वैज्ञानिक है हमारे खानपान का तरीका
हर मौके पर खाए जाने वाले व्यंजनों को वैज्ञानिक महत्व के आधार पर तैयार किया जाता है। मौसम के हिसाब से पर्व बनाए गए हैं। इन मौसमों के दौरान ताप और शीत को देखते हुए सुपाच्य भोजन की व्यवस्था की गई है।
योगेश मिश्र
लखनऊ। हमारे पर्व और खान-पान का वैज्ञानिक ही नहीं आध्यात्मिक महत्व भी है। हर मौके पर खाए जाने वाले व्यंजनों को वैज्ञानिक महत्व के आधार पर तैयार किया जाता है। मौसम के हिसाब से पर्व बनाए गए हैं। इन मौसमों के दौरान ताप और शीत को देखते हुए सुपाच्य भोजन की व्यवस्था की गई है।
तिल-गुड़ खाने और दान देने का वैज्ञानिक आधार
मकर संक्राति में गंगा स्नान के बाद तिल-गुड़ खाने की परंपरा है। यही नहीं तिल-गुड़ से बने पकवान देने की परंपरा भी पौराणिक काल से चली आ रही है। स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज के महानिदेश और वैदिक विज्ञान केंद्र के प्रभारी प्रो. भरत राज सिंह ने सर्दी में तिल-गुड़ खाने और दान देने का वैज्ञानिक आधार खोज निकाला है।
ये भी देखें : प्रेम जो हाट बिकाय
तिल-गुड़ से बने पकवान गर्मी बढ़ाते हैं
वह बताते हैं कि सर्दी में शरीर को गर्मी की आवश्यकता होती है। तिल-गुड़ से बने पकवान गर्मी बढ़ाते हैं। तिल में तेल के साथ-साथ प्रोटीन, कैल्शियम, बी-कांप्लेक्स और कार्बोहाड्रेड मिलते हैं। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट भी होते हैं। जो बीमारियों के इलाज में सहायक होते हैं।
तिल ब्लडप्रेशर और पेट की बीमारियों को काबू करता है। ठंड में पेट की बीमारी और एसीडिटी का खतरा बना रहता है। तिल का लड्डू उदर विकार दूर करने के साथ-साथ खून की सफाई भी करता है।
ये भी देखें : 27 साल से धूल फांक रही वोहरा कमेटी की रिपोर्ट, हर सरकार ने पेश करने से किया किनारा
गुड़ की तासीर भी गर्म होती है। तिल का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। यह शनि का द्रव्य है। मकर संक्रांति पर सूर्य एक महीने शनि की राशि में रहते हैं। राहु और केतु शनि के शिष्य हैं। तिल के दान से इनकी भी दिक्कत खत्म होती है।