कहीं आपके बच्चे भी तो नहीं सोशल फोबिया के चपेट में, ऐसे करें बचाव
सामाजिक चिंता (Social anxiety) एक तरह की महामारी है। ये सोशल फोबिया के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में ये एक तरह का न उभरने वाले डर का गैर-मौजूदा फोबिया (non-existing phobia) है।
सामाजिक चिंता (Social anxiety) एक तरह की महामारी है। ये सोशल फोबिया के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में ये एक तरह का न उभरने वाले डर का गैर-मौजूदा फोबिया (non-existing phobia) है। एक प्रकार का ऐसा विकार डर है, जिससे आप डरा हुआ सा महसूस करने लगते हैं। सामाजिक चिंता विकार (Social anxiety disorder) का सामना कर रहे लोग ये मान लेते हैं कि उनका आतंरिक प्रकाश कभी वापस नहीं आएगा। उनकी दुनिया में कभी भी प्रकाश आ भी जाए, लेकिन वे लोग इसके बजाय अंधेरा पसंद करते हैं, क्योंकि शायद वो समाज से न स्वीकार किए जाने का सामना कर रहे हों।
पर्यावरण में हमारे खुद के रंगीन विशेषणों को मिलाना आसान नहीं है। गलत धारणा को मिटाने और हमारी अपनी रियलिटी को बनाने के लिए कड़ी मेहनत की जरुरत है। सामाजिक चिंता अक्सर एक अंधेरे की तरह बन जाती है जिसे हम अपना वातावरण मान लेते हैं, लेकिन ये हमारे अस्तित्व के लिए हानिकारक और संक्रामक होता है।
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इग्नोर करने से बढ़ता है खतरा
क्या आपने ये जानने की कोशिश की है कि कहीं आपका बच्चा इस विकार (disorder) का सामना तो नहीं कर रहा है। क्या आपका बच्चा उसको सताये जाने (bully) और न अपनाये जाने जैसी चीजों की शिकायत करता है। अगर हां, तो फिर ये चिंताजनक विषय है। अगर आप इसे इग्नोर करते हैं तो ये खराब मानसिक स्वास्थ्य की समस्या और विकास के जोखिम को बढ़ा सकता है।
सामाजिक चिंता (सोशल फोबिया) बच्चों के लिए काफी संकट पैदा कर सकती है और उनमें आसपास की दुनिया से अलगाव की भावना ला सकता है। क्योंकि ये आपके बच्चे के लिए काफी कठिन है कि वो समाज का ध्यान अपनी और आकर्षित कर सकें।
सामाधान को जानने में होती है कठिनाई
कोई भी अभिभावक उनके बच्चे को परेशान नहीं देखना चाहेगा और बच्चे अगर शर्मिंदगी, उनके बच्चों की उम्र के अन्य बच्चों द्वारा खराब व्यवहार, उपहास उड़ाया जाना, और स्कूल या पड़ोस में दोस्त बनाने में परेशानी का सामना करते होते हैं तो इसके लिए किसी भी समाधान को जानने में मुश्किल होती है।
8 से 16 साल के बच्चे आते हैं चपेट में
आमतौर पर, सोशल फोबिया की चपेट में आने वाले बच्चों की औसत आयु 13 वर्ष होती है, और 75% बच्चों की उम्र 8 से 15 वर्ष के बीच होती है। ये विकार इतिहास में हुए किसी सामाजिक निषेध से हो सकता है, या फिर नियमित रुप से शर्म से हो सकता है, इसके अलावा बदमाशी के साथ-साथ दर्दनाक घटनाओं से भी उत्पन्न हो सकता है।
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कैसे माता-पिता बन सकते हैं सहयोगी
सभी बच्चों के विकास के लिए लिए, माता-पिता का सपोर्ट और स्वीकृति सबसे अधिक प्रभाव डालती है। जब बच्चे बहुत ज्यादा चिंतित होते हैं तो, किसी भी अभिभावक के लिए सुरक्षा मोड पर जाना और अपने बच्चे को उन समस्याओं से दूर रखना स्वाभाविक है। लेकिन फोबिया के दौरान ये एक बच्चे के लिए अनुचित और हानिकारक होगा, अगर आप अपने बच्चों के दोस्त बनने के बजाए, अपने बच्चों पर अपने नियंत्रण को बढ़ाते हैं और उन पर कुछ सीमाएं तय करते हैं। बच्चों के साथ दोस्ती बच्चे के विकास में प्राथमिक भूमिका निभाती है।
बच्चे को सपोर्ट करने, समाधान निकालने और उन्हें प्यार जताने से उनके जीवन के सभी पहलु प्रभावित होते हैं और इससे उनके निर्णय लेने के क्षमता को भी बढ़ावा मिल सकता है। याद रहे कि, अभिभावक और बच्चे के बीच का रिश्ता केवल भरोसे पर टिका होता है। और केवल भरोसा ही एक मात्र ऐसी शक्ति है, जिससे बच्चे के चिंता को दूर किया जा सकता है। भरोसे का एक मजबूत आधार और अभिभावक और बच्चे के बीच विश्वास बच्चे को आशावादी और सामाज में आत्मविश्वास के साथ खड़े रहने में मदद करता है। माता-पिता की भागीदारी, बच्चे के साथ उसके डेली लाइफ में सहभागिता और हस्तक्षेप, बेहतर सामाजिक समझ की व्याख्या करता है।
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तो चलिए जानते हैं कि, अभिभावक कैसे अपने बच्चों की इस विकार से उभरने में मदद कर सकते हैं।
सामाजिक चिंता (सोशल फोबिया) का सामना कर रहे शख्स को किसी भी सामाजिक परिस्थिति का सामना करते समय बहुत अधिक चिंता व व्याकुलता होती है। जो इस विकार का सामना कर रहा है, वो अपने आप को दोबारा नॉर्मल लाइफ में जाने की अनुमति नहीं दे पाता है।
ये हैं सोशल फोबिया के लक्षण-
- अत्यधिक अकेलापन का होना और केवल परिचित लोगों से लगाव
- नए मित्र बनाने में हिचकिचाना
- नए लोगों से मिलने से हिचकिचाना
- स्कूल में अनुपस्थिति होना
- समाज के खराब व्यवहार के लिए माता-पिता को कोसना
- लोगों और उनके खराब व्यवहार के लिए शिकायत करना
- बेवजह रोना, बोलने में परेशानी होना
बच्चों से विकार को दूर करने के लिए ये करें उपाय
बच्चों को सिखाए शांति का पाठ
अपने बच्चे को आराम और शांति बरतना सिखाएं। अपने बच्चे को अपने भीतर की परेशानी के साथ शांति बनाने के लिए कहें, जो उन्हें बदलने में मदद करेगा। मेडिटेशन शांति के लिए एक बढ़िया दृष्टिकोण है। और उनके दिमाग को भावनात्मक रूप से स्पष्ट, सचेत रहने के लिए प्रशिक्षित करेगा और आत्म-जागरूकता पैदा करने में मदद करेगा।
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लाइफ कोच की लें मदद
यदि माता-पिता अपने बच्चों के साथ विश्वास कायम करने और उनके साथ बॉन्ड बनाने में असमर्थ हैं और सामाजिक चिंता से निपटने में उनकी मदद करने में असमर्थ हैं तो आप लाइफ कोच की मदद ले सकते हैं। जो उन्हें जो उन्हें जीवन के उद्देश्य को खोजने, सशक्त बनाने और बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।
अल्फा लीडर बनने के लिए करें प्रोत्साहित
आप अपने बच्चे को अल्फा लीडर बनने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं और उन्हें उनके पाठ्यक्रम और रचनात्मक गतिविधियों में बढ़ने में मदद कर सकते हैं। आप उनसे अन्य बच्चों के सामने उनकी बॉडी लैंग्वेज और पॉस्चर को सही करने के बारे में बात कर सकते हैं। इसके अलावा आप उन्हें ये सिखा सकते हैं कि वे अधिक आकर्षक कैसे बन सकते हैं और लोग उनकी ओर कैसे आकर्षित हो सकते हैं।
बेहतर परिणामों पर दें ध्यान
आप हमेशा अपने बच्चे को परिणामों के बेहतर पक्ष पर ध्यान देने और उसे आगे बढ़ने के लिए सीखने के लिए कह सकते हैं।
नाकारात्मक सोच से रखेें दूर
एक सामाजिक रूप से चिंतित बच्चे हमेशा एक नकारात्मक विश्वास के इर्द-गिर्द घूमते रहेंगे जो उनके चिंतित विचारों को पुष्ट करेगा। उनकी सोचने के लिए प्रक्रिया हमेशा दूसरों से अलग होगी, जैसे- वो हमेशा मुझे जज करेंगे, ये सोचना कि दूसरे हमेशा उनका मजाक बनाएंगे और उनसे बुरी तरह बर्ताव करेंगे। आप अपने बच्चे को उनके नकारात्मक विश्वास को पहचानने और सकारात्मक विचारों में बदलाव करने के लिए कह सकते हैं। किसी भी नए या पुराने लोगों से मिलते समय उनके पास एक मुस्कुराहट के साथ सकारात्मक सोच होनी चाहिए। कभी वहां ध्यान केंद्रित करने के लिए मत सीखाइए कि दूसरे उनके बारे में क्या नकारात्मक कहते हैं बजाय इसके ऐसे लोगों से बचें और अपने स्वयं के कौशल पर ध्यान केंद्रित करें।
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