Motivational Story in Hindi: तुम ही तो थी मेरी सारंधा

Motivational Story in Hindi: चलते समय वो बोलीं, अजय तुम कोयंबटूर आओगे ना? बताओ? अजय? खुद को पुरज़ोर संभालते हुए मैं बस 'हां' में सिर भर हिला पाया। ट्रेन चली गयी और मैं ये कह न सका कि तुम ही तो थी मेरी सारंधा।;

Newstrack :  Network
Update:2025-02-03 13:25 IST

Motivational Story in Hindi (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Motivational Story in Hindi: रात को 8 बजने को थे। मोबाइल की रिंग बजी। उधर से आवाज़ आई, अजय फ्री हो? बात हो सकती है? मैंने हांमी भरते हुए पूछा कि बात क्या है? तुम घबराई हुई क्यों हो? वो बोलीं, टैगोर टाउन आ सकते हो? मैंने पूछा, अभी? इसी वक़्त? उसने कहा, 'हां' तुरंत! ताई की तबीयत ठीक नहीं है।

साढ़े आठ बजते-बजते मैं टैगोर टाउन था। उसकी ताई की तबीयत गंभीर थी। हम ऑटो रिज़र्व करके शहर के एक नामी प्राइवेट अस्पताल लेकर भागे। अस्पताल के डॉक्टरों ने स्थिति गंभीर बताते हुए तुरंत एसआरएन लेकर जाने को कहा। एंबुलेंस आई। लेकिन एसआरएन पहुंचने से पहले ही ताई की सांसे थम चुकी थीं।

उन्होंने ही जर्मनी फ़ोन करके ताई के इकलौते बेटे व बहू को सूचना दी। सप्ताह भर बाद वो भारत लौटे और औपचारिकताएं पूरी करके फिर जर्मनी लौट गये। जाने से पहले वो ताई के उस मकान की क़ीमत लगा चुके थे। इसलिए उन्हें अब वह घर छोड़ना था।

ताई जब उन्हें हॉस्टल से लेकर इस घर में आईं, तब ताई एक कॉलेज में लैक्चरर थीं। एक बेटा भर था। पति की वर्षों पहले सड़क हादसे में मौत हो गई थी। शादी के बाद आईआईटियन बेटा भी पत्नी संग जर्मनी चला गया। अब ताई अकेली हो गईं। उन्हें तलाश थी एक ऐसी छात्रा की, जो उनके साथ रहकर पढ़े-लिखे और उनकी बेटी जैसी रहे।

तब वो विश्वविद्यालय से रिसर्च कर रही थीं। वह भी अपने मां-बाप की अकेली ही संतान थीं। पिता शराब बहुत पीते थे। मां को बहुत पीटते थे। एकदिन मां उत्पीड़ित होकर फांसी लगा ली थी। मां के मरने के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली। लेकिन शादी के कुछ ही वर्षों बाद कोरोना में पिता व उसकी दूसरी मां भी गुज़र गई। और वह ताई के पास ही रह गईं।

अब ताई भी गुज़र गईं। ताई का घर भी उनका बेटा बेचकर पत्नी संग जर्मनी लौट गया। ताई का घर छूटने के बाद स्कॉलरशिप के पैसों से वह कटरा में ही एक किराये का कमरा लेकर रहने लगीं। मैं किताबें खरीदने कटरा जबकभी भी जाता, वह ज़रूर मिलतीं। दो-तीन महीने न मिलते तो शिकायत भी करतीं।

'सारंधा' पर लिखे मेरे हर पोस्ट्स के स्क्रीनशॉट्स उनकी गैलरी में सेव होते थे। एकबार बातों ही बातों में वो बोलीं, अगर इसे आप इसे अपनी प्राइवेसी में दख़ल न समझें तो कभी आप अपनी सारंधा से मुझे मिलवाएंगे??? मैं उस ख़ुशनसीब से मिलना चाहती हूं। लेकिन मैं बात टाल गया था।

इस अप्रैल उनका रिसर्च पूरा हो गया। वो हमेशा कहतीं, अजय रिसर्च पूरी करके मैं अपने घर, कोयंबटूर लौट जाऊंगी। वहां मैं क्षेत्रभर के सभी बच्चों को फ्री में ट्युशन दूंगी। वो जनवरी में ही मुझसे बता दी थीं कि अजय मई में मैं हमेशा के लिए अपने गांव लौट जाऊंगी। तुम तमिलनाडु कभी आना तो मिलना ज़रूर।

परसों दोपहर में उनका फ़ोन आया। बोलीं, अजय कटरा आ सकते हो? मैंने पूछा, अभी? बोलीं, आज नहीं, कल सुबह। अगले दिन हम आर्ट फैकल्टी के बरगद के पेड़ के नीचे घंटों बैठे रहे। हॉस्टल में तो उनका फेयरवेल दो दिन पहले ही दिया जा चुका था। आज सिर्फ़ हम और वो बरगद के नीचे बैठे थे।

घंटों बातें हुईं। उनके मन में अपनी मां को खोने का मलाल भरा था। वो मां को याद करके, खुद को बहुत रोकना चाहकर भी फफक पड़ीं। आज मैं उनकी आंखों में सदियों से पुरुषों द्वारा महिलाओं पर किये गये अहिंसा की प्रतिनिधि, उन बूंदों को देख रहा था। बहुत संभालने पर भी आंसू मेरे भी लुढ़क गये थे।

आज एक पुरुष और एक स्त्री आमने-सामने बैठकर आंसू बहा रहे थे। उनकी आंखों में आंसू उमड़ता देख मैंने न जाने कब, उनके हाथ के दोनों नाजुक पंजों को अपनी दोनों हथेलियों में समेट लिया। आज पहली बार मैंने किसी स्त्री को इतनी नज़दीक से छुआ था। हज़ारों कहानियों का मूक साक्षी बरगद आज हमें छांव दे रहा था।

शाम साढ़े पांच बजे की उनकी ट्रेन थी। हमने ई-रिक्शा किया और जंक्शन पहुंचे। मेरी आंखों में आसूं देख वो पूछी, अपनी सारंधा को आज भी मिलवाने नहीं ले आए? मैंने मुस्कुराकर बात टाल दी। जाते समय उन्होंने मुझे अपनी कुछ क़िताबें दीं।

कैसे बताता तुम ही तो थी मेरी सारंधा

ट्रेन चलने-चलने को थी। हम उन्हें छोड़ने उनकी सीट तक गये थे। अब उनकी बारी थी। अब वो मुझे छोड़ने ट्रेन की गेट तक आ रही थीं। ट्रेन चलने के लिए हॉर्न दे चुकी थी। चलते समय वो बोलीं, अजय तुम कोयंबटूर आओगे ना? बताओ? अजय? खुद को पुरज़ोर संभालते हुए मैं बस 'हां' में सिर भर हिला पाया। ट्रेन चली गयी। मेरे मन में उनकी यही बात गूंजती रही, "अपनी सारंधा को आज भी मिलवाने नहीं ले आए?" मैं कैसे बताता कि तुम ही तो थी मेरी सारंधा।

(साभार- अजय एस एन सिंह)

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