Poetry: यह मोबाइल जिस आशिक ने बनाया होगा, उसे महबूब के अब्बा ने सताया होगा
Poetry: नेट फ़रहाद को शीरीं से मिला देता है इश्क़ इंसान को गूगल पे बिठा देता है ।
Poetry: नेट ईजाद हुआ हिज्र के मारों के लिए
सर्च इंजन है बड़ी चीज़ कुँवारों के लिए।
जिस को सदमा शब-ए-तन्हाई के अय्याम का है
ऐसे आशिक़ के लिए नेट बहुत काम का है ।
नेट फ़रहाद को शीरीं से मिला देता है
इश्क़ इंसान को गूगल पे बिठा देता है ।
काम मक्तूब का माउस से लिया जाता है
आह-ए-सोज़ाँ को भी अपलोड किया जाता है ।
टेक्स्ट में लोग मोहब्बत की ख़ता भेजते हैं
घर बताते नहीं ऑफ़िस का पता भेजते हैं ।
आशिक़ों का ये नया तौर नया टाइप है
पहले चिलमन हुआ करती थी अब इस्काइप है ।
इश्क़ कहते हैं जिसे इक नया समझौता है
पहले दिल मिलते थे अब नाम क्लिक होता है ।
दिल का पैग़ाम जब ईमेल से मिल जाता है
मेल हर चौक पे फ़ीमेल से मिल जाता है ।
इश्क़ का नाम फ़क़त आह-ओ-फ़ुग़ाँ था पहले
डाक-ख़ाने में ये आराम कहाँ था पहले ।
आई-डी जब से मिली है मुझे हम-साई की
अच्छी लगती है तवालत शब-ए-तन्हाई की ।
नेट पे लोग जो नव्वे से पलस होते हैं
बैठे रहते हैं वो टस होते हैं न मस होते हैं ।
फेसबुक कूचा-ए-जानाँ से है मिलती-जुलती
हर हसीना यहाँ मिल जाएगी हिलती-जुलती ।
ये मोबाइल किसी आशिक़ ने बनाया होगा
उस को महबूब के अब्बा ने सताया होगा ।
टेक्स्ट जब आशिक़-ए-बर्क़ी का अटक जाता है
तालिब-ए-शौक़ तो सूली पे लटक जाता है ।
ऑनलाइन तिरे आशिक़ का यही तौर सही
तू नहीं और सही और नहीं और सही।
( सोशल मीडिया से साभार ।)