अंतरिक्ष युद्ध की स्थिति में प्रतिरोधक साबित होगी एंटी-मिसाइल प्रौद्योगिकी: विशेषज्ञ
इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईडीएसए) के सीनियर फेलो अजय लेले ने कहा, ‘‘जोरदार संदेश गया है कि यदि हमारे किसी उपग्रह को नुकसान पहुंचाया गया तो हमारे पास भी आपके (विरोधी के) उपग्रह को नष्ट करने की क्षमता है।’’
नयी दिल्ली: भारत की ओर से बुधवार को प्रदर्शित की गई एंटी-सैटेलाइट मिसाइल क्षमता अंतरिक्ष युद्ध होने पर प्रतिरोधक (डेटरेंट) का काम करेगी। विशेषज्ञों ने यह बात कही है।
इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईडीएसए) के सीनियर फेलो अजय लेले ने कहा, ‘‘जोरदार संदेश गया है कि यदि हमारे किसी उपग्रह को नुकसान पहुंचाया गया तो हमारे पास भी आपके (विरोधी के) उपग्रह को नष्ट करने की क्षमता है।’’
वायुसेना के पूर्व अधिकारी और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि भारत के पास कई वर्षों से एंटी-मिसाइल प्रौद्योगिकी रही है, लेकिन इसके असल परीक्षण के लिए राजनीतिक मंजूरी की जरूरत थी।
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उन्होंने कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को दो साल पहले इस परीक्षण की तैयारी की हरी झंडी मिली थी और यह मिशन बुधवार को पूरा हुआ।
साल 2012 में भारत ने कृत्रिम परीक्षण किया था जिससे यह काबिलियत तो स्थापित हो गई थी, लेकिन मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने ‘लाइव’ परीक्षण के लिए अनुमति नहीं थी।
सरकार को इस बात की चिंता थी कि नष्ट किए गए उपग्रह से अंतरिक्ष में मलबा इकट्ठा हो जाएगा और इससे अन्य देशों के उपग्रह को नुकसान पहुंचेगा।
जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण अनुसंधान संस्थान (यूएनआईडीआईआर) के अंतरिक्ष सुरक्षा फेलो डेनियल पोरस ने कहा कि बुधवार के परीक्षण ने 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक उपग्रह को नष्ट किया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह एलईओ (धरती की निचली कक्षा) के लिए अच्छा संकेत नहीं है जिसमें दूरसंचार एवं पृथ्वी का पर्यवेक्षण करने वाले उपग्रह हैं और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन भी है।’’
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पोरस ने कहा, ‘‘परीक्षण 300 किलोमीटर पर हुआ, इसका मतलब है कि ज्यादातर मलबा धीरे-धीरे नीचे आएगा। लेकिन उस ऊंचाई के आसपास काफी चीजों का होना एलईओ के पुंजों (कॉन्स्टेलेशन) के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
यदि कोई मलबा अन्य चीजों को नुकसान पहुंचाता है तो भारत (यदि आरोप साबित हो जाता है तो) दायित्व संधि के तहत जवाबदेह होगा।’’
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर ने कहा कि भारत के पास एंटी-सैटेलाइट मिसाइल क्षमता एक दशक पहले से थी।
नायर ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘(इसरो और डीआरडीओ की) दो प्रौद्योगिकियों के मेल की जरूरत थी जो पिछले कुछ साल में पूरी हुई।’’
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा परीक्षण की अनुमति दे दिए जाने के बाद मिसाइल प्रक्षेपण में महारत हासिल करने के लिए वैज्ञानिकों को दो साल का वक्त लगा होता।