India’s First Female Doctor: ये थीं भारत की पहली महिला डॉक्टर, जानिए कैसे उस समय हासिल किया था ये मुकाम
Anandibai Gopalrao Joshi Wiki In Hindi: देश की पहली महिला डॉक्टर आनंदी गोपालराव जोशी का जीवन संघर्ष, साहस और सफलता की अद्भुत कहानी है। आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में।;
India’s First Female Doctor (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Bharat Ki Pehli Mahila Doctor Kon Thi: आज के दौर में मेडिकल क्षेत्र में महिलाएं बड़ी संख्या में काम कर रही हैं और डॉक्टर सहित तमाम जिम्मेदारियों को निभा रही हैं। लेकिन आज से लगभग 150 साल पहले का समय बिल्कुल अलग था, जब महिलाओं के लिए डॉक्टर बनना तो दूर, उच्च शिक्षा प्राप्त करना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। ऐसे समय में आनंदी गोपालराव जोशी ने भारत की पहली महिला डॉक्टर बनकर एक नया इतिहास रचा। उनका जीवन साहस, दृढ़ संकल्प और शिक्षा के प्रति अटूट निष्ठा का प्रतीक है।
आनंदी गोपालराव जोशी (Anandibai Gopalrao Joshi) का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वह भारत की पहली महिला डॉक्टर (India’s First Female Doctor) बनीं, जिन्होंने न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा, बल्कि भारतीय महिलाओं के लिए शिक्षा और स्वतंत्रता का मार्ग भी प्रशस्त किया। उनका जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा था, लेकिन उनके दृढ़ निश्चय और अपने उद्देश्य के प्रति अटूट समर्पण ने उन्हें एक अमर व्यक्तित्व बना दिया।
शादी और शिक्षा
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
आनंदी गोपालराव जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के एक रूढ़िवादी जमींदार परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम यमुना था। उनका परिवार पारंपरिक और धार्मिक विचारों वाला था, जहां लड़कियों की शिक्षा को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था। ब्रिटिश शासकों द्वारा महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा को समाप्त कर देने के बाद आनंदी के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। मात्र 9 साल की उम्र में उनकी शादी गोपालराव जोशी से कर दी गई, जो उनसे 20 साल बड़े थे। गोपालराव एक प्रगतिशील विचारधारा वाले व्यक्ति थे और उन्होंने आनंदीबाई की शिक्षा के प्रति गंभीरता दिखाई।
आनंदीबाई ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था, लेकिन गोपालराव ने उनकी शिक्षा का बीड़ा उठाया। उन्होंने आनंदीबाई का दाखिला मिशनरी स्कूल में कराया, जहां उन्होंने बुनियादी शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद जब गोपालराव का तबादला कलकत्ता (अब कोलकाता) हुआ, तो आनंदीबाई भी उनके साथ वहां गईं। वहां उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी पढ़ना और बोलना सीखा।
इस घटना के बाद ठाना डॉक्टर बनना
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
आनंदीबाई के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने अपने 10 दिन के नवजात शिशु को उचित चिकित्सा देखभाल के अभाव में खो दिया। इस घटना ने आनंदीबाई के मन में डॉक्टर बनने और महिलाओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान देने की इच्छा जागृत की। गोपालराव ने इस उद्देश्य में उनका पूरा साथ दिया और उन्हें विदेश जाकर चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। सन् 1880 में उन्होंने एक प्रसिद्ध अमेरिकी मिशनरी, रॉयल वाइल्डर को पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने आनंदीबाई की रुचि को देखते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका में चिकित्सा के अध्ययन की जानकारी मांगी। इसके बाद आनंदीबाई ने अमेरिका के पेंसिल्वेनिया स्थित महिला मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया।
1883 में, आनंदीबाई ने 'विमेन्स मेडिकल कॉलेज ऑफ पेन्सिल्वेनिया' (अब 'ड्रेसेल यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन') में दाखिला लिया। वहां उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी। उस समय एक भारतीय महिला के लिए विदेश जाकर पढ़ाई करना और वह भी चिकित्सा के क्षेत्र में, एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
21 साल में बनीं भारत की पहली महिला डॉक्टर
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
आनंदीबाई ने 21 साल की उम्र में एमडी की डिग्री हासिल की और वह भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं। यह एक ऐसा समय था जब महिलाएं घर की चारदीवारी में ही सीमित थीं और समाज में लड़कियों की शिक्षा का विरोध होता था। आनंदीबाई ने न केवल इस प्रतिरोध का सामना किया, बल्कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करके एक मिसाल कायम की। उनकी इस सफलता पर महारानी विक्टोरिया ने भी उन्हें बधाई संदेश भेजा था।
डिग्री प्राप्त करने के बाद आनंदीबाई अपने देश वापस लौटीं। उन्हें कोल्हापुर के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल में महिला चिकित्सक के रूप में नियुक्त किया गया। उनका सपना था कि वह भारतीय महिलाओं को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराएं और चिकित्सा शिक्षा में भी महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करें।आनंदीबाई ने पश्चिम बंगाल के सेरमपुर कॉलेज के हॉल में समुदाय को संबोधित किया, जहां उन्होंने अमेरिका जाकर मेडिकल डिग्री प्राप्त करने के अपने फैसले को विस्तार से समझाया। उन्होंने विशेष रूप से भारत में महिला डॉक्टरों की आवश्यकता पर जोर दिया और अपने दूरगामी लक्ष्य के बारे में बात की, जिसमें भारत में महिलाओं के लिए एक समर्पित मेडिकल कॉलेज (आनंदीबाई मेडिकल कॉलेज) स्थापित करना शामिल था।
उनके इस प्रेरक भाषण को व्यापक प्रचार मिला, और इसके परिणामस्वरूप पूरे भारत में लोगों ने वित्तीय योगदान देना शुरू कर दिया, जिससे उनके सपनों को समर्थन मिला। इसके बाद पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए आनंदीबाई को अपने सभी गहने बेचने पड़े। आनंदीबाई के इस साहसिक कदम में कुछ लोगों ने भी उनका साथ दिया और सहायता के रूप में 200 रुपये की मदद दी।
अमेरिका में कठिन मौसम, लंबी यात्रा और अपर्याप्त पोषण के कारण उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता गया। उन्हें तपेदिक (टीबी) हो गया। 26 फरवरी 1887 को, मात्र 22 वर्ष की आयु में उनका दुखद निधन हो गया। उनके निधन के बाद, उनके संघर्ष और उपलब्धियों को याद करते हुए कई संस्थानों और संगठनों ने उनके नाम पर स्कॉलरशिप और चिकित्सा सेवाओं की शुरुआत की।
युवा महिलाओं के लिए प्रेरणा
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
आनंदी गोपाल जोशी ने न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में बल्कि समाज में भी एक नई सोच को जन्म दिया। उन्होंने यह साबित किया कि यदि महिलाओं को उचित अवसर और प्रोत्साहन मिले, तो वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के समान सफलता प्राप्त कर सकती हैं। आज भी, चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में उनकी विरासत जीवित है। उनके नाम पर कई संस्थान और छात्रवृत्तियां चलाई जा रही हैं, जो युवा महिलाओं को शिक्षा के क्षेत्र में प्रोत्साहित करती हैं।
आनंदी गोपाल जोशी का जीवन संघर्ष, साहस और समर्पण का जीता-जागता उदाहरण है। उन्होंने उन सभी रूढ़ियों को तोड़ा, जो उस समय भारतीय समाज में महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता को बाधित करती थीं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि यदि उद्देश्य स्पष्ट हो और दृढ़ निश्चय हो, तो कोई भी बाधा हमारे सपनों को साकार होने से रोक नहीं सकती।
दुर्भाग्यवश, आनंदीबाई को टीबी (क्षय रोग) हो गया, जिससे उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती गई। महज 22 साल की उम्र में 26 फरवरी 1887 को उनका निधन हो गया। इतनी कम उम्र में उनका जाना चिकित्सा जगत के लिए एक बड़ी क्षति थी।
आनंदीबाई के निधन के बाद भी उनके कार्यों की गूंज सदियों तक सुनाई देती रही। उनकी राख को न्यूयॉर्क के पकिप्सी कब्रिस्तान में दफनाया गया, जहां उनकी कब्र के हेडस्टोन पर लिखा गया- 'आनंदीबाई जोशी MD (1865- 1887), भारत की पहली महिला डॉक्टर'। उनके नाम पर शुक्र ग्रह पर एक क्रेटर का नाम 'जोशी क्रेटर' रखा गया है।
आनंदीबाई पर आधारित टीवी सीरियल और फिल्में
आनंदीबाई जोशी का जीवन न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया। उनकी जीवन यात्रा पर 1888 में कैरोलिन वेल्स ने एक बायोग्राफी लिखी थी, जिसके आधार पर दूरदर्शन पर 'आनंदी गोपाल' नाम से एक टीवी सीरियल भी प्रसारित किया गया। इसके अलावा, उनके जीवन पर एक मराठी फिल्म 'आनंदी गोपाल' भी बनाई गई है, जिसने दर्शकों के बीच गहरी छाप छोड़ी।
31 मार्च 2018 को, गूगल ने उनकी 153वीं जयंती के अवसर पर उन्हें सम्मानित करते हुए एक विशेष 'गूगल डूडल' समर्पित किया। इसके अतिरिक्त, महाराष्ट्र सरकार ने महिलाओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली युवा महिलाओं के लिए 'आनंदीबाई जोशी फैलोशिप' की स्थापना की है।
आनंदी गोपालराव जोशी का जीवन संघर्ष, साहस और सफलता की अद्भुत कहानी है। उन्होंने उन रूढ़ियों को तोड़ा, जिन्होंने महिलाओं को शिक्षा और स्वतंत्रता से वंचित रखा था। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय, कड़ी मेहनत और सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। आनंदीबाई की कहानी आज भी लाखों महिलाओं को प्रेरित करती है और उन्हें अपने सपनों को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाने का साहस देती है।