Old Coins Ka Itihas in Hindi: भारत में सिक्के का इतिहास कैसा रहा, किसने इस्तेमाल किये सबसे पहले सिक्के, आइए जानते हैं , सिक्के की कहानी
Old Coins Ka Itihas in Hindi: क्या आप जानते हैं कि सिक्कों का क्या इतिहास रहा है और सबसे पहला सिक्का किसने इस्तेमाल किया था, आइये विस्तार से जानते हैं।;
Coin's History (Image Credit-Social Media)
Old Coins Ka Itihas in Hindi: भारत में सिक्कों का सबसे पुराना प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता से मिलता है। हालाँकि, विद्वानों में इस बात पर मतभेद है कि सिंधु घाटी की मुहरें वास्तव में सिक्के थीं या नहीं।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में खुदाई के दौरान पत्थर और टेराकोटा की मुहरें मिलीं।इन पर विभिन्न पशु-पक्षियों (विशेषकर बैल और गैंडे) की आकृतियाँ उकेरी गई थीं।कई मुहरों पर पौराणिक प्रतीक और लिपि अंकित थी, जिससे इनके आर्थिक लेन-देन में उपयोग की संभावना जताई जाती है।
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कई इतिहासकार मानते हैं कि ये मुहरें वास्तव में सिक्के नहीं थीं, बल्कि व्यापारिक प्रमाण-पत्र थीं।कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि मुहरों का उपयोग वस्तुओं की पहचान और लेन-देन को सत्यापित करने के लिए किया जाता था।
2. आहत सिक्के (7वीं-6वीं शताब्दी ईसा पूर्व – पहली शताब्दी ईस्वी)
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भारत में सिक्कों का सबसे पुराना उल्लेख छठी शताब्दी ईसा पूर्व के महाजनपद काल में मिलता है। इस समय देश में 16 महाजनपद थे, जिनमें मगध, कौशल, काशी, अवंती, वज्जि, मल्ल, कुरु, और पांचाल जैसे शक्तिशाली राज्य शामिल थे।
महाजनपद काल में भारत में पहली बार वास्तविक सिक्कों का प्रचलन हुआ, जिन्हें "आहत सिक्के" कहा जाता है।ये सिक्के मुख्यतः चांदी और तांबे के होते थे।सिक्कों पर कोई राजा का नाम या तारीख नहीं होती थी।इन पर धार्मिक, खगोलीय या पौराणिक प्रतीक जैसे सूर्य, वृक्ष, धर्मचक्र, हाथी, बैल, घोड़ा आदि अंकित होते थे।प्रत्येक सिक्के पर पाँच अलग-अलग चिह्न होते थे, इसलिए इन्हें "पंचमार्क सिक्के" भी कहा जाता था।
प्राचीन संस्कृत ग्रंथों जैसे मनुस्मृति और पाणिनी की अष्टाध्यायी में इन सिक्कों का उल्लेख मिलता है।बौद्ध जातक कथाओं में भी आहत सिक्कों का जिक्र किया गया है। ये सिक्के उत्तर भारत में व्यापक रूप से प्रचलित थे।दक्षिण भारत में इनका प्रयोग तीन शताब्दियों तक जारी रहा।
3. मौर्यकाल (322-185 ईसा पूर्व)
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मौर्य साम्राज्य के दौरान सिक्कों का बड़े पैमाने पर प्रचलन हुआ।मौर्यकाल में मुख्यतः चांदी और तांबे के पंचमार्क सिक्के चलते थे।सिक्कों पर हाथी, सिंह, बैल, मछली जैसे प्रतीक अंकित रहते थे।सम्राट अशोक के शासनकाल में "धम्मचक्र" और "अशोक स्तंभ" वाले सिक्के प्रचलित हुए।
इन सिक्कों पर ब्राह्मी लिपि में लेख होते थे।मौर्य सिक्कों का प्रचलन पूरे उत्तरी भारत में था।दक्षिण भारत में इनका उपयोग सीमित था, लेकिन व्यापार के माध्यम से वहाँ भी पहुँचे।
4. इंडो-यूनानी सिक्के (189 ईसा पूर्व – 30 ईसा पूर्व)
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भारत में सिक्कों की शैली पर इंडो-यूनानियों ने महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।इंडो-यूनानी सिक्कों पर पहली बार शासकों का चित्र अंकित हुआ।सिक्कों पर एक ओर ग्रीक लिपि और दूसरी ओर खरोष्ठी लिपि में अभिलेख अंकित रहते थे।सिक्कों पर यूनानी देवी-देवताओं जैसे ज़ीउस, हेराक्लीज़, अपोलो और पल्लास ]एथेना का चित्रण मिलता है।आवक्ष प्रतिमाएँ (बस्ट) सिक्कों की केंद्रीय विशेषता थीं।इंडो-यूनानी सिक्कों की शैली ने भारतीय सिक्का ढलाई को प्रभावित किया।द्विभाषी किंवदंतियों का चलन आरंभ हुआ।
शुंग और कुषाण काल (185 ईसा पूर्व – 320 ईस्वी)
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मौर्यों के पतन के बाद शुंग और कुषाण साम्राज्य ने सिक्कों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
शुंग काल के सिक्के: शुंगों ने तांबे और चांदी के सिक्के जारी किए।इन सिक्कों पर ब्राह्मी लिपि में लेख होते थे।हाथी, घोड़ा और अन्य पशु आकृतियाँ सिक्कों पर अंकित रहती थीं।
कुषाण काल के सिक्के: कुषाण साम्राज्य में राजा कनिष्क ने सिक्कों का व्यापक प्रचलन किया।उनके सिक्कों पर यूनानी, बौद्ध और हिंदू देवताओं की छवियाँ होती थीं।ये सिक्के सोने, चांदी और तांबे के होते थे।
गुप्तकाल (320-550 ईस्वी) में स्वर्ण मुद्रा का युग
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- गुप्त साम्राज्य को "स्वर्ण युग" कहा जाता है, और इस काल में स्वर्ण मुद्रा का व्यापक प्रचलन हुआ।
- गुप्त सिक्कों की विशेषताएँ: गुप्त सिक्के मुख्यतः सोने के होते थे, जिन्हें "दीनार" कहा जाता था।सम्राट समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्के अत्यंत कलात्मक थे;सिक्कों पर राजा का चित्र और संस्कृत में लेख अंकित होते थे।
- व्यापार में महत्व: गुप्तकालीन सिक्के भारत के व्यापारिक गौरव के प्रतीक थे।ये सिक्के भारत से रोम, चीन और अन्य देशों में निर्यात किए जाते थे।
राजपूत और चोलकालीन सिक्के
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- गुप्त साम्राज्य के बाद राजपूत और दक्षिण भारत के चोल शासकों ने अपने सिक्के जारी किए।
- राजपूत सिक्के: राजपूत काल में चांदी और तांबे के सिक्के प्रचलित थे। इन सिक्कों पर राजाओं की आकृतियाँ और देवी-देवताओं के चित्र अंकित होते थे।
- चोल सिक्के: दक्षिण भारत में चोलों ने स्वर्ण और चांदी के सिक्के जारी किए।सिक्कों पर भगवान शिव, नटराज और अन्य धार्मिक प्रतीक अंकित होते थे।
दिल्ली सल्तनत और मुगलकाल में सिक्के
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- मुस्लिम आक्रमण के बाद भारत में सिक्कों की शैली में परिवर्तन हुआ।
- दिल्ली सल्तनत के सिक्के: सल्तनत काल में चांदी के सिक्के "टंका" और तांबे के सिक्के "जितल" कहलाते थे.सिक्कों पर अरबी-फारसी लिपि में शासकों के नाम और कुरान की आयतें लिखी जाती थीं।
- मुगलकाल के सिक्के: मुगलों ने सोने, चांदी और तांबे के आकर्षक सिक्के चलाए।अकबर ने "इलाही सिक्के" जारी किए, जिन पर "अल्लाहु अकबर" लिखा होता था।जहांगीर के सिक्के बेहद कलात्मक थे, जिन पर शेर और सूर्य की आकृतियाँ बनी होती थीं।
ब्रिटिश काल के सिक्के
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- ब्रिटिश शासन में भारतीय सिक्का प्रणाली पर यूरोपीय प्रभाव पड़ा।
- ईस्ट इंडिया कंपनी के सिक्के:कंपनी शासन के दौरान चांदी और तांबे के सिक्के जारी किए गए।इन सिक्कों पर इंग्लैंड के राजा या रानी का चित्र अंकित होता था।
- रुपए की शुरुआत:1835 में "एक रुपया" सिक्का जारी किया गया, जो ब्रिटिश शासन में भारत की मानक मुद्रा बनी।सिक्कों पर विक्टोरिया और जॉर्ज पंचम जैसे ब्रिटिश शासकों के चित्र अंकित होते थे।
स्वतंत्र भारत के सिक्के
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