Motivational Story: प्रेरक प्रसंग/ जनक राजा का स्वप्न

Motivational Story: एक प्राचीन कथा है कि महाराज जनक अपने महल में सो रहे थे। सोते हुए उन्हें स्वप्न आया कि किसी दूसरे राजा ने उनपर आक्रमण कर दिया

Report :  Kanchan Singh
Update:2024-04-28 13:31 IST

Motivational Story ( Social MEDIA PHOT

Motivational Story: संसार की सत्ता प्रतिक्षण मिटती है। जगत में दो ही चीजें हैं - लीला और लीलामय। जिस प्रकार एक ही स्वप्न द्रष्टा पुरुष स्वप्न की सृष्टि करता है और उसका अनुभव करता है। उसी प्रकार एक ही परमात्मा - एक ही लीलामय संसार में लीलारत है।एक प्राचीन कथा है कि महाराज जनक अपने महल में सो रहे थे। सोते हुए उन्हें स्वप्न आया कि किसी दूसरे राजा ने उनपर आक्रमण कर दिया। उसने विजय प्राप्त कर ली। इनका सब कुछ छिन गया। उसने मुनादी करवा दी कि इन्हें कोई खाने-पीने को कुछ ना दे। इस राज्य की सीमा से बाहर कर दिया जाय। इन्हें ऐसा स्वप्न आ रहा था। उस स्वप्न में ही तीन दिन व्यतीत हो गये । परन्तु राजा को कुछ खाने-पीने को नहीं मिला।

भूख-प्यास से पीड़ित राजा को कोई आश्रय देने को तैयार नहीं। चौथे दिन वे उस राज्य की सीमा के बाहर उस स्थान पर पहुँचे जहाँ अन्न-सत्र चल रहा था। सबको भोजन दिया जा चुका था तब ये रोते हुए वहाँ पहुँचे और कुछ देने के लिये निवेदन किये। अन्न क्षेत्र के व्यक्ति ने कहा, "भाई ! और कुछ तो नहीं है, इस पात्र में जली हुई खिचड़ी की खुरचन लगी है, इसे ले लो।" भूख तो इन्हें लगी ही थी। इन्होंने खुरचन लेकर ज्योंही खाना प्रारम्भ करना चाहा त्यों ही एक चील ने झपट्टा मारा और खिचड़ी गिर गयी। खिचड़ी नीचे गिरते ही इन्होंने जोर से चीखा और चीख असली हो गयी। स्वप्न टूट गया, राजा भाग गये। राजा की यह चीख महल में लोगों ने सुनी। तुरन्त रानियाँ, नौकर-चाकर, दास-दासी, दीवान साहब दौड़े आये। डॉक्टर वैद्य बुलाये गये। सबने पूछा, "महाराज ! क्या हुआ ?" अब महाराज बड़े असमंजस में पड़ गये। बोले, क्या बताऊँ ?


राजा ने देखा कि मैं तो राजमहल में इस पलंग पर बिछे मखमली गद्दे पर लेटा हूँ परन्तु अभी-अभी तो मैं भूखा-प्यासा था, राज्य से निर्वासित था। मैं उसका अनुभव भी कर रहा था। अब यह सच्चा है या वह सच्चा ? राजा के मन में यह प्रश्न आ गया कि यह सच्चा या वह सच्चा। यह प्रश्न उनके जीवन में आ गया। जिसे भी देखें उससे यही प्रश्न करें। वैद्यों ने निदान किया कि राजा का मस्तिष्क किसी स्वप्न को देखकर भ्रमित हो गया है। वे पागल हो गये हैं। राजा महल में बैठे रहते। जो खाने को दिया जाता वह खा लेते और जो भी मिलता उससे यही पूछते यह सच्चा या वह सच्चा ?एक दिन अष्टावक्र मुनि राजमहल में आये। वे बड़े तपस्वी, योगी, सिद्धपुरुष थे। मुनि को राजा के स्वप्न का पूरा वृत्तान्त बताया गया। अष्टावक्र जी बड़े मनौवैज्ञानिक, पंडित थे। उन्होंने समझ लिया कि स्वप्न ही राजा की इस स्थिति का मुख्य कारण है। वे राजा के पास बैठ गये और वार्ता शुरू की।

अष्टावक्र - राजन ! जिस समय तुम राज्य से निर्वासित किये गये और तुम्हारा सब कुछ छीन लिया गया उस समय तुम राजा थे क्या ?

जनक - मुनिवर ! उस समय मैं एकदम साधारण व्यक्ति था।

अष्टावक्र - जब तीन दिनों तक तुम्हें कोई आहार नहीं मिला तब तुम्हारी क्या हालत थी ?

जनक - मैं भूख से बेहाल था।

अष्टावक्र - जब तुम उस अन्नक्षेत्र में गये तब तुम्हारे पास यह महल नहीं था न ?

जनक - महाराज ! महल क्या था ? मैं तो राज्य से निर्वासित था।

अष्टावक्र - उस दिन तुम्हें खिचड़ी की खुरचन दी गयी तो तुमने ले ली ?

जनक - लेता कैसे नहीं ? मैं भूख से व्याकुल था।

अष्टावक्र - जब चील ने झपट्टा मारा तो बड़ा दुःख हुआ ?

जनक - हाँ मुनिवर ! दुःख हुआ लेकिन तुरन्त मैं जाग गया।

अष्टावक्र - राजन ! अब बताओ, जिस समय तुम निर्वासित होकर जा रहे थे उस समय यह महल, रानियाँ, दीवान, सिपाही, गहने-कपड़े थे क्या ?

जनक - नहीं थे।

अष्टावक्र - अब बताओ, तुम महल में हो ना ?

जनक - हाँ, महल में हूँ।

अष्टावक्र - अब वह अन्नक्षेत्र यहाँ है क्या ?

जनक - नहीं है।

अष्टावक्र - अब वैसी भूख-प्यास और परेशानी है क्या ?

जनक - नहीं, बिल्कुल नहीं है।

अष्टावक्र - राजन ! तुम्हारे प्रश्न का सीधा उत्तर हो गया कि 'जैसा यह वैसा वह' और जैसा वह वैसा यह। जाग्रत में स्वप्न नहीं और स्वप्न में जाग्रत नहीं। जाग्रत का संसार स्वप्न में नहीं और स्वप्न का जाग्रत में नहीं। जब तक तुम जागे नहीं तब तक यह संसार नहीं रहा और जब जाग गये तो वह नहीं रहा। इसलिये दोनों एक से हुए न।

जनक - कैसे ?

अष्टावक्र - स्वप्न में इस संसार की सत्ता थी क्या ?

जनक - नहीं।

अष्टावक्र - और अब संसार में स्वप्न की सत्ता है क्या ?

जनक - नहीं।

अष्टावक्र - ठीक, इसी प्रकार सत्ता ही नहीं है। तुम अपने आप जैसे स्वप्न में देख रहे थे वैसे ही जागरण में देख रहे हो। जागृत के जगत का जो अधिष्ठाता है वह जागरण के जगत को देखता है और स्वप्न जगत का जो अधिष्ठाता है वह स्वप्न के जगत को देखता है। तुम दोनों को देखने वाले हो। वास्तव में दोनों की सत्ता नहीं है।

( लेखिका प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं। ) 

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