Guru Granth Sahib Ji Ang 1191: पढ़ें गुरु ग्रंथ साहिब के अंक 1191 की गुरबानी, हिंदी अर्थ के साथ
Sri Guru Granth Sahib Ji Ang 1191: गुरु ग्रंथ साहिब में सिख धर्म के गुरुओं की कही बातों का जिक्र है, जिसे गुरबानी यानी गुरु की वाणी कहा जाता है। आज पढ़ें श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का अंक 1191।;
Guru Granth Sahib Ji Ang 1191 (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Sri Guru Granth Sahib Ji Ang 1191: गुरु ग्रंथ साहिब सिख समुदाय का एक धार्मिक ग्रंथ है। इसे सिख धर्म का अंतिम और जीवित गुरु भी माना जाता है। दरअसल, सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने वर्ष 1708 में अपनी मृत्यु से पहले घोषणा कर दी थी कि उनके बाद गुरु ग्रंथ साहिब को ही आखिरी गुरु माना जाएगा। गुरु ग्रंथ साहिब में सिख धर्म के गुरुओं की कही बातों का जिक्र है, जिसे गुरबानी यानी गुरु की वाणी कहा जाता है। इसके अलावा इसमें हिंदू और मुसलमान रचनाकारों की भी पक्तियों का जिक्र मिलता है।
गुरु ग्रंथ साहिब में कुल 1,430 पन्ने हैं और 5,894 शबद हैं, जिसमें से 974 शबद गुरु नानक के हैं। आज हम आपके लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी अंक 1191 की कुछ गुरबानी लेकर आए हैं।
साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी अंक 1191
लबु अधेरा बंदीखाना अउगण पैरि लुहारी ॥३॥
लालच मनुष्य के लिए घोर अंधेरा एवं कैदखाना है और उसके पैर में अवगुणों की बेड़ी पड़ी हुई है॥३॥
पूंजी मार पवै नित मुदगर पापु करे कोटवारी ॥
मनुष्य की दौलत यह है कि हर रोज मुदगरों की मार पड़ रही है और पाप कोतवाल का कार्य करता है।
भावै चंगा भावै मंदा जैसी नदरि तुम्हारी ॥४॥
हे ईश्वर ! जैसी तुम्हारी कृपा-दृष्टि होती है, वैसा ही मनुष्य हो जाता है, अगर तुझे अच्छा लगे तो मनुष्य अच्छा बन जाता है और अगर बुरा लगे तो वह बुरा इन्सान बन जाता है।॥४॥
आदि पुरख कउ अलहु कहीऐ सेखां आई वारी ॥
अब इस कलियुग में मुसलमानों का शासन आ गया है, आदिपुरुष परमेश्वर को अल्लाह' कहा जा रहा है।
देवल देवतिआ करु लागा ऐसी कीरति चाली ॥५॥
ऐसी प्रथा चल पड़ी है कि देवताओं के मन्दिरों पर टैक्स लगाया जा रहा है।॥५॥
कूजा बांग निवाज मुसला नील रूप बनवारी ॥
हे इंश्वर ! मुसलमानों ने हाथ में कूजा ले लिया है, बांग दी जा रही है, नमाज पढ़ी जा रही है, मुसल्ला नजर आ रहा है, लोगों ने नीली वेशभूषा धारण कर ली है और
घरि घरि मीआ सभनां जीआं बोली अवर तुमारी ॥६॥
सब ओर अल्लाह-हू-अकबर हो रहा है, घर-घर में मियाँ जी मियाँ जी कहा जा रहा है, और सब लोगों की बोली (उर्दू) बदल गई है॥६॥
जे तू मीर महीपति साहिबु कुदरति कउण हमारी ॥
हे मालिक ! तू सम्पूर्ण विश्व का बादशाह है, यदि यह (मुसलमानी राज्य) तेरी मर्जी है, तो हम जीवों की क्या जुर्रत है?
चारे कुंट सलामु करहिगे घरि घरि सिफति तुम्हारी ॥७॥
चारों दिशाएँ तुझे सलाम करती हैं और घर-घर में तेरी प्रशंसा का गान हो रहा है।॥७॥
तीरथ सिम्रिति पुंन दान किछु लाहा मिलै दिहाड़ी ॥
तीर्थ-यात्रा, स्मृतियों के पाठ एवं दान-पुण्य से तो कुछ दिन भर का लाभ मिलता है,
नानक नामु मिलै वडिआई मेका घड़ी सम्हाली ॥८॥१॥८॥
मगर गुरु नानक साहिब का फुरमान है कि यदि परमात्मा के नाम का घड़ी भर सिमरन किया जाए तो ही सच्ची बड़ाई प्राप्त होती है॥८॥१॥८॥
बसंतु हिंडोलु घरु २ महला ४
बसंतु हिंडोलु महला १ घरु ४
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
कांइआ नगरि इकु बालकु वसिआ खिनु पलु थिरु न रहाई ॥
शरीर रूपी नगर में मन रूपी एक नादान बालक रहता है, जो पल भर भी टिक कर नहीं रहता।
अनिक उपाव जतन करि थाके बारं बार भरमाई ॥१॥
इसके लिए अनेक उपाय इस्तेमाल कर थक गए हैं परन्तु बार-बार यह भटकता है॥१॥
मेरे ठाकुर बालकु इकतु घरि आणु ॥
हे मेरे ठाकुर ! इस बालक को तुम ही स्थिर रख सकते हो।
सतिगुरु मिलै त पूरा पाईऐ भजु राम नामु नीसाणु ॥१॥ रहाउ ॥
अगर सतगुरु से साक्षात्कार हो जाए तो पूर्ण परमेश्वर प्राप्त होता है। राम नाम का भजन करो, यही सच्चा रास्ता है॥१॥रहाउ॥।
इहु मिरतकु मड़ा सरीरु है सभु जगु जितु राम नामु नही वसिआ ॥
अगर शरीर में राम नाम नहीं बसा तो यह मुर्दा और मिट्टी की ढेरी है। पूरा संसार नाम के बिना लाश समान है।
राम नामु गुरि उदकु चुआइआ फिरि हरिआ होआ रसिआ ॥२॥
जब गुरु राम नाम रूपी जल मुँह में डालता है तो यह पुनः हरा भरा हो जाता है॥२॥
मै निरखत निरखत सरीरु सभु खोजिआ इकु गुरमुखि चलतु दिखाइआ ॥
मैंने जांच पड़ताल कर पूरे शरीर को खोजा है और गुरु ने मुझे एक कौतुक दिखाया है कि
बाहरु खोजि मुए सभि साकत हरि गुरमती घरि पाइआ ॥३॥
बाहर खोजते हुए सभी मायावी जीव मर खप गए हैं मगर गुरु की धारणा का अनुसरण करते हुए प्रभु को हृदय-घर में ही पा लिया है॥३॥
दीना दीन दइआल भए है जिउ क्रिसनु बिदर घरि आइआ ॥
ईश्वर निर्धनों पर ऐसे दयालु होता है, ज्यों श्रीकृष्ण विदुर के घर आया था।
मिलिओ सुदामा भावनी धारि सभु किछु आगै दालदु भंजि समाइआ ॥४॥
जब सुदामा श्रद्धा भावना से श्रीकृष्ण से मिला तो उन्होंने सब चीजें उसके घर पहुँचाकर सुदामा की गरीबी को दूर किया था ॥४॥
राम नाम की पैज वडेरी मेरे ठाकुरि आपि रखाई ॥
राम नाम का भजन करने वाले की प्रतिष्ठा बहुत बड़ी है और मेरे मालिक ने स्वयं उसकी रक्षा की है।
जे सभि साकत करहि बखीली इक रती तिलु न घटाई ॥५॥
यदि सभी मायावी जीव चुगली एवं निन्दा करते रहे तो फिर भी एक तिल भर उसकी शोभा में कमी नहीं आती ॥५॥
जन की उसतति है राम नामा दह दिसि सोभा पाई ॥
राम नाम का भजन करने वाला भक्त ही प्रशंसा का पात्र है और वह संसार भर में शोभा प्राप्त करता है,
निंदकु साकतु खवि न सकै तिलु अपणै घरि लूकी लाई ॥६॥
मगर निन्दा करने वाला मायावी जीव भक्त की शोभा बदाश्त नहीं करता और तृष्णा की अग्नि में जलता रहता है॥ ६ ॥
जन कउ जनु मिलि सोभा पावै गुण महि गुण परगासा ॥
ईश्वर का भक्त अन्य भक्तगणों से मिलकर शोभा पाता है और उसके गुणों में और भी बढ़ौत्तरी होती है।
मेरे ठाकुर के जन प्रीतम पिआरे जो होवहि दासनि दासा ॥७॥
जो ईश्वर के दासों के दास बन जाते हैं, वही भक्त मेरे प्रभु को प्यारे लगते हैं।॥७॥
आपे जलु अपर्मपरु करता आपे मेलि मिलावै ॥
अपरंपार कर्ता आप ही जल है और स्वयं ही गुरुमुखों से मिलाता है।
नानक गुरमुखि सहजि मिलाए जिउ जलु जलहि समावै ॥८॥१॥९॥
हे नानक ! वह स्वाभाविक ही गुरु के संपर्क में मिला लेता है, ज्यों जल जल में विलीन हो जाता है॥ ८ ॥ १॥ ६ ॥