Saptahik Chhutti: रविवार के दिन साप्ताहिक छुट्टी होने की कहानी

Saptahik Chhutti: क्या आपको पता है कि रविवार का अवकाश कब से शुरू हुआ ?

Written By :  Rajat Verma
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-10-16 05:25 GMT

Sunday (Concept Photo- Social Media)

Saptahik Chhutti: हम आप सब लोग के लिए सप्ताह के 6 दिन अपने नियमित कार्य करने के बाद रविवार यानि संडे को छुट्टी होना आम बात है । पर ऐसा क्यों है? इस सवाल के जवाब में हमें अधिकतर यही सुनने मिलता है कि रविवार को साप्ताहिक छुट्टी यानि weekly holiday होता है बस इसलिए। 6 दिन तक लगातार अपने वही दैनिक कार्य करने के बाद हम आप थक भी जाते हैं, इसलिए भी अवकाश बहुत आवश्यक है। परंतु जितनी आसानी के साथ हम आप रविवार के अवकाश का आनंद उठाते हैं , उतनी आसानी से यह अवकाश हम भारतीयों को मिला नहीं था । बल्कि इसके पीछे एक लंबे अन्तरकाल का संघर्ष सम्मिलित है।

रविवार का अवकाश कब से शुरू हुआ (Ravivar ka Avkash kab Se Shuru Hua)?

रविवार यानि संडे को छुट्टी के पीछे का कारण ब्रिटिशर्स को माना जाता है । इसकी शुरुआत 1843 के आस पास ब्रिटेन के एक गवर्नर ने रविवार की छुट्टी पारित कर की थी। जिसके चलते शुरुआत में स्कूली बच्चों को संडे की छुट्टी दी जाने लगी । जिससे वे पढ़ाई के अतिरिक्त किसी भी क्रियात्मक कार्य में अपने हाथ आजमा सकें। ब्रिटेन में भले ही छुट्टी आसानी से मिल गयी । पर भारतीयों को रविवार की छुट्टी पाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ ही सालों तक संघर्ष करना पड़ा था। जिसका परिणाम यह हुआ कि हमें अंततः 1890 में ब्रिटिश सरकार द्वारा रविवार की छुट्टी की मंज़ूरी दे दी गयी।

इस घटना को लेकर यह बात प्रचलित है कि जब भारत अंग्रेजों का ग़ुलाम था, तब मिल में काम करने वाले मजदूरों को हफ्ते के सातों दिन काम करना पड़ता था, उन्हें किसी भी प्रकार की कोई भी छुट्टी ब्रिटिश सरकार द्वारा नहीं मिलती थी। यह नियम सिर्फ मज़दूरों के लिए था, इसके विपरीत ब्रिटिश अधिकारियों की साप्ताहिक छुट्टी रविवार के दिन होती थी। इस ज़्यादती को देखते हुए उस समय के मिल मज़दूरों के नेता श्री नारायण मेघाजी लोखंडे ने इसके खिलाफ (Narayan Meghaji Lokhande Sunday holiday) आवाज़ उठाई। रविवार की छुट्टी के पक्ष में तर्क देते हुए इन्होंने कहा कि सप्ताह में एक भी दिन ऐसा नहीं होता है, जब मिल मज़दूर अपने काम से अलग आराम कर सकें या कुछ वक्त अपने परिवार के साथ गुज़ार सके।

रविवार का अवकाश (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

उस वक़्त तो मेघाजी लोखंडे के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया । परंतु मेघाजी लोखंडे ने हार नहीं मानी । लगातार मज़दूरों के पक्ष में यह लड़ाई लड़ते रहे। तत्पश्चात 7 साल के अथक संघर्ष के बाद 10 जून, 1890 को ब्रिटिश शासन ने मज़दूरों के लिए रविवार के दिन साप्ताहिक अवकाश की मंजूरी दे दी । इसी के साथ श्री नारायण मेघाजी लोखंडे का प्रयास सफल हुआ । उनकी अथक मेहनत रंग लाई। मज़दूरों को दोपहर में आधे घंटे की खाने की छुट्टी दिलाने का श्रेय भी मेघाजी लोखंडे को जाता है। इसके पहले ना तो मज़दूरों को साप्ताहिक अवकाश मिलता था और ना ही दोपहर खाने की छुट्टी। मेघाजी लोखंडे मज़दूरों के हित के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे।

तो हम आपको यह पता होना चाहिए कि जिस रविवार की छुट्टी का हम जी भरकर आनंद उठाते हैं, उसे हम भारतीयों को हासिल करने के पीछे कई सालों और कई महान हस्तियों का कठिन और निस्वार्थ भाव से किया गया संघर्ष शामिल है।

 नारायण मेघाजी लोखंडे (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

जानें कौन हैं नारायण मेघाजी लोखंडे (Narayan Meghaji Lokhande kaun hai)?

मेघाजी लोखंडे का जन्म 1848 में महाराष्ट्र के ठाणे में हुआ था। मेघाजी लोखंडे को भारतीय श्रमिक संघ आंदोलन (Trade Union Movement) का जनक कहा जाता है। 1880 के बाद से उन्होंने पत्रिका "दीनबंधु" का प्रबंधन संभाला जो मुंबई से प्रकाशित होती थी। इस कार्य में रूचि के चलते उन्होनें मुंबई में एक कपास मिल (Cotton Mill) में अपनी हेड क्लर्क की नौकरी भी छोड़ दी। खुद को पूरी तरह से समाज सेवा के लिए समर्पित करने के साथ ही मिलहैंड्स एसोसिएशन (Millhands' Association) की स्थापना की।

मेघाजी लोखंडे के अथक प्रयासों के चलते मिल मज़दूरों को रविवार की साप्ताहिक छुट्टी, मध्यकालीन भोजन के लिए दोपहर में आधे घंटे की छूट, सभी मज़दूरों की तनख्वाह महीने की 15 तारीख को मिलना सुनिश्चित हो पाया।

मेघाजी लोखंडे को ब्रिटिश प्रशासन द्वारा "राय बहादुर" की उपाधि प्रदान की गई थी। 9 फरवरी, 19897 को मेघाजी लोखंडे की मृत्यु हो गयी। मेघाजी लोखंडे ने अपना पूरा जीवन पिछड़े और समाज के वंचित लोगों को उनका हक़ और समाज में सम्मान दिलाने के लिए कुर्बान कर दिया।

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