गधे पर बैठकर होली: इस गांव की अजीबोगरीब परंपरा, दामाद के साथ किया जाता है ये सब

Holi 2022: महाराष्ट्र के बीड जिले में वर्षों से होली पर एक अजीबोगरीब परंपरा चली आ रही है। आइए जाने इसके बारे में।

Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-03-15 21:25 IST

सजे-धजे गधे (फोटो-सोशल मीडिया)

Holi 2022: भारत में धर्म औऱ संस्कृति की जड़ें काफी गहरी हैं। त्यौहारों के इस देश में हर महीने अथवा पखवारे पर किसी न किसी धार्मिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। दरअसल भारतीय मान्यताओं के अनुसार, यहां 33 करोड़ देवी देवता हैं, जिस वजह से साल भर धार्मिक उत्सवों का आना जाना लगा रहता है।

विभिन्न धर्मों औऱ संस्कृतियों को अपने में समेटे इस देश के हर कोने में वर्षों से अनोखी और अजीबोगरीब परंपराएं चलती आ रही हैं। इनमें से कई ऐसी परंपराएं हैं जो काफी लोकप्रिय है औऱ लोगों को उसके बारे में अच्छे से पता भी है। लेकिन कुछ अजीबोगरीब परंपराएं ऐसी भी है जिसके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं।

देश में अभी रंगों का त्यौहार होली को लेकर लोगों पर खुमार चढ़ा हुआ है। हरेक के जुबां पर मथुरा, वृंदावन, काशी औऱ पुस्कर जैसी जगहों पर मनायी जाने वाली होली चढ़ी हुई है। होली के मौके पर यहां की अनोखी परंपरा के खुब चर्चे होते हैं। तो आइए इसी कड़ी में हम आपको महाराष्ट्र के एक गांव में होली के मौके पर वर्षों से चली आ रही अजीबोगरीब परंपरा से अवगत कराते हैं।

वर्षों से चली आ रही अजीबोगरीब परंपरा

महाराष्ट्र के बीड जिले में वर्षों से होली के मौके पर एक अजीबोगरीब परंपरा चली आ रही है। जिले की केज तहसील के विदा गांव में होली के मौके पर नए-नवेले दामाद को गधे पर बैठा कर भ्रमण कराया जाता है। गधे की सवारी करने वाले दामाद को गांव वाले मन पसंद कपड़े देते हैं। गांव के बुजुर्गों के अनुसार, बीते 90 सालों से उनके यहां यह परंपरा चली आ रही है।

होली से पहले इस रस्म की तैयारी में गांव वाले जुट जाते हैं। इसके लिए वे तीन-चार दिन पहले ही गांव के किसी नए दामाद को चिन्हित कर लेते हैं और उनपर सख्त पहरा लगा देते हैं। ताकि दामाद रस्म पूरी होने तक गांव से भाग न सके।

नए दामाद करते हैं गधे की सैर

होली के दिन यह रस्म सुबग शुरू हो जाती है। गांव के नए दामाद को मनमाफिक नए कपड़े पहनाकर पूरे सम्मान के साथ गधे पर बैठाया जाता है। यहा सवारी गांव के बीचोंबीच शुरू होती है और करीब दिन के 11 बजे गांव के हनुमान मंदिर पर समाप्त होती है।

स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि इस परंपरा को आज से तकरीबन 90 साल पहले गांव के ही आनंदराव देशमुख ने शुरू की थी, गांव के लोग उनका बहुत सम्मान किया करते थे। उन्होंने इस परंपरा की शुरूआत अपने दामाद को गधे पर बैठाने के साथ शुरू की । इसकी बाद से यह परंपरा अनवरत रूप से जारी है।

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