Meerut News: मेरठ नगर निगम चुनाव, पार्षदों ने आपदा में खोजा चुनावी अवसर
Meerut News: क्षेत्र की हालत को लेकर काफी शर्मिन्दगी उठानी पड़ रही है। ऐसे में जनता के सवालों की बौछार से बचने के लिए उम्मीदवार कोरोना संकट का सहारा ले रहे हैं।;
Meerut News: उत्तर प्रदेश के मेरठ में 11 मई को नगर निगम चुनाव में वोट पड़ने वाले हैं। यहां चुनाव प्रचार चरम पर है। लेकिन,शहर की जैसी हालत है और लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं, उसके कारण पार्टी उम्मीदवारों को खासकर पिछले चुनाव में जीत कर पार्षद बनने वालों को जनता के बीच क्षेत्र की हालत को लेकर काफी शर्मिन्दगी उठानी पड़ रही है। ऐसे में जनता के सवालों की बौछार से बचने के लिए उम्मीदवार कोरोना संकट का सहारा ले रहे हैं।
विपक्षी मेयर का बहाना बना रही भाजपा
भाजपा के उम्मीदवार कोरोना के अलावा विपक्ष का मेयर बनने को भी कारणों में जोड़ रहे हैं। भाजपाई उम्मीदवारों का कहना है कि विपक्षी पार्टी का मेयर होने के कारण वे अपने क्षेत्र के विकास के लिए काफी कोशिशों के बाद भी बहुत कम काम कर सके। दूसरी तरफ विपक्षी पार्टी से जुड़े एवं निर्दलीय उम्मीदवारों का कहना है कि एक तो कोरोना संकट और दूसरा प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के कारण उनको विकास कार्य कराने के लिए अपेक्षित धन ही नहीं मिल सका। क्षेत्र की ख़राब हालत के बारे में सवाल करने पर ऐसे उम्मीदवारों का यही रटारटाया जवाब सुनने को मिल रहे हैं कि क्या करते दो साल तो कोरोना में ही खराब हो गये थे। बाकी एक साल लोकसभा और विधानसभा की आचार संहिता के कारण कुछ नहीं कराया जा सका।
बहुत से वादे रह गए अधूरे, शहर का गांव जैसा हाल!
दरअसल,2017 में चुनी गई शहर की सरकार ने लोगों से बड़े-बड़े वादे किए,लेकिन इनमें कम ही पूरे हो सके। पिछले चुनाव में पार्षद और मेयर पद पर खड़े उम्मीदवारों द्वारा शहर को स्मार्ट बनाने,कूड़े से मुक्ति दिलाने,हर घर तक पाइप लाइन से पानी की सप्लाई और कूड़े की गाड़ी पहुंचाने ,एसटीपी से काली नदी तक स्वच्छ पानी पहुंचाने और नगर निगम जनता के द्वार योजना में जोनल कार्यालय खुलवाने के सपने दिखाए थे। लेकिन,पांच साल में शहर न तो स्मार्ट बन सका और न ही स्मार्ट सिटी जैसी सुविधा मिल पाई। सबसे ख़राब हालत शहर की तमाम सड़कों की रही। नई सड़कें बननी तो दूर सड़कों के गड्ढे तक नहीं भर सके। यही नहीं कूड़े का पहाड़ हटाने का वादा था। लेकिन पांच साल में शहर की गलियों और सड़कों से कूड़ा उठाने की सही व्यवस्था तक नहीं हो सकी। शहर के पुराने इलाकों में तो गलियों और सड़कों की इतनी ख़राब दशा है कि यहां गांव और शहर का भेद ही मिट गया लगता है।