Netaji Bose vs Gandhi: नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के विचारों में मतभेद की असली सच्चाई क्या है, क्या सच में दोनों एक दूसरे से नफरत करते थे
Netaji Bose vs Gandhi Story in Hindi: नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच मतभेद उनकी पहली मुलाकात (1921) से ही उभरने लगे थे। नेताजी ने गांधी की स्वतंत्रता आंदोलन की योजनाओं की स्पष्टता पर सवाल उठाया।;
Netaji Bose vs Gandhi: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दो महानायक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी, भारतीय जनता के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। दोनों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन को समर्पित किया। लेकिन उनकी विचारधाराएं और रणनीतियां काफी भिन्न थीं। जहां गांधीजी अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से आजादी का सपना देख रहे थे, वहीं नेताजी ने सशस्त्र संघर्ष और प्रत्यक्ष क्रांति के माध्यम से भारत को स्वतंत्र कराने का मार्ग चुना। यह लेख उनके विचारों, रणनीतियों और उनके बीच के मतभेदों पर प्रकाश डालता है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच मतभेद उनकी पहली मुलाकात (1921) से ही उभरने लगे थे। नेताजी ने गांधी की स्वतंत्रता आंदोलन की योजनाओं की स्पष्टता पर सवाल उठाया। 1928 में, नेताजी ने गांधी के डोमिनियन स्टेटस प्रस्ताव को चुनौती दी, जिससे उनके संबंध और खराब हो गए। गांधी ने उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी से हटा दिया।
गांधी जी के विचार और उनकी रणनीतियां
महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। उनकी विचारधारा मुख्य रूप से अहिंसा (Non-Violence) और सत्याग्रह (Truth Force) पर आधारित थी। उन्होंने भारतीय जनता को यह समझाने का प्रयास किया कि हिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करना नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से गलत है। गांधीजी का यह मानना था कि हिंसा केवल अधिक हिंसा को जन्म देती है और स्थायी शांति के लिए अहिंसा ही एकमात्र समाधान है।
- अहिंसा का सिद्धांत: गांधीजी ने हमेशा अहिंसा का प्रचार किया। उनके अनुसार, सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ब्रिटिश शासन का विरोध किया जा सकता है। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नैतिक और आध्यात्मिक आंदोलन के रूप में देखा।
- सत्याग्रह: सत्याग्रह गांधीजी की मुख्य रणनीति थी, जिसमें सत्य की शक्ति के माध्यम से अन्याय का विरोध किया जाता है। असहयोग आंदोलन (1920-22), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) गांधीजी की इसी रणनीति के प्रमुख उदाहरण हैं।
- धार्मिक और नैतिक दृष्टिकोण: गांधीजी का मानना था कि भारतीय समाज को अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों की ओर लौटना चाहिए। उनका मानना था कि आध्यात्मिकता के आधार पर भारत एक स्वतंत्र और आदर्श समाज का निर्माण कर सकता है।
ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति दृष्टिकोण:
गांधी जी ब्रिटिश शासन के प्रति कठोर दृष्टिकोण नहीं रखते थे।
उनका मानना था कि ब्रिटिश शासकों को नैतिक रूप से प्रभावित करके और उनके अंदर आत्मा की शक्ति को जगाकर स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विचार और उनकी रणनीतियां
सुभाष चंद्र बोस का दृष्टिकोण गांधीजी से बिल्कुल भिन्न था। वे मानते थे कि स्वतंत्रता केवल संघर्ष और क्रांति के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है। बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभाई। लेकिन उनकी क्रांतिकारी सोच और उग्र राष्ट्रवाद ने उन्हें गांधीजी से अलग कर दिया।
सशस्त्र संघर्ष का समर्थन: नेताजी का मानना था कि अहिंसा से स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की जा सकती। उन्होंने हिंसक क्रांति और सशस्त्र संघर्ष को स्वतंत्रता प्राप्त करने का प्रमुख माध्यम माना। आजाद हिंद फौज (INA) का गठन और इसके माध्यम से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष उनका प्रमुख लक्ष्य था।
ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति दृष्टिकोण: नेताजी ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक आक्रामक थे। उनका मानना था कि ब्रिटिश सरकार नैतिकता की भाषा नहीं समझती और उसे बलपूर्वक हटाना ही एकमात्र विकल्प है।
विदेशी शक्तियों का समर्थन: नेताजी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए जर्मनी और जापान जैसे देशों से समर्थन प्राप्त किया। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ इन देशों के साथ सहयोग किया, जो गांधीजी के विचारों के विपरीत था।
समाजवाद और क्रांतिकारी दृष्टिकोण:
नेताजी समाजवादी थे। उनका मानना था कि स्वतंत्रता के बाद भारत में समाजवादी नीतियों को लागू किया जाना चाहिए।
उनका दृष्टिकोण सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता पर आधारित था।
गांधी जी और नेताजी के बीच प्रमुख मतभेद
गांधीजी और नेताजी दोनों का उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता था। लेकिन उनके लक्ष्य को प्राप्त करने के तरीके और विचारधाराएं भिन्न थीं। उनके बीच के प्रमुख मतभेद निम्नलिखित हैं:
1 - अहिंसा बनाम सशस्त्र संघर्ष
- गांधी जी अहिंसा के प्रबल समर्थक थे और हिंसा को किसी भी परिस्थिति में अस्वीकार्य मानते थे।
- नेताजी का मानना था कि हिंसा और सशस्त्र संघर्ष स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं। उनका मानना था कि स्वतंत्रता के लिए बलिदान देना आवश्यक है।
2 - विदेशी शक्तियों का उपयोग
- गांधीजी विदेशी शक्तियों से सहयोग लेने के खिलाफ थे। उनका मानना था कि इससे भारत की स्वायत्तता और नैतिकता पर आंच आएगी।
- नेताजी ने जापान और जर्मनी जैसी शक्तियों से सहयोग लिया। उन्होंने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करते हुए इन देशों के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ युद्ध छेड़ा।
3 - ब्रिटिश शासन के प्रति दृष्टिकोण
- गांधी जी का मानना था कि ब्रिटिश शासन को अहिंसक विरोध और नैतिकता के आधार पर समाप्त किया जा सकता है।
- नेताजी का दृष्टिकोण अधिक आक्रामक था। वे मानते थे कि ब्रिटिश शासन को केवल बलपूर्वक हटाया जा सकता है।
4 - कांग्रेस के भीतर नेतृत्व
- 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी ने गांधीजी समर्थित पट्टाभि सीतारमैया को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जीता। इस घटना ने गांधीजी और नेताजी के बीच विचारधारा के मतभेद को और गहरा कर दिया।
- नेताजी ने गांधीजी के विरोध के चलते कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
5 - आर्थिक दृष्टिकोण
- गांधीजी स्वदेशी आंदोलन और ग्रामीण विकास के समर्थक थे। उनका मानना था कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना आवश्यक है।
- नेताजी समाजवादी दृष्टिकोण रखते थे और औद्योगिकीकरण और वैज्ञानिक प्रगति को भारत की आर्थिक नीति का आधार मानते थे।
समान उद्देश्य, अलग मार्ग
इन मतभेदों के बावजूद, यह सत्य है कि गांधीजी और नेताजी दोनों का उद्देश्य एक ही था — भारत की स्वतंत्रता। दोनों ने अपने-अपने तरीके से स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया। गांधीजी ने भारतीय जनता को संगठित किया और उन्हें आजादी का सपना दिखाया। दूसरी ओर, नेताजी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया और भारतीय सैनिकों को प्रेरित किया।
मतभेदों के बावजूद नेताजी ने गांधी का बहुत सम्मान किया। 1943 में, उन्होंने गांधी को भारत के ‘महानतम नेता’ कहा और 1944 में सिंगापुर से उन्हें पहली बार ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि दी।
महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विचारों और रणनीतियों में मतभेद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। गांधीजी ने जहां अहिंसा और नैतिकता के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने का मार्ग चुना, वहीं नेताजी ने क्रांति और संघर्ष का रास्ता अपनाया। इन मतभेदों के बावजूद, दोनों नेताओं का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमूल्य है।
आजादी के बाद के भारत ने गांधीजी और नेताजी, दोनों की विचारधाराओं को अपनाया। यह कहना उचित होगा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इन दोनों नेताओं की भूमिका ने एक संपूर्ण तस्वीर बनाई, जो भारत की आजादी के लिए प्रेरणादायक रही।इसलिए, गांधीजी और नेताजी के मतभेदों को उनकी संघर्ष की अलग-अलग धाराओं के रूप में देखा जाना चाहिए, जिन्होंने मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाया।नेताजी और गांधी के बीच गहरे वैचारिक मतभेद थे। लेकिन उन्होंने हमेशा एक-दूसरे के प्रयासों और देशभक्ति का सम्मान किया।