Famous Love Story: जुवैदा और राजा हनवंत सिंह की प्रेम कहानी, जिन्होंने तोड़ा था प्यार में राजसी प्रोटोकॉल
Zuvaida and Hanvant Singh Love Story: आज हम जानेंगे जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह की प्रेम कहानी के बारे में, जिन्होंने समाज की परवाह किए बिना अपनी मुस्लिम प्रेमिका जुवैदा से शादी रचाई और अपने प्रेम को अमर कर दिया।;

Begum Zuvaida and Hanvant Singh (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Zuvaida and Hanvant Singh Love Story In Hindi: भारत के इतिहास में प्रेम कहानियों की कोई कमी नहीं है। लेकिन कुछ प्रेम कहानियाँ ऐसी होती हैं, जो समाज की रूढ़ियों को चुनौती देती हैं और अपने पीछे एक अमर विरासत छोड़ जाती हैं। ऐसी ही एक प्रेम कहानी थी जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह और उनकी मुस्लिम प्रेमिका जुवैदा की, जिसने उस दौर में समाज को झकझोर कर रख दिया था।
यह प्रेम कहानी एक ऐसे युग में घटित हुई, जब धर्म, जाति और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रेम से अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती थी। लेकिन राजा हनवंत सिंह ने समाज की परवाह किए बिना अपनी प्रेमिका जुवैदा से विवाह किया और अपने प्रेम को अमर बना दिया।
राजा हनवंत सिंह का परिचय (Raja Hanvant Singh Kon The)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
महाराजा हनवंत सिंह जी का जन्म 16 जून , 1923, जोधपुर, राजस्थान थे। उनके पिता का नाम महाराजा उम्मेद सिंह था। वे 1947 में जोधपुर के महाराजा बने थे। राजा की मृत्यु 26 जनवरी, 1952 के विमान दुर्घटना में हो गयी।
महाराजा हनवंत सिंह जोधपुर रियासत के अंतिम स्वतंत्र शासक थे। उनके शासनकाल में भारत आज़ादी के दौर से गुजर रहा था और रियासतों का विलय हो रहा था। उन्होंने जोधपुर रियासत को भारत में विलय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 26 जनवरी, 1952 को राजा हनवंत सिंह का विमान जोधपुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस दुर्घटना में राजा का निधन हो गया। लेकिन इसे लेकर कई रहस्यमय बातें भी सामने आईं।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह दुर्घटना एक साजिश का परिणाम थी, क्योंकि राजा ने भारत में जोधपुर रियासत के विलय को लेकर अनिच्छा जताई थी। कयास लगाए गए कि उनकी हत्या करवाई गई थी, ताकि वे विलय के लिए बाधा न बनें। हालाँकि, इस दावे की कभी पुष्टि नहीं हो सकी और इसे महज एक दुर्घटना बताया गया। इस रहस्यमय दुर्घटना ने जुवैदा को पूरी तरह तोड़ दिया और वह जीवनभर राजा की यादों में खोई रहीं।
कुछ स्थानीय इतिहासकारों के अनुसार, हनवंत सिंह मेवाड़ के छोटे सामंत या सरदार थे। उन्होंने जहाँगीर के शासनकाल (1605-1627) में मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया होगा। किंवदंती कहती है कि उन्होंने एक मुगल राजकुमारी (जुबैदा) से प्रेम किया, जिसके कारण मुगलों ने उन्हें क्रूरता से दबा दिया।
जुवैदा का परिचय (Zuvaida Kon Thi)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
जुवैदा का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। वह बेहद सुंदर और आकर्षक थीं। उनका स्वभाव कोमल और स्नेही था। जुवैदा एक आम मुस्लिम परिवार से थीं। लेकिन उनकी खूबसूरती और सरलता ने राजा हनवंत सिंह को इतना मोहित कर दिया कि उन्होंने सामाजिक बंधनों को तोड़कर उनसे विवाह कर लिया।
प्रेम कहानी की शुरुआत (Raja Hanvant Singh And Zuvaida Ki Prem Kahani)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
राजा हनवंत सिंह और जुवैदा की पहली मुलाकात एक सामाजिक कार्यक्रम में हुई थी। जुवैदा की खूबसूरती और शालीनता ने राजा का मन मोह लिया। राजा ने जुवैदा से बातचीत की और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए। दोनों के बीच धीरे-धीरे मुलाकातें बढ़ने लगीं और वे एक-दूसरे के करीब आ गए। इस प्रेम संबंध की ख़बर जैसे ही समाज में फैली, राजघराने और समाज में हलचल मच गई। एक हिंदू राजा का मुस्लिम युवती से प्रेम उस समय सामाजिक रूप से अस्वीकार्य माना जाता था। इसके बावजूद, राजा हनवंत सिंह ने जुवैदा के साथ अपने संबंध को खुलकर स्वीकार किया।
विवाह: समाज की बेड़ियों को तोड़ता प्रेम
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
राजा हनवंत सिंह और जुवैदा का प्रेम इतना प्रगाढ़ था कि उन्होंने धर्म और समाज की बेड़ियों को तोड़ते हुए विवाह करने का निर्णय लिया। 1949 में उन्होंने जुवैदा से विवाह किया। विवाह के बाद जुवैदा को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार रानी का दर्जा दिया गया। जुवैदा का नाम बदलकर रानी कृष्ण कुमारी (Rani Krishna Kumari) रख दिया गया। यह विवाह उस समय काफी चर्चा का विषय बना, क्योंकि एक हिंदू राजा का मुस्लिम महिला से विवाह करना समाज के लिए असामान्य घटना थी।
राजा हनवंत सिंह के प्रेम में इतनी गहराई थी कि उन्होंने जुवैदा के लिए अपने राजसी प्रोटोकॉल तक को पीछे छोड़ दिया। विवाह के लिए उन्होंने समाज और शाही परंपराओं की परवाह नहीं की। जुवैदा से विवाह के लिए उन्होंने कई विरोधों का सामना किया। लेकिन अपने प्रेम के आगे किसी की नहीं सुनी। राजा ने अपने दरबार में जुवैदा को शाही रानी का दर्जा दिलवाया, जो उस समय एक अभूतपूर्व घटना थी।
संतान का जन्म: प्यार की निशानी
विवाह के बाद राजा हनवंत सिंह और जुवैदा के प्रेम को एक नई पहचान मिली, जब प्रिंस हुकुम सिंह (Prince Hukam Singh) का जन्म हुआ। हुकुम सिंह के जन्म ने इस प्रेम कहानी को और भी मजबूत बना दिया। राजा हनवंत सिंह अपने पुत्र से बेहद प्रेम करते थे। हुकुम सिंह आगे चलकर जोधपुर के शाही परिवार के उत्तराधिकारी बने।
दुखद अंत: विमान दुर्घटना में हनवंत सिंह की मृत्यु
26 जनवरी,1952 का दिन इस प्रेम कहानी के लिए सबसे काला दिन साबित हुआ। राजा हनवंत सिंह एक चुनाव प्रचार अभियान के लिए अपने निजी विमान से यात्रा कर रहे थे। विमान में उनके साथ एक पायलट और एक अन्य व्यक्ति भी था। दुर्भाग्यवश, विमान जोधपुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया और राजा की मृत्यु हो गई। राजा हनवंत सिंह की मृत्यु के बाद जुवैदा पूरी तरह टूट गईं। उन्होंने सामाजिक जीवन से खुद को दूर कर लिया और एकांत जीवन जीने लगीं।
जुवैदा ने अपने बेटे हुकुम सिंह की परवरिश में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने शाही परिवार की मान-मर्यादा का पूरा सम्मान किया और कभी भी राजा के प्रेम को भुनाने का प्रयास नहीं किया। उनके जीवन में हनवंत सिंह की यादें ही सबसे बड़ी पूंजी थीं। जुवैदा की सादगी और गरिमा को देखकर जोधपुर रियासत के लोग उन्हें सम्मान देते थे।
जुवैदा की पीड़ा: प्रेम की वेदना
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
हनवंत सिंह की मृत्यु के बाद जुवैदा गहरे दुख में डूब गईं। वह पूरी तरह टूट चुकी थीं और सामाजिक जीवन से दूर रहने लगीं। राजा की मृत्यु के बाद जुवैदा को जोधपुर के शाही परिवार में सम्मान तो मिला। लेकिन वह प्रेम, जो उनके जीवन का आधार था, खो चुका था। अपने पति की याद में उन्होंने एकांत जीवन जीना शुरू कर दिया।
प्रेम कहानी की विरासत: इतिहास में अमर प्रेम
राजा हनवंत सिंह और जुवैदा की प्रेम कहानी इतिहास में अमर हो गई। इस कहानी ने उस समय समाज में जाति और धर्म की रूढ़ियों को चुनौती दी। इस प्रेम गाथा ने यह संदेश दिया कि प्रेम धर्म, जाति या समाज की सीमाओं में नहीं बंधता। जोधपुर के शाही परिवार में आज भी जुवैदा और राजा हनवंत सिंह की प्रेम कहानी को याद किया जाता है। उनके पुत्र हुकुम सिंह ने जोधपुर रियासत की विरासत को संभाला और शाही परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाया।
प्रेम की अनूठी गाथा
राजा हनवंत सिंह और जुवैदा की प्रेम कहानी समाज की रूढ़ियों को तोड़ने वाली एक प्रेरणादायक गाथा है। यह कहानी न केवल प्रेम की ताकत को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि प्रेम में जाति, धर्म और समाज का कोई बंधन नहीं होता। यह कहानी लोकसाहित्य और इतिहास का मिश्रण है। मुगल-राजपूत संबंधों में ऐसे कई प्रेम और संघर्ष के प्रसंग हुए, जिन्हें कवियों ने अमर बना दिया। जुबैदा और हनवंत सिंह की गाथा राजस्थानी संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है, भले ही इसका ठोस प्रमाण न हो।
राजा हनवंत सिंह और जुवैदा की प्रेम कहानी इतनी लोकप्रिय थी कि इसे लेकर कई बार बॉलीवुड में फिल्म बनाने की चर्चाएं भी हुईं। उनकी प्रेम कहानी पर आधारित कुछ लघु नाटक और नाट्य प्रस्तुतियाँ भी हो चुकी हैं। हालाँकि, अब तक इस पर कोई बड़ी फिल्म नहीं बनी। लेकिन यह कहानी सिनेमा के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।
आज भी जोधपुर में राजा हनवंत सिंह और जुवैदा की प्रेम कहानी की झलक देखने को मिलती हैं। जोधपुर में कई महल और शाही किले राजा हनवंत सिंह की विरासत को संभाले हुए हैं। राजा का नाम जोधपुर के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। राजा हनवंत सिंह की कब्र आज भी उनके प्रेम और बलिदान की गवाही देती है। उनकी कहानी को लोग आज भी शाही प्रेम गाथा के रूप में याद करते हैं। यह प्रेम कहानी आज भी जोधपुर और राजस्थान के इतिहास में एक अमर गाथा के रूप में दर्ज है।