MP Election 2023: मध्य प्रदेश में पिछले चुनाव के बाद हुई थी खूब सियासी उठापटक, कमलनाथ को हटाकर इस तरह CM बने थे शिवराज सिंह चौहान
MP Election 2023: मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद खूब सियासी ड्रामा हुआ था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद कमलनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की कमान संभाली थी मगर उनकी सरकार करीब सवा साल ही चल सकी थी।
MP Election 2023: चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। आयोग की ओर से की गई घोषणा के मुताबिक मध्य प्रदेश में सिर्फ एक चरण में 17 नवंबर को मतदान कराया जाएगा। राजस्थान में 23 नवंबर और तेलंगाना में 30 नवंबर को मतदान होगा। मिजोरम में 7 नवंबर को ही मतदान का काम पूरा कर लिया जाएगा जबकि छत्तीसगढ़ में दो चरणों में सात और 17 नवंबर को मतदान होगा। सभी राज्यों के नतीजे 3 दिसंबर को एक साथ घोषित किए जाएंगे।
मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद खूब सियासी ड्रामा हुआ था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद कमलनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की कमान संभाली थी मगर उनकी सरकार करीब सवा साल ही चल सकी थी। इसके बाद भाजपा ने बड़ा सियासी खेल करते हुए कमलनाथ को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था।
फ्लोर टेस्ट से पहले ही कमलनाथ के इस्तीफा देने के बाद मार्च 2020 में शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी। ऐसे में उसे घटनाक्रम को याद करना काफी दिलचस्प है कि किस तरह कमलनाथ को सत्ता से हटाकर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे।
पिछले चुनाव में कांग्रेस ने मारी थी बाजी
मध्य प्रदेश में 2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने भाजपा को पिछाड़ते हुए 114 सीटों पर जीत हासिल की थी मगर यह आंकड़ा बहुमत से दो सीट कम था। दूसरी ओर भाजपा ने भी कांग्रेस को कड़ी चुनौती देते हुए 109 सीटों पर जीत हासिल की थी।
पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे में एक बात यह भी दिलचस्प थी कि भाजपा 41 फ़ीसदी वोट पाने के बाद भी पीछे रह गई थी जबकि कांग्रेस 40.9 फीसदी वोट पाकर आगे निकल गई थी। पिछले चुनाव में बसपा को दो और अन्य को 5 सीटों पर जीत मिली थी। चुनाव के बाद कांग्रेस बसपा, सपा और अन्य के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब हुई थी और कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी।
सवा साल में ही विदाई की पटकथा तैयार
2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार बनाने में जरूर कामयाब हुई मगर उसकी यह सरकार ज्यादा समय तक नहीं चल सकी। भाजपा ने सवा साल में ही कमलनाथ की सरकार की विदाई की भूमिका तैयार कर दी। 2020 में मार्च महीने की शुरुआत में मध्य प्रदेश के कई विधायक गुरुग्राम के होटल में जुटे और उन्होंने कमलनाथ की सरकार की विदाई की पटकथा लिख दी।
मामला बिगड़ता हुआ देखकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, उनके बेटे जयवर्धन सिंह और जीतू पटवारी समेत कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की। कांग्रेस के नेताओं को पार्टी के कुछ विधायकों को मनाने में कामयाबी भी मिली मगर सियासी उठापटक की गतिविधियों पर अंकुश नहीं लग सका।
सिंधिया ने दिया था कांग्रेस को बड़ा झटका
बाद में मध्य प्रदेश के सियासी भूचाल का केंद्र गुरुग्राम से बेंगलुरु शिफ्ट हो गया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिया। सिंधिया की अगुवाई में बागी विधायकों की संख्या 22 तक पहुंच गई जिससे कमलनाथ की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार का गिरना तय हो गया था। 2020 में 10 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली पहुंच गए और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ लंबा मंथन किया।
इस मुलाकात से सिंधिया का कांग्रेस छोड़ना तय हो गया था। सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और दूसरे दिन 11 मार्च को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।
फ्लोर टेस्ट से पहले ही कमलनाथ का इस्तीफा
2020 में मध्य प्रदेश में हुई सियासी उठापटक की लड़ाई बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों की ओर से राज्य में फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की गई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाते हुए 20 मार्च 2020 को शाम पांच बजे तक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट करने का आदेश दिया था। फ्लोर टेस्ट के दौरान कमलनाथ की सरकार का गिरना तय माना जा रहा था और यही कारण था कि फ्लोर टेस्ट से पहले ही दोपहर में कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया।
कमलनाथ के इस्तीफे के अगले दिन नहीं राजधानी दिल्ली में जेपी नड्डा की मौजूदगी में 22 बागी विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया। दो दिन बाद 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर मुख्यमंत्री के रूप में मध्य प्रदेश की कमान संभाल ली और वे अभी तक राज्य के मुख्यमंत्री बने हुए हैं।
उपचुनाव में भाजपा ने दिखाई ताकत
बाद में जुलाई महीने के दौरान कांग्रेस के तीन और विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था। तीन सीटें विधायकों के निधन के कारण रिक्त हो गई थीं। इस तरह कुल 28 सीटों पर बाद में उपचुनाव कराया गया था। इस उपचुनाव के दौरान भाजपा ने अपनी ताकत दिखाते हुए 19 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ नौ सीटें ही आ सकी थीं। कांग्रेस से बगावत करने वाले 25 में से 18 नेता उपचुनाव जीतने में कामयाब रहे थे जबकि सात को विधानसभा उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।
शिवराज के सामने नहीं था कोई संकट
बाद में 2022 में हुए राष्ट्रपति चुनाव से पहले तीन और विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था। मौजूदा समय में राज्य की 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 127, कांग्रेस के 96, निर्दलीय चार, दो बसपा और एक समाजवादी पार्टी के विधायक हैं।
ऐसे में मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ शिवराज सिंह चौहान की सरकार को और ताकत मिली थी।
तभी से शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल रखी है। भाजपा ने दलबदल के जरिए कांग्रेस को इतना बड़ा झटका दिया था जिसके कारण कांग्रेस आज भी बदले की आग में जल रही है। मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान को कभी किसी संकट का सामना नहीं करना पड़ा।