Report :  Preeti Mishra
Published By :  Shashi kant gautam
Update: 2022-03-16 13:26 GMT

मंदिरों में चढ़े फूलों से बना नेचुरल गुलाल: Photo - Social Media

Lucknow: होली (Holi 2022) खेलना किसे पसंद नहीं है? शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसके अंदर का बचपन होली के आनंद में हिलोरें ना मारता हो। मस्ती, चुहड़बाज़ी और खुशियों से ओतप्रोत यह पर्व खुशहाली और एकता का अद्भुत समागम लिए हुए अपनी सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाता है। हिन्दू धर्म (Hindu religion) में किसी भी त्यौहार (Indian Festival) की शुरुआत देवताओं के चरण वंदन के साथ ही शुरू होती है।

परंपरा के अनुसार होली का पहला रंग और गुलाल भगवान् को ही अर्पण किया जाता है। फूल ,गुलाल और पकवान का भोग लगाने के बाद ही घर में होली के त्यौहार की शुरुआत होती है। मस्ती और मजे के बीच में खलल तब पड़ जाती है जब केमिकल युक्त रंग से हमारी स्किन दरदरी, खराब हो जाती है। उस वक़्त ये केमिकल युक्त रंग हमारी खुशियों के रंग में भंग डाल देते हैं।

मंदिरों पर चढ़े फूलों से बना रंग पूरी तरह से केमिकल फ्री

लेकिन, MEERUT INSTITUTE OF TECHNOLOGY के Director आलोक चौहान ने इसका एक बहुत ही अदभुत और अति सुन्दर रास्ता खोज निकाला है। उन्होंने बताया कि कानपुर के कुछ युवकों ने एक अनोखा startup शुरू किया है। जिसमें वे लोग मंदिरों में भगवान के चरणों में अर्पित किये गए फूलों को एकत्रित करके उनसे होली के विभिन्न रंग बनाते हैं। जो केमिकल (chemical free ) और जैविक मुक्त होने के कारण पूरी तरह से प्राकृतिक (natural ) हैं।

मेरठ इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी: Photo - Social Media

Natural Gulal नाम के इस प्रोडक्ट के बारे में यह दावा किया गया है कि यह मंदिरों पर चढ़े फूलों से बना है और पूरी तरह से केमिकल फ्री है। इसमें फूलों के अलावा non-GMO cornstarch और सुगन्धित तेलों का मिश्रण किया गया है।


श्री चौहान ने बताया की उनके संस्थान के Biotechnology Department, Chemical Department और Pharmacy Department तीनों ने मिलकर एक Lab तैयार किया है जो पूरी तरह से Cruelty free टेस्ट करता है। यानि यहाँ किसी भी जीवित व्यक्ति या जानवर के ऊपर कोई भी टेस्ट आधारित नहीं होता है। यहाँ टेस्ट लाइन के आधार पर होती है यानि प्रोडक्ट में इस्तेमाल केमिकल का पता लाइन्स के जरिये ही किया जाता है।


नेचुरल प्रोडक्ट्स को बढ़ावा

श्री चौहान का कहना है कि उनके institute का उद्देश्य प्राकृतिक चीज़ों को बढ़ावा देना है। Eco friendly वातावरण बनाने के लक्ष्य को साथ लेते हुए इंस्टिट्यूट ऐसे नेचुरल प्रोडक्ट्स को भी बढ़ावा देता है। उन्होंने बताया कि उनके संस्थान के लैब (lab ) में कोई भी व्यक्ति अपने प्रोडक्ट्स की जांच करवा सकता है। फिर चाहे वो कॉस्मेक्टिक्स, मेडिसिन या खाने-पीने जैसी इत्यादि चीज़ें हों। किसी भी प्रोडक्ट की जांच (testing) अहिंसक (Cruelty free) होती है। इंस्टिट्यूट किसी भी प्रोडक्ट्स की जांच बेज़ुबान जानवरों या किसी भी living thing के ऊपर नहीं करता। जो अपने आप में बेहद सहरानीय है।

प्रकृति बचाओ और प्रकृति बढ़ाओं के अपने मूलमंत्र के साथ आलोक चौहान ने कहा कि हमारा संस्थान प्रकृति को बढ़ावा देने वाले लोगों को भी बढ़ावा देने का काम हमेशा करता रहेगा। इसी दिशा में कानपुर के युवकों द्वारा बनाये गए प्राकृतिक फूलों से होली के रंगों को बनाना एक उम्दा प्रयास है। जिसमें किसी भी तरह का कोई भी केमिकल नहीं है।


फूलों से बने इन रंगों की डिमांड बढ़ी

ध्यान दें कि भगवान को अर्पण होने वाले फूल अक्सर कूड़े में ही चले जाते हैं। लेकिन इन युवकों ने इस दिशा में एक बेहतरीन प्रयास किया है। फूलों से बने इन रंगों की डिमांड सिर्फ कानपुर में ही नहीं बल्कि दिल्ली एनसीआर, लखनऊ के अलावा और भी राज्यों के बाज़ारों में काफी हो गयी है। इतना ही नहीं ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों में भी इसकी डिमांड बहुत तेजी से बढ़ी है। ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म जैसे ऐमज़ॉन पर यह रंग और गुलाल मौजूद हैं।

प्रकृति हमारी वो धरोहर है जिसके स्वस्थ रहने से ही हमारा वजूद है। इसलिए हम सभी लोगों का यह परम दायित्व है हम प्रकृति के रक्षक बनें। ईश्वर द्वारा प्रद्दत इस नायाब तोहफे को संभालकर रखना हर व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है।

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