Poetry: यह मोबाइल जिस आशिक ने बनाया होगा, उसे महबूब के अब्बा ने सताया होगा

Poetry: नेट फ़रहाद को शीरीं से मिला देता है इश्क़ इंसान को गूगल पे बिठा देता है ।

Newstrack :  Network
Update:2024-05-12 16:30 IST

  Poetry  (Social Media Photo)

Poetry: नेट ईजाद हुआ हिज्र के मारों के लिए

सर्च इंजन है बड़ी चीज़ कुँवारों के लिए।

जिस को सदमा शब-ए-तन्हाई के अय्याम का है

ऐसे आशिक़ के लिए नेट बहुत काम का है ।

नेट फ़रहाद को शीरीं से मिला देता है

इश्क़ इंसान को गूगल पे बिठा देता है ।

काम मक्तूब का माउस से लिया जाता है

आह-ए-सोज़ाँ को भी अपलोड किया जाता है ।

टेक्स्ट में लोग मोहब्बत की ख़ता भेजते हैं

घर बताते नहीं ऑफ़िस का पता भेजते हैं ।

आशिक़ों का ये नया तौर नया टाइप है

पहले चिलमन हुआ करती थी अब इस्काइप है ।

इश्क़ कहते हैं जिसे इक नया समझौता है

पहले दिल मिलते थे अब नाम क्लिक होता है ।

दिल का पैग़ाम जब ईमेल से मिल जाता है

मेल हर चौक पे फ़ीमेल से मिल जाता है ।

इश्क़ का नाम फ़क़त आह-ओ-फ़ुग़ाँ था पहले

डाक-ख़ाने में ये आराम कहाँ था पहले ।

आई-डी जब से मिली है मुझे हम-साई की

अच्छी लगती है तवालत शब-ए-तन्हाई की ।

नेट पे लोग जो नव्वे से पलस होते हैं

बैठे रहते हैं वो टस होते हैं न मस होते हैं ।

फेसबुक कूचा-ए-जानाँ से है मिलती-जुलती

हर हसीना यहाँ मिल जाएगी हिलती-जुलती ।

ये मोबाइल किसी आशिक़ ने बनाया होगा

उस को महबूब के अब्बा ने सताया होगा ।

टेक्स्ट जब आशिक़-ए-बर्क़ी का अटक जाता है

तालिब-ए-शौक़ तो सूली पे लटक जाता है ।

ऑनलाइन तिरे आशिक़ का यही तौर सही

तू नहीं और सही और नहीं और सही।

( सोशल मीडिया से साभार ।)

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