Aarti Lyrics: तुझको तेरा अर्पण, क्या लागे मेरा
Aarti Lyrics in Hindi: एक बार एक धनवान व्यक्ति ईश्वर दर्शन हेतु अपने घर से देवालय मंदिर की ओर चला। मार्ग में उसने सोचा कि आज वह भगवान को कमल का पुष्प अर्पित कर प्रसन्न करेगा। दैवयोग से उसे एक फूल वाला मिल भी गया। उसने फूल वाले से पूछा...
Aarti Lyrics: एक बार एक धनवान व्यक्ति ईश्वर दर्शन हेतु अपने घर से देवालय मंदिर की ओर चला। मार्ग में उसने सोचा कि आज वह भगवान को कमल का पुष्प अर्पित कर प्रसन्न करेगा। दैवयोग से उसे एक फूल वाला मिल भी गया। उसने फूल वाले से पूछा- एक कमल के फूल का दाम क्या लोगे? फूल वाले ने कहा ₹20। सेठ ने कहा ₹10 ले लो। फूल वाला ₹10 लेने को तैयार हो गया। उसी समय एक नवाब अपनी प्रेयसी के साथ वहां से गुजरा। प्रेयसी ने वही फूल लेने की इच्छा जताई। फूलवाले ने फिर ₹20 में फूल देने की बात कही। नवाब ₹50 देने को तैयार हो गया। तब सेठ ने फूल वाले से कहा भाई यह फूल तुमने मुझे ₹10 में बेच दिया है, अब तुम यह फूल इन्हें कैसे दे सकते हो?
फूल वाले ने कहा -'मैंने अभी तक यह फूल आपको दिया नहीं है। मुझे तो जो अधिक दाम देगा मैं उसी को ही यह फूल दूंगा।' तब सेठ ने कहा अच्छा मैं फूल के आपको ₹100 देता हूं। नवाब ने कहा मैं आपको ₹500 देता हूं, फूल मुझे मिलना चाहिए। सेठ ने उससे भी ऊंची कीमत अदा करने की बात कहते हुए फूल ₹1000 में लेने का प्रस्ताव रखा।लेकिन नवाब कहां पीछे हटने वाला था, उसने फूल की बोली ₹5000 लगा दी। तब सेठ भी जोश में आकर ₹10000 देने की बात कहने लगा।
यह सुनते ही नवाब अपनी प्रेयसी को लेकर वहां से चल दिया और सेठ ने ₹10000 में वह फूल खरीद लिया। वहां पर खड़े एक व्यक्ति ने सेठ से पूछा- 'भाई ! जिस फूल के आप पहले ₹20 देने को तैयार नहीं थे, उसके लिए आपने ₹10000 क्यों दिए? जिद में आकर एक फूल के ₹10000 देना तो कोई समझदारी नहीं है।'
सेठ ने कहा- "इस सौदे से मुझे जो सबक मिला है उसकी कीमत ₹10000 से बहुत अधिक है। मैंने आज यह जाना कि अपनी प्रेयसी के लिए, और स्वयं अपनी एक दिन की खुशी के लिए नवाब यदि ₹5000 खर्च कर सकता है, तो क्या मैं अपने दाता को प्रसन्न करने के लिए उसकी सेवा में ₹10000 भी नहीं खर्च कर सकता,जिसने मुझे करोड़ों रुपए देकर मालामाल कर रखा है।"
आज सेठ महंगा फूल लेकर भी इतना अधिक प्रसन्न था, जितना वह पहले कभी नहीं था, क्योंकि आज उसने भगवान की कृपा का एहसास अपने अंतःकरण से कर लिया था।कहने का तात्पर्य है कि सेवा का भाव मनुष्य को इतना उदार और प्रसन्न चित्त कर देता है कि, वह कुछ भी करने के लिए तत्पर हो जाता है। आखिर दिया तो उसी प्रभु ने है।फिर- तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा। इसमें क्या हरज है।