Myth About Indian Marriages: भारतीय समाज में विवाह से जुड़े हैं कई मिथक, जानिए क्या है सच
Myth About Indian Marriages: भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र बंधन हैं लेकिन इसे लेकर कई तरह के मिथक भी व्याप्त हैं आइये डालते हैं इनपर एक नज़र।
Myth About Indian Marriages: भारतीय समाज में विवाह को एक पवित्र और जन्मों जन्म का रिश्ता माना जाता है जिसे एक सामाजिक आदर्श के रूप में देखा जाता है। लेकिन वहीँ विवाह को लेकर लोगों के मन में आज भी कुछ मिथ्य हैं। आइये जानते हैं शादी के बारे में कौन-कौन से मिथक हैं जिन पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
विवाह से जुड़े मिथक (Myth About Indian Marriages)
यहाँ हम आपको कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं जिन्हे विवाह को लेकर मिथक माना जाता हैं ऐसे में आइये जानते हैं कौन-कौन से मिथक हैं जो समाज में व्याप्त है।
विवाह एक आवश्यकता है
आम धारणा के विपरीत, शादी खुशी या जीवन की पूर्ति के लिए कोई शर्त नहीं है। व्यक्ति बिना शादी किए भी सुखी और सफल जीवन जी सकते हैं।
आजीवन साझेदारी और समर्थन है विवाह
यह धारणा है कि शादी एक आजीवन साथी की गारंटी देती है जो सुख-दुख में साथ निभाएगा, ये भी एक मिथक है। विवाह स्वाभाविक रूप से एक स्वार्थी या भावनात्मक रूप से दूर के व्यक्ति को एक सहायक साथी में नहीं बदलता है।
विवाह से मिलती है खुशी
विवाह में ख़ुशी स्वचालित नहीं है। हालाँकि प्यार खुशी ला सकता है, लेकिन सभी विवाह समान स्तर के भावनात्मक जुड़ाव या संतुष्टि का अनुभव नहीं करते हैं।
समझौता बनाम समझ
ये विचार कि विवाह में समझौता आवश्यक है, वास्तविक समझ और समर्थन के महत्व को नजरअंदाज करता है। कपल्स को एक-दूसरे के लक्ष्यों और महत्वाकांक्षाओं के लिए आपसी सम्मान को प्राथमिकता देनी चाहिए।
सही व्यक्ति मिथक
विवाह के लिए कोई सार्वभौमिक "सही" या "गलत" व्यक्ति नहीं है। अनुकूलता और गहरा भावनात्मक बंधन एक आदर्श साथी के सामाजिक आदर्श के अनुरूप होने से कहीं अधिक मायने रखता है।
विवाह में वैयक्तिकता
कपल्स को हर गतिविधि शेयर करने की ज़रूरत नहीं है। पार्टनर्स के लिए रिश्ते के बाहर व्यक्तिगत हितों और मित्रता को बनाए रखना स्वस्थ है।
बच्चों के लिए विवाह में करें समझौता
बच्चे पैदा करने से संघर्षपूर्ण विवाह में स्वाभाविक रूप से सुधार नहीं होता है। केवल बच्चों की खातिर एक साथ रहने से रिश्ते में अधिक नाखुशी और तनाव पैदा हो सकता है।