Ramakrishna Paramahansa Biography: रामकृष्ण परमहंस जिन्होंने देखा माँ काली को, आइए जानते हैं विवेकानंद के गुरु और एक दिव्य संत के बारे में

Ramakrishna Paramahansa Kon The: रामकृष्ण परमहंस भारत के महान आध्यात्मिक संत थे। उनका बचपन से ही गदाधर साधना, भक्ति और अध्यात्म की ओर झुकाव था। कहा जाता है कि उनके पिता को एक दिव्य स्वप्न हुआ था, जिसमें भगवान विष्णु ने उन्हें एक महान संत के जन्म का संकेत दिया था।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-02-17 11:10 IST

Ramakrishna Paramahansa (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Ramakrishna Paramahansa Biography In Hindi: रामकृष्ण परमहंस भारतीय आध्यात्मिक जगत के उन महान संतों में से एक हैं, जिन्होंने न केवल अपने जीवन में आध्यात्मिक साधना की पराकाष्ठा को प्राप्त किया, बल्कि भारत और विश्वभर के लोगों को धर्म, भक्ति और साधना का वास्तविक स्वरूप समझाया। उनका जीवन पूर्णतः ईश्वर की अनुभूति, भक्ति और साधना के प्रति समर्पित था। उन्होंने विभिन्न धार्मिक परंपराओं को अपनाकर यह सिद्ध किया कि सभी धर्मों का मूल एक ही है। उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं।

रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के कामारपुकुर गाँव में हुआ था। उनका जन्म का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। उनके पिता खुदीराम चट्टोपाध्याय और माता चंद्रमणी देवी अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। कहा जाता है कि उनके पिता को एक दिव्य स्वप्न हुआ था, जिसमें भगवान विष्णु ने उन्हें एक महान संत के जन्म का संकेत दिया था।

बचपन से ही गदाधर साधना, भक्ति और अध्यात्म की ओर झुकाव रखते थे। वे धार्मिक अनुष्ठानों में गहरी रुचि लेते और देवी-देवताओं की मूर्तियों को सजाने में आनंद अनुभव करते थे। उनके मित्रों और गाँव वालों के अनुसार, वे साधारण बालकों से बिल्कुल अलग थे।

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन (Ramakrishna Paramahansa Ka Jivan Parichay)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गदाधर ने औपचारिक शिक्षा में अधिक रुचि नहीं ली। वे पांडित्य और विद्या की जगह आध्यात्मिकता और ईश्वर भक्ति को अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। जब उन्हें स्कूल भेजा गया, तो उन्होंने वहां पढ़ाई में रुचि नहीं दिखाई, बल्कि वे धार्मिक कथाएँ और भजन-कीर्तन में अधिक ध्यान देने लगे। उनकी इस प्रवृत्ति के कारण गाँव के लोग उन्हें विशेष रूप से सम्मान देने लगे।उनकी आध्यात्मिक जिज्ञासा इतनी गहरी थी कि वे प्रायः समाधि में चले जाते थे। वे किसी भी धार्मिक चर्चा को सुनकर अत्यंत भावुक हो जाते और उनकी आँखों से आँसू बहने लगते।

दक्षिणेश्वर मंदिर और आध्यात्मिक अनुभव

जब वे युवा हुए, तो उनके बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय उन्हें कोलकाता ले गए। वहाँ रामकुमार ने दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी के रूप में कार्य किया और बाद में गदाधर को भी वहाँ सेवा के लिए नियुक्त कर दिया। दक्षिणेश्वर का यह मंदिर रानी रासमणि द्वारा बनवाया गया था और यह माँ काली को समर्पित था।

इसी मंदिर में गदाधर को देवी माँ की दिव्य अनुभूति हुई। उन्होंने माँ काली को सजीव रूप में देखा और उनके साथ संवाद भी किया। वे प्रायः ध्यान में लीन रहते और कई बार उनके ध्यान की अवस्था इतनी गहरी हो जाती कि वे बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट जाते।

साधना और विभिन्न धर्मों की अनुभूति

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

रामकृष्ण परमहंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह था कि उन्होंने विभिन्न धर्मों और साधना मार्गों का स्वयं अनुभव किया और यह प्रमाणित किया कि सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं।

रामकृष्ण ने वैष्णव साधना की और श्रीकृष्ण तथा राधा के प्रति अनन्य भक्ति की। वे भगवान कृष्ण के रूप में स्वयं को देखने लगे और प्रेम और भक्ति में लीन हो गए।उन्होंने माँ काली के निर्देशानुसार तंत्र मार्ग को भी अपनाया और इस कठिन मार्ग पर भी सिद्धि प्राप्त की। वे तंत्र साधना के माध्यम से आत्मानुभूति प्राप्त करने में सफल रहे।

महान संत तोतापुरी से उन्होंने अद्वैत वेदांत की शिक्षा प्राप्त की। तोतापुरी ने उन्हें आत्मा और ब्रह्म के एकत्व की अनुभूति कराई। उन्होंने रामकृष्ण को यह सिखाया कि ब्रह्म निराकार और असीम है। कुछ ही समय में रामकृष्ण ने इस मार्ग में भी सिद्धि प्राप्त कर ली।

रामकृष्ण परमहंस ने इस्लाम और ईसाई धर्म का भी अभ्यास किया। उन्होंने कुरान पढ़ा, नमाज अदा की, और ईसा मसीह के जीवन को आत्मसात करने का प्रयास किया। उन्हें यह अनुभूति हुई कि इस्लाम और ईसाई धर्म भी उसी एक ईश्वर की ओर ले जाते हैं, जिसकी अनुभूति उन्हें पहले हो चुकी थी।

रामकृष्ण का विवाह शारदा देवी (Ramakrishna Paramahansa Wife) से हुआ, जो बाद में उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बनीं। शारदा देवी भी एक महान संत थीं और उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह साधना और समाज सेवा में समर्पित कर दिया। हालांकि उनका विवाह हुआ, लेकिन उनका संबंध पूर्णतः आध्यात्मिक था। रामकृष्ण परमहंस ने शारदा देवी को माँ के रूप में देखा और उन्हें माँ शारदा कहकर सम्मान दिया।

रामकृष्ण परमहंस को 1885 में गले का कैंसर हो गया। वे अत्यंत पीड़ा में भी अपने भक्तों का मार्गदर्शन करते रहे। अंततः 16 अगस्त 1886 को उन्होंने महासमाधि ले ली।रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। उनकी शिक्षाओं के आधार पर स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी समाज सेवा, शिक्षा और आध्यात्मिक उत्थान के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।

रामकृष्ण परमहंस के जीवन में कई ऐसी घटनाएँ थीं, जो उनकी आध्यात्मिक महानता को दर्शाती हैं। उनकी कही हुई बातें और उनके अनुभव न केवल गहरी आध्यात्मिकता से भरे थे, बल्कि वे आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

माँ काली के दर्शन और जीवंत अनुभव (Ramakrishna Paramahansa Kali Story)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

रामकृष्ण परमहंस दक्षिणेश्वर काली मंदिर में माँ काली की पूजा किया करते थे। लेकिन वे साधारण पुजारी नहीं थे, बल्कि उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि वे माँ काली को प्रत्यक्ष रूप से देखने और उनसे बातचीत करने लगे। उन्होंने कई बार अपने शिष्यों को बताया कि माँ काली सजीव रूप में उनके सामने प्रकट होती हैं और उनसे बातें करती हैं। एक बार, जब वे माँ काली के दर्शन के लिए व्याकुल हो गए, तो उन्होंने अपने गले में एक तलवार डालकर आत्महत्या करने का प्रयास किया, तभी अचानक माँ काली प्रकट हुईं और उन्हें वरदान दिया। इसके बाद वे माँ काली से ऐसे बात करते थे, जैसे कोई अपने माता-पिता से करता हो।

समाधि अवस्था में चले जाना

रामकृष्ण बार-बार इतनी गहरी ध्यान अवस्था में चले जाते थे कि वे बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग हो जाते थे। कई बार जब वे भजन गाते या माँ काली का ध्यान करते, तो वे घंटों या कभी-कभी दिनों तक समाधि में रहते। एक बार वे खेतों में खेलते हुए इतनी गहरी ध्यान अवस्था में चले गए कि कई घंटों तक वहीं पड़े रहे। जब गाँव वालों ने उन्हें उठाया, तो उनकी आँखों में आँसू थे और वे कह रहे थे– "मैंने भगवान को देखा है।"

मृत्यु से पूर्व अपनी शक्ति शिष्यों में बाँटना

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

जब रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हुआ और वे अपनी अंतिम अवस्था में थे, तब उन्होंने अपने सभी शिष्यों को बुलाया। उन्होंने कहा– "अब मैं अपनी सारी शक्ति तुम सब में बाँट रहा हूँ। "इसके बाद उन्होंने अपनी उँगलियाँ स्वामी विवेकानंद के सिर पर रखीं और कहा– "तू शक्ति से भर गया है। अब यह संसार तुझे पहचानेगा।" इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने पूरे विश्व में उनके संदेशों का प्रचार किया।

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का संबंध (Ramakrishna Paramahansa And Swami Vivekananda Relation)

रामकृष्ण परमहंस ने कई महान शिष्यों को दीक्षा दी, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध थे स्वामी विवेकानंद।स्वामी विवेकानंद ने उनके विचारों को आगे बढ़ाया और वेदांत को पूरे विश्व में प्रचारित किया।अन्य प्रमुख शिष्यों में स्वामी ब्रह्मानंद, स्वामी शारदानंद, स्वामी अभेदानंद आदि थे।उन्होंने अपने शिष्यों को सिखाया कि ईश्वर तक पहुँचने के अनेक मार्ग हैं, और प्रत्येक व्यक्ति को अपने अनुकूल साधना पथ चुनना चाहिए।

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का संबंध केवल गुरु और शिष्य का नहीं था, बल्कि यह एक दिव्य और आध्यात्मिक रिश्ता था। विवेकानंद (नरेंद्रनाथ दत्त) पहले रामकृष्ण परमहंस को एक साधारण संत समझते थे, लेकिन बाद में वे उनके सबसे प्रिय शिष्य बन गए।स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे एक बुद्धिजीवी व्यक्ति थे और हर बात को तर्क की कसौटी पर परखते थे। जब वे पहली बार रामकृष्ण से मिले, तो उन्होंने उनसे सीधा प्रश्न किया– "क्या आपने भगवान को देखा है?" रामकृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया– "हाँ, मैंने भगवान को देखा है। मैं उन्हें उतना ही स्पष्ट देखता हूँ जितना तुम्हें देख रहा हूँ।"

यह उत्तर सुनकर नरेंद्र स्तब्ध रह गए। वे ऐसे किसी व्यक्ति को पहली बार देख रहे थे, जो भगवान के अस्तित्व को लेकर इतना स्पष्ट था। इसके बाद वे बार-बार रामकृष्ण के पास जाने लगे।

रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद ने उनके संदेश को पूरी दुनिया तक पहुँचाने का निश्चय किया।उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी शिक्षा, सेवा और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।1893 में शिकागो धर्म संसद में उन्होंने जो भाषण दिया, वह रामकृष्ण परमहंस के विचारों पर ही आधारित था।

रामकृष्ण परमहंस केवल एक संत नहीं, बल्कि एक दिव्य आत्मा थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और धर्म को एक नई ऊँचाई दी। उनके जीवन की घटनाएँ अद्भुत थीं और उनकी शिक्षाएँ अमर हैं।

स्वामी विवेकानंद उनके सबसे प्रिय शिष्य थे, जिनके माध्यम से उन्होंने अपने संदेश को पूरे विश्व में फैलाया। उनका यह अद्वितीय रिश्ता आज भी गुरु-शिष्य परंपरा का सबसे सुंदर उदाहरण माना जाता है।

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